शहद
मधु (शहद)---
- मधु कषायानुरस, रूक्ष, शीतवीर्य, मधुर, अग्नि दीपन, लेखन, बलवर्धक, व्रणरोपण, सन्धानजनन, लघु, नेत्रों के लिए हितकर, स्वर को उत्तम करने वाला, हृदय के लिए हितकर, त्रिदोषहर, वमन, हिचकी विष, श्वास, कास, शोथ, अतिसार और रक्तपित्त को नष्ट करने वाला, ग्राही, कृमि, तृष्णा तथा मूर्च्छा को दूर करने वाला है ।
- जिस प्रकार यह जगत्प्रसिद्ध मान्यता है कि गंगाजल कभी सड़ता नहीं, पाचक व रोगनाशक है । इसी प्रकार मधु (शहद) भी एक ऐसी पवित्र वस्तु है जिसमें सड़ांध कभी उत्पन्न नहीं होती । यह शरीर से उत्पन्न होने वाली सड़ांध को भी रोकता है । फल आदि वस्तुओं को भी इसमें बहुत देर के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है ।
- शहद के गुणों को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने जो अनुसंधान किये हैं, उनसे इस बात का भी पता चला है कि शहद कृमिनाशक है । डॉक्टर डब्ल्यू जी सैकट ने रोगकीटाणुओं को शहद में रखा, तो ये कीटाणु शीघ्र ही मर गए । इनमें टाईफाईड और पेचिश पैदा करने वाले कीटाणु भी थे । शहद में सड़ान्ध को रोकने और कीटाणुओं का नाश करने की जो शक्ति विद्यमान है, उसने उसे भोजन में सर्वोत्तम (सर्वश्रेष्ठ) और पवित्र स्थान दिया है । हमारे पूर्वज शहद के इन गुणों से परिचित थे, इसलिए उन्होंने शहद पंचामृत का अंग माना है ।
- बाल्य काल से शहद का सेवन करने से क्षय रोग से बचा जा सकता है। जब बालक माँ के गर्भ में हो तो माता को गोदुग्ध के साथ मधु का सेवन कराना चाहिए और शिशु को उत्पन्न होते ही बालक का पिता स्वर्ण की शलाका से मधु से उसकी जिह्वा पर ॐ लिखे व मधु उसी शलाका से चटावे और बालक को प्रथम नौ मास तक मधु दिया जाये तो उसको छाती रोग, श्वास, कास, जुकाम, निमोनिया आदि नहीं होते ।
- मधु (शहद) में वे सभी तत्त्व पाये जाते हैं जो कि शारीरिक उन्नति के लिए आवश्यक हैं । प्रोटीन जो तन्तुओं का निर्माण करती है, लोह जो कि रक्त के लिए आवश्यक है, चूना जो हड्डियों को सुदृढ़ बनाता है । कार्बोहाईड्रेट जिनकी पोषक महत्ता से सभी परिचित हैं, यह सभी पदार्थ शहद में पाए जाने वाली शर्करा में अधिकांश ग्लूकोज का होता है, जो बिना किसी पाचनक्रिया पर बोझ डाले शरीर में आत्मसात् हो जाता है । शहद किसी भी श्लेश्मिक कला में से गुजर कर रक्त में सीधा घुल जाता है । शहद जब कि वह मुंह में होता है, पूर्व इसके वह हमारी भोजन नालिका द्वारा आमाशय में पहुंचे, वह रक्त में मिलना प्रारम्भ हो जाता है । मेदे में पहुंचकर शहद का आत्मीकरण भी बहुत जल्दी होता है । यही कारण है कि शहद हृदय के लिए शक्तिवर्द्धक माना गया है ।
- थका-मांदा इन्सान चाय पीकर सुस्ती को दूर करता है, यदि वह चाय के स्थान पर शहद को पानी में घोलकर पिये तो उसे यह अनुभव कर बड़ा आश्चर्य होगा कि न केवल उसकी थकावट ही दूर हो गई है बल्कि उसके शरीर में नवीन स्फूर्ति आ गई है ।
- एक वर्ष के बाद पड़ा रहने वाला मधु पुराना समझा जाता है । यह पुराना मधु संकोचक, रूखा और मेदोरोगनाशक समझा जाता है, कब्ज को दूर करता है ।
- नवीन मधु पुष्टिकारक और वातकफनाशक है, पुराना मधु हल्का, मलरोधक, दोषरहित और स्थूलतानाशक है ।
शहद |
मधु (शहद)---
- मधु कषायानुरस, रूक्ष, शीतवीर्य, मधुर, अग्नि दीपन, लेखन, बलवर्धक, व्रणरोपण, सन्धानजनन, लघु, नेत्रों के लिए हितकर, स्वर को उत्तम करने वाला, हृदय के लिए हितकर, त्रिदोषहर, वमन, हिचकी विष, श्वास, कास, शोथ, अतिसार और रक्तपित्त को नष्ट करने वाला, ग्राही, कृमि, तृष्णा तथा मूर्च्छा को दूर करने वाला है ।
- जिस प्रकार यह जगत्प्रसिद्ध मान्यता है कि गंगाजल कभी सड़ता नहीं, पाचक व रोगनाशक है । इसी प्रकार मधु (शहद) भी एक ऐसी पवित्र वस्तु है जिसमें सड़ांध कभी उत्पन्न नहीं होती । यह शरीर से उत्पन्न होने वाली सड़ांध को भी रोकता है । फल आदि वस्तुओं को भी इसमें बहुत देर के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है ।
- शहद के गुणों को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने जो अनुसंधान किये हैं, उनसे इस बात का भी पता चला है कि शहद कृमिनाशक है । डॉक्टर डब्ल्यू जी सैकट ने रोगकीटाणुओं को शहद में रखा, तो ये कीटाणु शीघ्र ही मर गए । इनमें टाईफाईड और पेचिश पैदा करने वाले कीटाणु भी थे । शहद में सड़ान्ध को रोकने और कीटाणुओं का नाश करने की जो शक्ति विद्यमान है, उसने उसे भोजन में सर्वोत्तम (सर्वश्रेष्ठ) और पवित्र स्थान दिया है । हमारे पूर्वज शहद के इन गुणों से परिचित थे, इसलिए उन्होंने शहद पंचामृत का अंग माना है ।
- बाल्य काल से शहद का सेवन करने से क्षय रोग से बचा जा सकता है। जब बालक माँ के गर्भ में हो तो माता को गोदुग्ध के साथ मधु का सेवन कराना चाहिए और शिशु को उत्पन्न होते ही बालक का पिता स्वर्ण की शलाका से मधु से उसकी जिह्वा पर ॐ लिखे व मधु उसी शलाका से चटावे और बालक को प्रथम नौ मास तक मधु दिया जाये तो उसको छाती रोग, श्वास, कास, जुकाम, निमोनिया आदि नहीं होते ।
- मधु (शहद) में वे सभी तत्त्व पाये जाते हैं जो कि शारीरिक उन्नति के लिए आवश्यक हैं । प्रोटीन जो तन्तुओं का निर्माण करती है, लोह जो कि रक्त के लिए आवश्यक है, चूना जो हड्डियों को सुदृढ़ बनाता है । कार्बोहाईड्रेट जिनकी पोषक महत्ता से सभी परिचित हैं, यह सभी पदार्थ शहद में पाए जाने वाली शर्करा में अधिकांश ग्लूकोज का होता है, जो बिना किसी पाचनक्रिया पर बोझ डाले शरीर में आत्मसात् हो जाता है । शहद किसी भी श्लेश्मिक कला में से गुजर कर रक्त में सीधा घुल जाता है । शहद जब कि वह मुंह में होता है, पूर्व इसके वह हमारी भोजन नालिका द्वारा आमाशय में पहुंचे, वह रक्त में मिलना प्रारम्भ हो जाता है । मेदे में पहुंचकर शहद का आत्मीकरण भी बहुत जल्दी होता है । यही कारण है कि शहद हृदय के लिए शक्तिवर्द्धक माना गया है ।
- थका-मांदा इन्सान चाय पीकर सुस्ती को दूर करता है, यदि वह चाय के स्थान पर शहद को पानी में घोलकर पिये तो उसे यह अनुभव कर बड़ा आश्चर्य होगा कि न केवल उसकी थकावट ही दूर हो गई है बल्कि उसके शरीर में नवीन स्फूर्ति आ गई है ।
- एक वर्ष के बाद पड़ा रहने वाला मधु पुराना समझा जाता है । यह पुराना मधु संकोचक, रूखा और मेदोरोगनाशक समझा जाता है, कब्ज को दूर करता है ।
- नवीन मधु पुष्टिकारक और वातकफनाशक है, पुराना मधु हल्का, मलरोधक, दोषरहित और स्थूलतानाशक है ।
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