आयुर्वेदिक औषधियां
बाजरा :
बाजरा भारत में सभी जगह पायी जाती है। यह मेहनती लोगों का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कुछ लोगों का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल………………
बारतग :
बारतग एक प्रकार की लता होती है, जिसके पत्ते दिखने में बकरे के जीभ के समान लगता है। यह बूंटी बागों मे………………
बबूल :
वास्तव में बबूल रेगिस्तानी प्रदेशो का पेड़ है। बबूल के पेड़ की छाल एवं गोंद प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती है। यह कांटेदार पेड़ होते हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में बबूल के लगाये हुए तथा जंगली पेड़………………
बबूल का गोंद :
बबूल की गोंद का प्रयोग करने से छाती मुलायम होती है। यह मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है। यह आंतों को भी मजबूत बनाता है। यह सीने के दर्द को समाप्त करता है तथा गले की आवाज को साफ करता है। इसका………………
बबूना देशी या मारहट्ठी :
बाबूना देशी(मारहट्ठी) पेट के अन्दर की गांठों को खत्म करता है। इसके सेवन करने से कफ और वात को दस्त के रुप में बाहर निकालता है।………………
बच :
बच शरीर के खून को साफ करती है। इससे धातु की पुष्टि होती है। बच कफ(बलगम) को हटाती है और गैस को समाप्त करती है। दिल और दिमा को कफ के रोगों से दूर करती है। फलिज और लकवा से पीड़ित रोगियों के लिए………………
वेदमुश्क :
वेदमुश्क गांठों को तोड़ता है, दिमागी और गर्मी के दर्द को राहत देता है, दिल और पेट के कल पुरजों का बल बढ़ाता है। वेदमुश्क का रस काफी अच्छा होता है तथा यह मन………………
बादाम :
बादाम के पेड़ पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके तने मोटे होते हैं। इसके पत्ते लम्बे, चौड़े और मुलायम होते हैं। इसके फल के अन्दर की मिंगी को बादाम कहते हैं। बादाम के पेड़ एशिया में ईरान, ईराक………………
बड़हर :
आयुर्वेद के अनुसार कच्चा बड़हर शरीर के लिए गर्म होता है। यह शरीर में देर से पचाता है। यह शरीर के वात, कफ और पित्त के विकारों को दूर करता है। यह खून में उत्पन्न विकारों (खून की खराबी) को दूर करता है। बड़हर………………
बड़ी इलायची :
इलायची अत्यंत सुगन्धित होने के कारण मुंह की बदबू को दूर करने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसको पान में रखकर भी खाते हैं। सुग्न्ध के लिए इसे शर्बत और मिठाइयों में मिलाते हैं। मासालों तथा औषधियों में भी……………...
बहेड़ (Beleric Myrobolam) (Terminalia Belerica) :
बहेड़ा के पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लम्बे होते हैं। इसके पेड़ 60 से 100 फूट तक ऊंचे होते हैं और इसके छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। बहेड़ा के पेड़ पहाड़ों और ऊंचे भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ के लिए लाभदायक होता है। इसके………………
बहमन लाल :
इन्द्र जव और मछली से बहमन लाल की तुलना की जा सकती है। यह धातु को पुष्ट करता है तथा शरीर को मोटा ताजा और बलवान बनाता है। यह खून को साफ करता है और उसकी बीमारी को दूर करता है। यह मानसिक………………
बहमन सफेद :
बहमन सफेद धातु को पुष्ट करता है। यह शरीर को मोटा, ताजा और बलवान बनाता है। यह गर्मी अधिक पैदा करता है और दिल-दिमाग(मन और मस्तिष्क) को बलवान बनाता है। यह गैस को दूर करता है तथा कफ………………
वज्रदन्ती :
वज्रदन्ती के प्रयोग से दांत के रोग ठीक हो जाते हैं। इसके पत्तों और पानी को कत्था डालकर उबालने पर गुनगुने पानी से कुल्ली करने से दांतों से खून का गिरना………………
बकाइन/ बकायन का फल :
बकायन का पेड़ बहुत बड़ा होता है। नीम की तरह बकायन के पत्ते भी गांवों में पाये जाते हैं। इसके पत्ते कड़वे नीम के समान तथा आकार में कुछ बड़े होते हैं। बकायन की लकड़ी का प्रयोग इमारती कामों के लिए………………
बकरी का दूध :
बकरी का दूध मन को प्रसन्न रखता है। मुँह में खांसी के साथ आने वाले खून के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। बकरी का दूध फेफड़ों के घाव और गले की पीड़ा को दूर करता है। यह पेट को शीतलता प्रदान करता है। बकरी………………
बकुची(बावची) (Esculeut Fiacourtia) (Fabaceae)(Psoralia Corylifolia) :
बकुची के पौधे पूरे भारत में कंकरीली भूमि और झाड़ियों के आसपास उग आते हैं। कहीं-कहीं पर इसकी खेती भी की जाती है। औषधि के रुप में इसके बीज और बीजों से प्राप्त तेल का व्यवहार किया जाता है। बकुची पर शीतकाल………………
बाल :
आग से जले हुए घाव पर बाल लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। बालों को पीसकर सिरका में मिलाकर फोड़े-फुंसियों में लगाने से आराम मिलता है। यह बरबट की सूजन को मिटाता है। इसकी बारीक पिसी हुई चुटकी………………
बालछड़ :
यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। बालछड़ के सेवन से आमाशय पुष्ट होता है और पथरी को गलाता है। यह मुँह की दुर्गन्ध को दूर करता है। इसका सुरमा बनकर लगाने से आँखों की देखने की………………
बालगों :
यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह पागलपन और दिल की घबराहट को दूर करता है। यह दस्त के लिए गुलाब के रस के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए। यह पेचिश और पेट के मरोड़ को खत्म………………
बालू :
बालू ठंडा होता है। यह गर्मी को समाप्त करता है तथा फोड़ों को ठीक करता है। यह घावों मुख्य रुप से सीने के घावों को भरता है। इससे सिकाई करने से वात रोग समाप्त हो जाता है। आमवात(गठीया) और जलोदर(पेट में………………
बालूत :
बालूत से कब्ज पैदा होती है तथ यह दस्तों को रोकता है। यह शरीर के किसी भी भाग से खून का निकलना बन्द करता है और यह मुख्यतः मुँह से निकलने वाले खून को बन्द करता है। यह आंतों के घावों और उससे पैदा हुए………………
बन चटकी :
बन चटकी के फूल और पत्तों को पीसकर किसी भी प्रकार के सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है। इससे पेशाब खुलकर आता है। प्रसव के दौरान गर्भवती महिला को इसे………………
बनकेला :
बनकेला के विभिन्न गुण होते हैं। यह ठंडक प्रदान करती है। बनकेला खाने में मीठा और स्वादिष्ट होता है तथा इसके फल रस से भरा होता है। यह शरीर को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह मनुष्य की धातु शक्ति को………………
बांदा :
बांदा, बलगम, वात, खूनी विकार फोड़े और जहर के दोषों को समाप्त करता है। बांदा भूत से संबंधित परेशानियों को दूर करता है। वंशीकरण आदि कार्यो में इसका प्रयोग किया जाता है। यह वीर्य को मजबूत करता है और बढ़ाता………………
बंडा आलू :
बंडा आलू स्त्री प्रसंग की इच्छा को बढ़ाता है। यह नपुंसकता को दूर करता है। बंडा आलू खून की बीमारी यानी खून के फसाद को मिटाता है तथा यह पेशाब का रुक-रुक कर आनी (मूत्रकृछ)की बीमारी को खत्म करता………………
बन्दाल Bristilufiya, Lyufayekineta :
बन्दाल कड़वी, वमनकारक, बलगम, बवासीर, टी.बी. हिचकी, पेट के कीड़ों तथा बुखार को समाप्त करता है। इसका फल गुल्म, दर्द तथा बवासीर को दूर करता है।………………
बंगलौरी बैंगन :
बंगलौरी बैंगन का कर्नाटक में दाल, चटनी व सब्जियों को बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसमें पानी का तत्व लगभग 93 प्रतिशत होता है और इसमें कैल्शियम भी पाये जाते हैं। कम कैलोरी वाली सब्जी होने के कारण यह………………
बनियाला :
यह पित्त को नष्ट करता है। यह पित्त से पीड़ित रोगियों के लिए यह बहुत ही लाभकारी होता है।………………
बांझ खखसा :
बांझ खखसा बलगम और स्थावर विषों (जहरों) को समाप्त करती है। पारे को बांधता, घावों को शुद्ध(साफ) करत है, सांप के जहर पर इसको लगाने से जहर का असर उतर जाता है। यह आँखों की बीमारी, सिर के रोग, कोढ़, खून………………
बनककड़ी :
यह गर्म तथा कड़वी होती है। यह भेदक, बलगम को खत्म करने वाले, पेट के कीड़े और खुजली को दूर करता है तथा बुखार को खत्म करता है।………………
बनपोस्ता :
बनपोस्ता आँखों के घावों को ठीक करता है और मुँह में लार की मात्रा को बढ़ाता है। बनपोस्ता एक प्रकार की घास होती है, जो बिल्कुल पोस्तादाना के समान होती है।………………
बांस (Bambu), (Bambu savlgerees) :
बांस का पेड़ भारत में सभी जगहों पर पाया जाता है। यह कोंकण(महाराष्ट्र) में अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह 25-30 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते लम्बे होते हैं। बांस का पेड़ बहुत मजबूत होता है। इसका अन्दाज इस………………
बंशलोचन :
बंशलोचन शरीर की धातुओं को बढ़ाता है। यह वीर्य की मात्रा में वृद्धि करता है और धातु को पुष्ट करता है। बंशलोचन स्वादिष्ट और ठंडा होता है तथा प्यास को रोकती है। बंशलोचन खाँसी, बलगम, बुखार, पित्त खून की………………
बरक :
बरक प्यास को बढ़ाता है। दाँतों के दर्द को रोकता है, हाजमा ठीक करता है, मेदा(आमाशय) को बलवान बनाता है। गर्मी के बुखार और सूखी तथा गीली खांसी में यह फायदा करती है। अगर गले में जोक फस जायें तो यह………………
बर्फ :
प्रसव के समय शिशु का सांस न लेना बच्चे के जन्म के बाद बच्चा न रोता हो और सांस भी न ले रहा हो और वह जिंदा हो तो, उसके गुदा द्वार पर बर्फ का टुकड़ा रख दें। इससे बच्चे की सांस चलने लगेगी और रोने लगेगा।………………
बायबिडंग (गैया, बेवरंग) (EMBELIA ROBUSTA) :
बायबिडंग (गैया, बेवरंग), वातानुमोलक, कोष्ठवात, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, बवासीर तथा सूजन में विशेष रुप से……. ….
बैद लैला (Salix Tetrasperma) :
बेद लैला के लगभग सभी गुण बेद-मुश्क के जैसे ही होते है। बेद लैला छाल का काढ़ा कड़वा तथा बुखारनाशक होता है। इसके फूलों का रस बेद-मुश्क के रस के समान ही जलननाशक……. ….
बेद-मुश्क (Salix Caprea) :
बेदमुश्क चिकना, कड़वा, तीखा, ठंडा, वीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, पाचन शक्ति बढ़ाने वाला, जलन को समाप्त करने वाला, लीवर को बढ़ाने वाला, खून को जमाने वाला, मूत्रवर्द्धक, कामवासना को……. ….
बेद-सादा (SALIX ALBA) :
बेद सादा ठंडा, रुखा, कड़वा, तीखा, सुगंधित, जलन को शांत करने वाला, दिल और दिमाग के लिए ताकत, सौमनस्यजनक, मूत्रवर्द्धक, दर्द को दूर करने वाला और पैत्तिक बुखार……. ….
बेकल (विंककत) (GYMNNOSPORIA MONTANA) :
बेकल के पत्तों में भी कई गुण मौजुद होते है। खून की खराबी, बवासीर, पेचिश, पीलिया, सूजन और पित्तविकार पर इसके पत्तों के काढ़े में शक्कर मिलाकर पिलाते है। इससे पाचन शक्ति……. ….
बेलन्तर (DICHROSTACGYS CINEREA) :
बेलन्तर का फल तीखा, गर्म, खाने में कड़वा, भोजन की पाचन शक्तिवर्द्धक, मलरोधक है। स्त्रियों के योनिरोग, वातविकार, जोड़ो का दर्द और पेशाब के रोगों में भी……. ….
भगलिंगी (BHANGLINGES) :
भगलिंगी उपलेपक, सूजन को दूर करने वाला और चिरगुणकारी पौष्टिक है। भूख ना लगना और भोजन करने का मन ना करना के रोग में भगलिंगी की जड़ को काली मिर्च……. ….
भटवांस भारी, रुखा, मीठा, तीखा, चरपरा, उष्णवीर्य, कड़वा, खाने में खट्टा, दस्त लाने वाला, स्तनों में दूध की वृद्धि, पित्त और खून बढ़ाने वाला, टट्टी-पेशाब को रोकने वाला, कफ विकार, सूजन, जहर को……. ….
भूतकेशी की जड़ पौष्टिक, मूत्रवर्द्धक, धातु परिवर्तक और बुखार को दूर करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसे उपदंश की विकृति, कंठमाला और चर्म रोगों को समाप्त करने के लिए……. ….
भोरंग इलायची के बीज संकोचक और बलकारक होते है। इसके चूर्ण का मंजन करने से दांत दृढ़ और चमकीले रहते है। इसके रासायनिक तत्त्व बड़ी इलायची के रासायनिक तत्त्वों से मिलते हुए होते हैं। चीनी नागरिक इसके बीजों का……. ….
भुंई आंवला का रस मीठा, अनुरस, कड़वा, रुचिकर, छोटा, शीतवीर्य, पित्त-कफनाशक, रक्तसंचार और जलन को नष्ट करता है। यह आंखों के रोग, घाव, दर्द, प्रमेह, मूत्ररोग, प्यास, खांसी तथा विष……. ….
भुंई कंद (पहाड़ी कंद) में प्रायः सभी प्रकार के वे तत्व उपस्थित होते हैं जो केली कंद के अन्दर पाये जाते हैं। अंतर केवल इतना होता है कि केलीकंद के ऊपर झिल्ली रहती है और भूमि कंद में……. ….
भुंई आंवला बड़ा का पंचांग जीरा और मिश्री तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते है। इसे एक चाय के चम्मच के बराबर मात्रा में पीने से सूजाक रोग……. ….
बिधारा (समुद्रशोष) की जड़ और लकड़ी स्निग्ध, कडुवा, तीखा, कषैला, मधुर, उष्णवीर्य, कफ-नाशक, उत्तेजक, पाचन शक्तिवर्द्धक, अनुलोमक, दस्तावर, मेध्य, नाड़ी-बल्य, धातुवर्द्धक, गर्भाशय की सूजन तथा……. ….
आयुर्वेदिक मतानुसार यह वनस्पति सूजन को नष्ट करने वाली और घाव को भरने वाली होती है। इसके फल की पुल्टिस बनाकर फोड़ों पर रखने से फोड़ें फूट जाते है। इसके एक पूरे पौधे को पीसकर……. ….
बिच्छू बूटी (GIRARDIUIA HETEROPHYLLA) :
बिच्छू बूटी उष्ण वीर्य, वातकफनाशक और पित्त को बढ़ाने वाला होता है। इसके सूखे पत्तों की चाय पीने से कफजन्य बुखार दूर हो जाता है। वातरोग, श्वांस रोग तथा खांसी में……. ….
बिदारीकंद (भुई कुम्हड़ा) (IPOMOEA PANICULATA) :
बिदारीकंद स्वाद में कडुवा और तीखा होता है तथा यह कषैला, मधुर, शीतवीर्य, स्निग्ध, अनुकुल, पित्तशारक (पित्त से उत्पन्न कब्ज को नष्ट करने वाला), वीर्यवर्द्धक, कामोत्तेजक, रसायन (वृद्धावस्था नाशक औषधि), बलवर्द्धक, मूत्रवर्द्धक……. ….
बिही (cydionia vulgaris) :
बिही अग्निमांद्य, अरुचि, उल्टी, प्यास, पेट दर्द, मस्तिष्क विकार, बेहोशी, सिरदर्द, हृदय दुर्बलता, रक्तविकार, यकृतविकार, खून की कमी, रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ, पैत्तिक विकार, सामान्य दुर्बलता……. ….
बिखमा (ACONITUM PALMATUM) :
बिखमा तीखा, कटु विपाक, उष्णवीर्य, कफवातहर, पाचन, संकोचक, कटु, पौष्टिक, दर्दनाशक, पेट के कीड़े, बुखार, अग्निमांद्य, अजीर्ण, अफारा, अतिसार (दस्त) ग्रहणी, उल्टी, हैजा, आमाशय तथा आंतों से……. ….
बिल्ली लोटन (CYDONIA VULGARIS) :
बिल्ली लोटन प्रकृति में गर्म, रुखा, उत्तेजक, हृदय के लिये लाभकारी, रक्तशोधक, मुंह की दुर्गन्ध को दूर करने वाला, श्वांसरोग नाशक, स्मरणशक्तिवर्द्धक, आमाशय और कामशक्ति को……. ….
बिना (AVICENNIA OFFICINALIS) :
चेचक से पीड़ित रोगी को इसकी छाल का सेवन करने से लाभ मिलता है। शरीर के घावों और फोड़ों को पकाने के लिए “बिना” के कच्चे फलों या बीज को पीसकर……. ….
बिरंजासिफ (पहला घास) (ACHILLEA MILLEFOLIUM) :
बिरंजासिफ के फूल गर्म प्रकृति के रुखे और स्वाद में कड़वे होते है। यह पेट को साफ करता है तथा मासिक धर्म की अनयिमितता, मासिक स्राव के समय होने वाला दर्द, घाव को भरना, मूत्र लाना, उत्तेजक, पेट के कीड़ों को……. ….
बिषफेज (POLYPODIUM) :
बिषफेज प्रकृति में गर्म, रुखा, स्वाद में तीखा, हल्का कषैला होता है। यह गले में जमे हुए कफ गलाकर बाहर निकाल देता है। यह दर्द को दूर करने, वायुरोग को नष्ट करने, सूजन को दूर……. ….
ब्रह्मदंडी (TRICHOLEPSIS GLABERRIMA) :
ब्रह्मदंडी तीखा, उष्णवीर्य, कामवासना को बढ़ाने वाला, याददाश्त का बढ़ाने वाला, शरीर को मज्जातंतुओं को मजबूत बनाने वाला, रक्त को शुद्धि करने वाला, घावों को भरने वाला, कफ, वात, सूजन……. ….
ब्रह्मकमल (SAUSSUREA OBVALLATA) :
ब्रह्मकमल के फूलों के तेल से सिर की मालिश करने से मिर्गी के दौरे तथा मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। ब्रह्मकमल के फूलों की राख को लीवर की वृद्धि में शहद के साथ……. ….
बुई (OTOSTEGIA LIMBATA “BENTH) :
यह जड़ी बूटी हृदय के लिए बहुत ही लाभकारी होती है। यदि किसी रोगी का हृदय अधिक दुर्बल और अव्यवस्थित हो तथा बुखार भी आता हो तो उसके लिए इसका……. ….
भारत में बरगद के पेड़ को पवित्र माना गया है, इसे पर्व व त्यौहारों पर पूजा जाता है। इसके पेड़ बहुत ही बड़ा व विशाल होता है। बरगद की शाखाओं से जटाएं लेटकर जमीन तक पहुँचती है और तने का रुप ले लेती………………
ब्रह्मदण्डी खून को साफ करता है, घावों को भरता है, वीर्य की कमजोरी को दूर करता है। यह दिमाग और याददाश्त की शक्ति को बढ़ाता है। त्वचा के सफेद दाग और बीमारियों को दूर करता है। यह गले और चेहरे को साफ………………
बरही को खाने से दिल खुश होता है। यह मेदा(आमाशय) और जिगर को ताकत देता है। इससे शरीर के मुख्य स्थान को बल प्रदान करता है, गले की आवाज को साफ करता है, खाँसी, दमा और कफ (बलगम) को दूर करत………………
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खिरैटीपानी बरियारी स्निग्ध है। यह रुची को बढ़ाती है और शरीर को मजबूत बनाती है। यह वीर्य को बनाती है। यह ग्राही, वात, पित्त् को खत्म करता है और पित्तासार को खत्म करता है। यह कफ(बलगम) को दूर करत………………
मीठा नीम सन्ताप, कोढ़(कुष्ठ) और रक्तविकार(खून के रोग) को खत्म करता है। यह पेट के कीड़े, भूत बाधा और कीड़ो के काटने से उत्पन्न जहर को खत्म करता………………
बथुआ दो प्रकार का होता है जिसके पत्ते बड़े व लाल रंग के होते हैं। उसे गोड वास्तुक और जो बथुआ जौ के खेत में पैदा होता है। उसे शाक कहते हैं। इस प्रकार बथुआ छोटा, बड़ा, लाल व हरे होने के भेद से दो प्रकार के होते………………
बथुए के बीज गांठों को दूर करता है। यह दस्तों को लाने वाला, जलोदर और कांबर के लिए बहिता ही लाभकारी होता है। यह पेशाब करने में परेशानी को दूर करता है। बथुआ का बीज गुर्दे और आंतों की कमजोरी को दूर………………
यह चरपरी, गर्म, कड़वी होती है और भूख को बढ़ाती है। बवई दिल के लिए फायदेमंद है। यह जलन पैदा करती है, खूजली, वमन(उल्टी) और विष को दूर करती है। यह………………
दस्तावर(पेट को साफ करने वाला) और दिल के लिए अच्छा होता है, सूखे, कफ(बलगम), रक्तपित(खून पित्त), साँस(दमा), कुष्ठ(कोढ़), प्रमेह(वीर्य विकार), ज्वर(बुखार)………………
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भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में बायबिडंग की मोटी वा बड़ी-बड़ी लतायें, अपने आप उगकर पास के पेड़ के सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाती है। इसकी शाखाएं खुरदरी, गठों वाली, बेलनाकार, लचीली और पतली होती है। इसके पत्ते 2 से………………
यह वीर्य को बढ़ाता है। इससे वीर्य खूब पैदा होता है और गाढ़ा होता भै। यह पीठ की हड्डियों और कमर को बलवान बनाता है………………
बेल का पेड़ बहुत प्राचीन काल से है। इस पेड़ में लगे हुए पुराने पीले फल दुबारा हरे हो जाते हैं तथा इसको तोड़कर सुरक्षित रखे हुए पत्ते 6 महीने तक ज्यों का त्यों बने रहते हैं और यह गुणहीन नहीं होता है। इस पेड़ की……………...
वेलिय पीपल हल्का, स्वादिष्ट कड़वा और गर्म होता है। यह मल को रोकता है। वेलिया पित्त जहर और खून की खराबी से होने वाले रोगों को दूर करता है………………
बैंगन Eggplant :
बैंगन का लैटिन नाम- सोलेनम मेलोजिना है और अग्रेजी भाषा में इगपलेंट नाम से जाना जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही बैंगन सर्वत्र होते हैं। बैंगान की लोकप्रियता स्वाद और गुण के नजर से ठंडी के मौसम………………
बेंत :
दोनों तरह के बेंत शीतल, कड़वे, चरपरे, कफ(बलगम), वात, पित्त, जलन, सूजन, बवासीर, पथरी, पेशाब करने में परेशानी, दस्त, रक्त विकार, योनि रोग, कोढ़ और जहर………………
बेर :
बेर का पेड़ हर जगह आसानी से पाया जाता है। बेर के पेड़ में काँटे होते हैं। बेर का आकार सुपारी के बराबर होता है। इसके अनेक जातियां है। जैसे- जंगली बेर, झरबेरी, पेवंदी, बेर आदि। इसके पेड़ पर बहुत अच्छी………………
बैरोजा :
बैरोजा मधुर, कड़वा, स्निग्ध, दस्तावर, गर्म, कषैला, पित्त और वातकारक, सिर रोग, आँखों का रोग, गले की आवाज, कफ(बलगम), जू(लीख) खुजली और घाव को दूर………………
बर बेल :
यह भूख को बढ़ाता है। बरबेल का रस पीने और खाने में कड़वा होता है। यह मल को रोकता है। वात से होने वाले रोगों को रोकता है। मूत्राशय, पथरी और पेशाब के रोगों………………
भांरगी Turk turban moon, clerodenrum serratu moon :
भांरगी रुचिकारी. अग्निदीपक(भूख को बढ़ाने वाली), गुल्म(न पकने वाला फोड़ा), खून की बीमारी, श्वास(दमा), खाँसी, कफ, पीनस(जुकाम), ज्वर,कृमि, व्रण(जख्म), दाह………………
भद्रदन्ती :
भद्रदन्ती चरपरी, गर्म, दस्तावर, कीड़ों को मारने वाले, दर्द को दूर करने वाला, कोढ़, आमावात(गठिया) और उदर रोग(पेट के रोग) दूर करने वाल होता………………
भद्रमोथा :
भद्रमोथा चरपरा, दीपन, पाचक, कषैला, रक्तपित्त, प्यास, बुखार, आरुचि(भोजन करने का मन न करना) और कीड़ों को दूर करता………………
भाही जोहरा :
भाही जोहरा सभी प्रकार के कफ और गाढ़े खून को दस्त के रास्तें बाहर निकालता है। यह गैस को मिटाता है और गठिया और कमर दर्द को दूर करता है।………………
भांग Indian hemp, knavish indika :
भांग के स्वयंजात पौधे भारत में सभी जगह पाये जाते हैं। विशेषकर भांग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं बिहार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। भांग के नर पैधे के पत्तों को सुखाकर भांग तथा मादा पौधे की रालीय पुष्प………………
भांग के बीज :
भांग के बीजों का अधिक मात्रा में उपयोग करने से पेशाब अधिक मात्रा में आता है। यह स्त्री प्रसंग में वीर्य को निकलने नहीं देता है। यह वीर्य को सूखा देता है और धातुओं को फाड़ता है। यह आँखों की रोशनी को कम………………
भांगरा Treling eklipta, Eklipta postrata :
घने मुलायम काले कुन्तल केशों के लिए प्रसिद्ध भांगरा के स्वयंजात क्षुप 6,000 फुट की ऊंचाई तक आद्रभूमि में जलाशयों के समीप 12 महीने उगते हैं। इसकी एक और प्रजती पीत भृंगराज पाई जाती है जिसके पौधे बंगाल………………
बाबूना गाव (COTULA ANTHMOIDES) :
बाबूना गाव प्रकृति में गर्म और रुखा होता है। इसके गुण बाबूना के ही समान होते हैं। यह कफ और वात के विकार को मल के साथ………………
श्वांस और खांसी से पीड़ित रोगी को बच सुगंधा के जड़ के टुकड़े को पान के बीड़े के साथ रखकर चबाकर खाने से लाभ होता है। इससे मुंह से सुगंध……. ….
बच्छनाग (श्वेत या दूधिया) के गुण काले बच्छनाग के गुणों के समान परन्तु विशेष होते हैं। इसे थोड़ी सी मात्रा में इसे बार-बार देने से दर्द तथा रक्त के……. ….
काला बच्छनाग लघु, रुखा, गर्म, विपाक, तीखा, कषैला, मादक, होता है। यह अपने रुक्ष गुण से वात को, उष्ण गुण से पित्त तथा रक्त को कुपित करता है। तीक्ष्ण गुण से यह बुद्धि को……. ….
बथुआ, लघु, स्निग्ध, मधुर, कटु, विपाक, शीतवीर्य, वात-पित्त-कफ नाशक, पेट को साफ करने वाला, दीपन, पाचक, अनुलोमक, यकृत उत्तेजक, पित्त सारक, मल-मूत्र को शुद्धि करने वाला, आंखों के लिए लाभकारी……. ….
बलसां (BALSEMODENDRON OPOBALSAMUM) :
बलसा का तेल, गर्म, स्निग्ध, कफनिवारक, बाजीकारक, मस्तिष्क बलदायक, सूजाक, सूजन, मिर्गी, तथा घाव आदि के लिए विशेष उपयोगी होता है। यह श्वांस-खांसी, जूकाम, बूढ़ों की……. ….
बादाम देशी (TERMINALIA CATAPPA) :
देशी बादाम की छाल-ग्राही, संकोचक तथा मूत्रवर्द्धक होता है। इसकी छाल का काढ़ा सूजाक और प्रदर में लाभकारी होता है। इसके बने हुए छालों से घावों को धोने से घाव जल्दी भर जाते हैं। काढ़े का कुल्ला करने से……. ….
बन उड़द (JASSIEUA SUFFRUTICOSA) :
बन उड़द लघु, स्निग्ध, तिक्त, मधुर, विपाक, शीतवीर्य, वात-पित्तशामक, कफवर्द्धक, उत्तेजक, स्नेहन, अनुलोमन, ग्राही, रक्तवर्द्धक व शोधक, रक्तपित्त नाशक, सूजन को दूर करने वाला, कामवासना को……. ….
बनफ्शा (VIOLA ODORATA) :
बनफ्सा कफ और शीत रोगों के लिए लाभकारी होता है। यह वातपित्त को नष्ट करने वाला, कफ को दूर करने वाला, पित्तनाशक, अनुलोमन, रेचन, रक्त के विकारनाशक, जलन को……. ….
बंदाल आकार में छोटा, स्वाद में रुखा, तीखा, कडुवा, तीखा, उष्णवीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाल, उल्टी, रक्त को शुद्ध करने वाला, आंतों के कीड़ों को नष्ट करना, सूजन को दूर करना, कफ को गलाकर बाहर निकालना, बंद माहवारी……. ….
बनमेथी के सेवन करने से स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। यह घावों को शीघ्र भरने वाला होता है। इसकी जड़ का उपयोग मेद को नष्ठ करने में किया जाता है तथा यह मूत्रवर्द्धक……. ….
मीठा बादाम भारी, स्निग्ध, मीठा, गर्म, वायु रोगनाशक, कफपित्त वर्द्धक, उत्तेजक, स्नेहन, लेखन, अनुलोमक, मल को आसानी से निकालना, कफ को गला कर बाहर निकालना, मूत्रवर्द्धक, धातुकारक, बलवर्द्धक, बाजीकारक, स्त्रियों के स्तनों में दूध की……. ….
बादावर्द पौष्टिक, पेट को साफ करने वाला, रक्तस्तम्भक, दर्द को नष्ट करने वाला, गर्भधारण में सहायक तथा पुराने से पुराने अतिसार को……. ….
बधारा (ERIOLAENA QUNI) :
बधारा कडुवा, तीखा, सुगंधित, संकोची, पिच्छिल, शांतिवर्द्धक, धातुपरिवर्तक, मूत्रवर्द्धक, कामशक्तिवर्द्धक, कफनाशक, कमर का दर्द, जोड़ों का दर्द, उपदंश, प्रमेह, सूजाक आदि……. ….
बादियान खताई (ILLICIUM VERUM) :
बादियान खताई के फल मीठे, दीपन, पाचक, उत्तेजक, दर्द को दूर करने वाला, उदर-वातहर, कफघ्न, मूत्रवर्द्धक, सारक है। यह अपच, अग्निमांद्य, बुखार, अतिसार (दस्त), प्रवाहिका, आध्यान, जुकाम, खांसी, आदि विकारों में……. ….
बहमन सफेद (CENTAUREA) :
बहमन सफेद लघु, कसैला, मीठा, उष्णवीर्य, मधुऱ विपाक, वात, कफ, पित्तनाशक, दीपन (उत्तेजक), अनुमोलन, रक्तस्तम्भक, वेदना स्थापक, धातुवर्द्धक, बालों की वृद्धि, श्वासनलिका तथा अन्य अंगों की सूजन……. ….
बैबीना (MUSSSAENDRA FRONDOS) :
बैबीना गर्म, कडुवा, कषैला, तीव्र गंध, कफ-वातनाशक, दीपन (उत्तेजक), सफेद दाग, कफ, भूत-प्रेत, ग्रह-पीड़ा निवारक, धातु परिवर्तक, तथा मूत्रवर्द्धक होता है। इसकी जड़……. ….
बाकला (PHASSSEOLUS VOLGARIS) :
बाकला की ताजी फली अकेले या मांस के साथ पकाकर खाने से पुष्टि प्राप्त होती है। सूखे और ताजे बीजों की सब्जी भी बनाते हैं। बाकला के सूखे बीजो के छिलके को निकालकर……. ….
बाकेरी मूल (CAESALPINIA DIGYNA) :
बाकेरीमूल, उष्णवीर्य, सांभक, वातनाशक, शोधक, त्वचा के विकार, कीटाणुनाशक और घाव को भरने वाला होता है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से यह मदकारक (नशीला) प्रभाव डालता है। इसका उपयोग करने से……. ….
बनलौंग (JESSIEUA SUFFRUTICOSA) :
बनलौंग के पंचांग को पीसकर मट्ठे के साथ देने से रक्तातिसार, रक्तामातिसार, कफ के साथ जाना आदि किसी भी अंग से होने वाले रक्तस्राव में लाभ होता है। इसकी जड़ या छाल का काढ़ा……. ….
बनमूंग (PHASEOLLOUS TRILOBUS AIT) :
बनमूंग आकार में छोटा, रुखा, तीखा, मधुर, शीतवीर्य, त्रिदोषनाशक (वात-पित्त-कफ), दीपन (उत्तेजक), अनुलोमन, ग्राही, रक्त के विकार, जलन, जीवनीय, रक्तपित्तनाशक, सूजन……. ….
बराहंता (TRAGIA INVOLUCRATA) :
शरीर की त्वचा पर होने वाली खाज-खुजली, छाजन (त्वचा का रोग) तथा त्वचा के अन्य विकारों को नष्ट करने के लिए इसकी जड़ को तुलसी के रस……. ….
बाराही कन्द (रतालू) (DIOSCOREA BULBIFERA) :
बाराही कंद आकार में छोटा, स्निग्ध, कडुवा, तीखा, मधुर, उष्णवीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, दीपन (उत्तेजक), ग्राही, रक्त संग्राहक, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, तथा……. ….
बराही कन्द (रतालू, भेवर कन्द) (TACCA ASPERA) :
यह कडुवा, तीखा, उष्णवीर्य, पित्तकारक, रसायन (वृद्धावस्थानाशक औषधि), कामोद्दीपक, वीर्य, भूख और चेहरे की चमक बढ़ाने वाला होता है। यह सफेद दाग, प्रमेह, पेट के कीड़े, बवासीर……. ….
बारतंग (PLAANTAGO MAJUR) :
बारतंग शीत, रुखा, संग्राहक तथा दर्दनाशक होता है। गर्मी के कारण उत्पन्न अतिसार (दस्त) या आमातिसार में तो ईसबगोल ही विशेष लाभदायक होता है किन्तु ठंड से उत्पन्न दस्त में……. ….
बरमूला (बरमाला) (CALLICARPA ARBOREA) :
बरमूला की छाल विशेषरुप से सुगंधित, कड़वी, पौष्टिक तथा त्वचा के विकारों को नष्ट करने वाला……. ….
बारतंग (PLAANTAGO LANCEOLATA) :
बारतंग के पत्तों का ताजा रस या सूखे पत्तों का लेप घावों पर करने से घावों की जलन, सूजनयुक्त चट्टे या फोड़ों का दर्द नष्ट होता है। इसके रस घावों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है जिससे घाव……. ….
बसंत (HYPSRICOM PERFORATUM) :
बसंत पौधे के पत्तों का स्वाद तीखा होता है तथा ये पाचनशक्तिवर्द्धक, पेट के कीड़े, बवासीर, कानों का दर्द, अतिसार (दस्त), बच्चों का कांच निकलना, योनि के घाव तथा बिच्छु के विष……. ….
बसट्रा (CALLICARPA LANATA) :
बसट्रा की जड़ तथा छाल का काढ़ा बुखार, पित्त प्रकोप, यकृतावरोध, शीतपित्त और त्वचा के रोगों में दिया जाता है। इसकी जड़ या छाल के चूर्ण के एक भाग मात्रा को लगभग बीस भाग जल में……. ….
बथुवा विदेशी (CHENOPODIUM AMBROSIOIDES) :
बथुवा (विदेशी) क्षारयुक्त, मधुर, बलवर्द्धक तथा त्रिदोष (वातपित्तकफ) नाशक होता है। इसके पत्ते और कोमल डंठलों का साग भी बनाया जाता है। प्राचीनकाल में आदिवासी लोग घरेलू इलाज……. ….
बायविडंग (EMBELIA RIBES) :
बायविडंग आकार में छोटा, रुखा, तीखा, कडुवा, गर्म, कफनाशक, पाचक, दस्तावर, रक्तशोधक, आंतों के कीड़ों को नष्ट करने वाला, मूत्रल (मूत्रवर्द्धक) होता है। इसके अतिरिक्त यह……. ….
भांट (CLERODENDRON INFORTUNATUM) :
बच्चों के लंबे पेट के कीड़ों वाले रोग में भांट के पत्तों के रस को पीसकर मिलाते है। पेट के दर्द और दस्त में भांत की जड़ को तक्र में पीसकर मिलाते है। त्वचा के रोगों में भांट का लेप त्वचा के……. ….
बांझ ककोड़ा(बंध्या कर्कोटकी) :
बांझ ककोड़ा बलगम को दूर करने वाला, जख्मों को साफ करने वाला, सांपों के जहर को समाप्त करने वाला होता है………………
भसींड़ :
भसींड़ कषैला होता है, यह मीठा, भारी तथा मल को रोकने वाला होता है। यह आँखों के लिए लाभकारी, वीर्यवार्द्धक, रक्त पित्त, जलन, प्यास, बलगम और वातपित्त को दूर करती है। यह गुल्म, पित्त, खाँसी, पेट के कीड़े,………………
भटकटैया :
भटकटैया, कटैया, वेगुना भटकटैय के ही नाम है। इसे भी कटेरी(चोक) का ही भेद है। यह जमीन से 2-3 फुट ऊंचा होता है। इसमें छोटे बैंगन जैसा फल लगता है और बैंगन जैसे ही कटीले पत्ते होते हैं। इसमें पीले, चित्तीदार फल………………
भटकटैया बड़ी :
भटकटैया बड़ी के फल, कटु, तिक्त, छोटे, खुजली को नष्ट करने वाले, कोढ़(कुष्ठ), कीड़े, बलगम तथा गैस को खत्म करने वाले होते हैं। इसके बाकी गुण छोटी भटकटैया के,………………
भटकटैया छोटी :
यह मल को रोकती है, दिल के लिये फायदेमंद होती है, पाचक होता है। यह कफ(बलगम) और गैस को खत्म करती है। भटकटैया कड़वी होती है। यह मुँह की नीरसता को दूर करती है, अरुची(भोजन करने का मन न करना)………………
भटकटैया सफेद :
भटकटैया सफेद चरपरी, गर्म,आँखों के लिए फायदेमंद होती है। यह भूख को बढ़ाती है। यह गर्भ को स्थापन करने वाली तथा पारे को बांधने वाली, रुचिकारक, कफ(बलगम) और वात को खत्म करने वाली है। इसके गुण………………
भटवांस :
यह मधुर, रूखा, खाने में खट्टी होती है। यह बादी को दूर करता है और स्तनों में दूध भी बढ़ाती है। यह जलन, कफ(बलगम),सूजन और वीर्य को खत्म करता है। भटवांस खून की खराबी को रोकता है, जहर और आँखों………………
भिंडी :
मधुमेह का रोग भिंडी के डांड काट लें। इन डांडो को छाया में सुखाकर व पीसकर छान लें। इसमें बरबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर आधा-आधा चम्मच सुबह खाली पेट ठंडे पानी से रोजाना फांकी लेने से मधुमेह का रोग मिट जाता है।………………
भ्रमर बल्ली :
भ्रमर बल्ली तीखी, गर्म, कड़वी और रुचि को बढ़ाने वाली होती है। यह अग्नि को शांत करती है और गले के रोग को दूर करती है। यह गले के सभी रोगों को नष्ट करती………………
भुंई खखसा :
भुंई खखसा सफेद दाग को खत्म करता है। यह शरीर के सभी अंगों को शुद्ध करती है। यह जहर, दुर्गन्ध, खांसी, गुल्म और पेट के रोगों को ठीक करता है।………………
भूमि कदम्ब :
भूमि कदम्ब कड़वी, जख्म को सूखा देने वाला, शरीर को ठंडकता प्रदान करने वाला, तीखा तथा वीर्य को बढ़ाने वाला होता है। यह जहर और सूजन को खत्म करती है………………
भूरी छरीला :
भूरी छरीला तीखा, शीतल और सुगन्ध देने वाला होता है। यह हल्का और दिल के लिए हितकारी है। यह रुचि को बढ़ाता है और वात, पित्त, गर्मी, प्यास, उल्टी आदि को दूर करता है। इसका प्रयोग सांस(दमा), घाव, खुजली आदि के………………
भूसी(गेहूँ का चोकर) :
यह सूजन और बलगम को पचाती है और शरीर को शुद्ध और साफ करती है। यह छाती की खर-खराहट और पुरानी खाँसी व धांस को बंद करती है। इसके साथ काला नमक मिलाकर पोटली बनाकर सेंकने से रोंवों के मुँह………………
भूत्रण :
भूत्रण तीखा, कड़वा, गर्म, दस्त को लाने वाला और गर्मी उप्तन्न करने वाला है। यह अग्नि को प्रदीप्त करता है। यह रूखा, मुखशोधक और अवृष्य है। यह मल को बढ़ाता है और रक्त पित्त को दूषित करता है। यह गैस के रोगों को………………
बिछुआ घास :
बिछुआ घास पिच्छिल खट्टी, अन्त्रवृद्धि रोग को नष्ट करने वाली, शरीर को शक्तिशाली बनाले वाली, बिविन्ध को नष्ट करने वाली, दिल के लिए लाभकारी तथा वस्तिशोधक है। यह पित्त को ठीक रखता है तथा दिल को प्रसन्न रखता ………………
बिहारी नींबू :
बिहारी नींबू गैस, पित्त और बलगम तीनों ही रोगों को नष्ट करता है। इसका सेवन क्षय(टी.बी) और हैजा से पीड़ित रोगी ले लिए बहुत ही लाभकारी होता है। विष से पीड़ीत तथा मन्दाग्नि(भूख कम लगना) से ग्रसित रोगियों को………………
बिहीदाना :
इसका लुबाव गले की खरखराहट और गर्मी से होने वाली खाँसी के लिए अत्यंत ही लाभकारी होता है। यह आमाशय में गर्मी उत्पन्न नहीं होने देता है। यह ठंड लगकर बुखार आने, जलन, मुँह का सूखना और प्यास को रोकता………………
बिजौर मरियम :
बिहौर मरियम गांठों को गलाती है। गैस के रोगों को नष्ट करता है। यह पसीना अधिक लाता है। दूध बढ़ाता है। बिजौर मरियम कांवर के लिए लाभदायक होता है। इसकी घुट्टी पिलाने से बच्चों के दाँत आसानी से व शीघ्र ही………………
बिजौरे का छिलका :
यह दिल को प्रसन्न रखता है। कब्ज उत्पन्न करता है। खून को पित्त से साफ करता है। गर्मी से होने वाली वमन(उल्टी) को बंद करता है। यह दिल और आमाशय को शक्तिशाली बनाता है। आंतों की गर्मी को शान्त करता ………………
बिलाई लोटन :
बिलाई लोटन दिल और दिमाग को स्वस्थ्य व शक्तिशाली बनाता है। यह आमाशय को मजबूत करता है और याददाश्त और बुद्धि में वृद्धि करती है। बिलाई लोटन मन को प्रसन्न रखती है। यह कफ के सभी रोगों को नष्ट………………
बिल्लौर :
बिल्लौर सुरमा आँखों के अनेक रोगों को दूर करता है। बिल्लौर गले में लटकाने से छोटे बच्चों के रोग, आँखें निकल आना, शरीर में ऐंठन होना तथा सोते समय………………
बिनौला :
बिनौला धातु को पुष्ट करता है और संभोग में होने वाली सभी परेशानियों को दूर करता है। यह पेट और छाती को नरम रखता है। गर्मी की खाँसी को दूर करता है और स्त्रियों की बेहोशी के लिए यह बहुत ही लाभदायक है। यह ………………
बीरण गांडर :
बीरण गांडर ठंडी होती है तथा ठंडे बुखार को दूर करती है। इसकी गुण भी खश के गुणों के समान होते हैं।………………
वृत्तगंड :
वृत्तगंड मीठा और शीतल होता है। यह बलगम, पित्त और दस्तों को खत्म करता है। यह खून को साफ करता है। यह खून सम्बन्धी समस्त बीमारियों के लिए लाभदायक होता है। वृत्तगंड दो प्राकार का होता है, इन दोनों में………………
बोल :
बोल गैस से होने वाले रोगों को खत्म करता है। यह सर्दी से होने वाली सूजन को भी समाप्त करता है और दिमाग को स्वस्थ करता है। बोल का नशा करने से पेशाब और दस्त आता है। यह आंतों के दर्द और कीड़ों को नष्ट करता………………
बूट :
बूट का उपयोग करने से शरीर में खून, बलगम और पित्त की मात्रा बढ़ती है। यह शरीर को शक्तिशाली बनाता है। यह धातु को पुष्ट करता है और स्तम्भन शक्ति को बढ़ाता है। यह मुँह से निकलने वाली बदबू को खत्म करता………………
ब्रह्मी :
ब्राह्मी का पैधा हिमालय की तराई में हरिद्वार से लेकर बद्रीबारायन के मार्ग में अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो बहुत उत्तम किस्म का होता है। ब्राह्मी पौधे का तना जमीन पर फैलता है जिसकी गांठों से जड़, पत्तियां, फूल………………
बूदर चमड़ा :
बूदार चमड़े को जलाकर घावों पर लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। इसके बर्तन में पानी पीने से पागलपन खत्म हो जाता है………..
बुन :
यह गले की आवाज को साफ करता है, गांठों को तोड़ता है और दर्द को दूर करता है। बुन दिल को बलवान बनाता है और मन को प्रसन्न रखता है। यह धातु को पुष्ट करता है, खून को साफ करता है और पेशाब लाता है। यह ………………
बूरा :
बूरा का उपयोग बलगम को नष्ट करने, सीने की जकड़न को दूर करने और स्वभाव को कोमल(नर्म) बनाने में किया जाता………..
बाजरा :
बाजरा भारत में सभी जगह पायी जाती है। यह मेहनती लोगों का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कुछ लोगों का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल………………
बारतग :
बारतग एक प्रकार की लता होती है, जिसके पत्ते दिखने में बकरे के जीभ के समान लगता है। यह बूंटी बागों मे………………
बबूल :
वास्तव में बबूल रेगिस्तानी प्रदेशो का पेड़ है। बबूल के पेड़ की छाल एवं गोंद प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती है। यह कांटेदार पेड़ होते हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में बबूल के लगाये हुए तथा जंगली पेड़………………
बबूल का गोंद :
बबूल की गोंद का प्रयोग करने से छाती मुलायम होती है। यह मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है। यह आंतों को भी मजबूत बनाता है। यह सीने के दर्द को समाप्त करता है तथा गले की आवाज को साफ करता है। इसका………………
बबूना देशी या मारहट्ठी :
बाबूना देशी(मारहट्ठी) पेट के अन्दर की गांठों को खत्म करता है। इसके सेवन करने से कफ और वात को दस्त के रुप में बाहर निकालता है।………………
बच :
बच शरीर के खून को साफ करती है। इससे धातु की पुष्टि होती है। बच कफ(बलगम) को हटाती है और गैस को समाप्त करती है। दिल और दिमा को कफ के रोगों से दूर करती है। फलिज और लकवा से पीड़ित रोगियों के लिए………………
वेदमुश्क :
वेदमुश्क गांठों को तोड़ता है, दिमागी और गर्मी के दर्द को राहत देता है, दिल और पेट के कल पुरजों का बल बढ़ाता है। वेदमुश्क का रस काफी अच्छा होता है तथा यह मन………………
बादाम :
बादाम के पेड़ पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके तने मोटे होते हैं। इसके पत्ते लम्बे, चौड़े और मुलायम होते हैं। इसके फल के अन्दर की मिंगी को बादाम कहते हैं। बादाम के पेड़ एशिया में ईरान, ईराक………………
बड़हर :
आयुर्वेद के अनुसार कच्चा बड़हर शरीर के लिए गर्म होता है। यह शरीर में देर से पचाता है। यह शरीर के वात, कफ और पित्त के विकारों को दूर करता है। यह खून में उत्पन्न विकारों (खून की खराबी) को दूर करता है। बड़हर………………
बड़ी इलायची :
इलायची अत्यंत सुगन्धित होने के कारण मुंह की बदबू को दूर करने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसको पान में रखकर भी खाते हैं। सुग्न्ध के लिए इसे शर्बत और मिठाइयों में मिलाते हैं। मासालों तथा औषधियों में भी……………...
बहेड़ (Beleric Myrobolam) (Terminalia Belerica) :
बहेड़ा के पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लम्बे होते हैं। इसके पेड़ 60 से 100 फूट तक ऊंचे होते हैं और इसके छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। बहेड़ा के पेड़ पहाड़ों और ऊंचे भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ के लिए लाभदायक होता है। इसके………………
बहमन लाल :
इन्द्र जव और मछली से बहमन लाल की तुलना की जा सकती है। यह धातु को पुष्ट करता है तथा शरीर को मोटा ताजा और बलवान बनाता है। यह खून को साफ करता है और उसकी बीमारी को दूर करता है। यह मानसिक………………
बहमन सफेद :
बहमन सफेद धातु को पुष्ट करता है। यह शरीर को मोटा, ताजा और बलवान बनाता है। यह गर्मी अधिक पैदा करता है और दिल-दिमाग(मन और मस्तिष्क) को बलवान बनाता है। यह गैस को दूर करता है तथा कफ………………
वज्रदन्ती :
वज्रदन्ती के प्रयोग से दांत के रोग ठीक हो जाते हैं। इसके पत्तों और पानी को कत्था डालकर उबालने पर गुनगुने पानी से कुल्ली करने से दांतों से खून का गिरना………………
बकाइन/ बकायन का फल :
बकायन का पेड़ बहुत बड़ा होता है। नीम की तरह बकायन के पत्ते भी गांवों में पाये जाते हैं। इसके पत्ते कड़वे नीम के समान तथा आकार में कुछ बड़े होते हैं। बकायन की लकड़ी का प्रयोग इमारती कामों के लिए………………
बकरी का दूध :
बकरी का दूध मन को प्रसन्न रखता है। मुँह में खांसी के साथ आने वाले खून के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। बकरी का दूध फेफड़ों के घाव और गले की पीड़ा को दूर करता है। यह पेट को शीतलता प्रदान करता है। बकरी………………
बकुची(बावची) (Esculeut Fiacourtia) (Fabaceae)(Psoralia Corylifolia) :
बकुची के पौधे पूरे भारत में कंकरीली भूमि और झाड़ियों के आसपास उग आते हैं। कहीं-कहीं पर इसकी खेती भी की जाती है। औषधि के रुप में इसके बीज और बीजों से प्राप्त तेल का व्यवहार किया जाता है। बकुची पर शीतकाल………………
बाल :
आग से जले हुए घाव पर बाल लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। बालों को पीसकर सिरका में मिलाकर फोड़े-फुंसियों में लगाने से आराम मिलता है। यह बरबट की सूजन को मिटाता है। इसकी बारीक पिसी हुई चुटकी………………
बालछड़ :
यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। बालछड़ के सेवन से आमाशय पुष्ट होता है और पथरी को गलाता है। यह मुँह की दुर्गन्ध को दूर करता है। इसका सुरमा बनकर लगाने से आँखों की देखने की………………
बालगों :
यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह पागलपन और दिल की घबराहट को दूर करता है। यह दस्त के लिए गुलाब के रस के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए। यह पेचिश और पेट के मरोड़ को खत्म………………
बालू :
बालू ठंडा होता है। यह गर्मी को समाप्त करता है तथा फोड़ों को ठीक करता है। यह घावों मुख्य रुप से सीने के घावों को भरता है। इससे सिकाई करने से वात रोग समाप्त हो जाता है। आमवात(गठीया) और जलोदर(पेट में………………
बालूत :
बालूत से कब्ज पैदा होती है तथ यह दस्तों को रोकता है। यह शरीर के किसी भी भाग से खून का निकलना बन्द करता है और यह मुख्यतः मुँह से निकलने वाले खून को बन्द करता है। यह आंतों के घावों और उससे पैदा हुए………………
बन चटकी :
बन चटकी के फूल और पत्तों को पीसकर किसी भी प्रकार के सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है। इससे पेशाब खुलकर आता है। प्रसव के दौरान गर्भवती महिला को इसे………………
बनकेला :
बनकेला के विभिन्न गुण होते हैं। यह ठंडक प्रदान करती है। बनकेला खाने में मीठा और स्वादिष्ट होता है तथा इसके फल रस से भरा होता है। यह शरीर को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह मनुष्य की धातु शक्ति को………………
बांदा :
बांदा, बलगम, वात, खूनी विकार फोड़े और जहर के दोषों को समाप्त करता है। बांदा भूत से संबंधित परेशानियों को दूर करता है। वंशीकरण आदि कार्यो में इसका प्रयोग किया जाता है। यह वीर्य को मजबूत करता है और बढ़ाता………………
बंडा आलू :
बंडा आलू स्त्री प्रसंग की इच्छा को बढ़ाता है। यह नपुंसकता को दूर करता है। बंडा आलू खून की बीमारी यानी खून के फसाद को मिटाता है तथा यह पेशाब का रुक-रुक कर आनी (मूत्रकृछ)की बीमारी को खत्म करता………………
बन्दाल Bristilufiya, Lyufayekineta :
बन्दाल कड़वी, वमनकारक, बलगम, बवासीर, टी.बी. हिचकी, पेट के कीड़ों तथा बुखार को समाप्त करता है। इसका फल गुल्म, दर्द तथा बवासीर को दूर करता है।………………
बंगलौरी बैंगन :
बंगलौरी बैंगन का कर्नाटक में दाल, चटनी व सब्जियों को बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसमें पानी का तत्व लगभग 93 प्रतिशत होता है और इसमें कैल्शियम भी पाये जाते हैं। कम कैलोरी वाली सब्जी होने के कारण यह………………
बनियाला :
यह पित्त को नष्ट करता है। यह पित्त से पीड़ित रोगियों के लिए यह बहुत ही लाभकारी होता है।………………
बांझ खखसा :
बांझ खखसा बलगम और स्थावर विषों (जहरों) को समाप्त करती है। पारे को बांधता, घावों को शुद्ध(साफ) करत है, सांप के जहर पर इसको लगाने से जहर का असर उतर जाता है। यह आँखों की बीमारी, सिर के रोग, कोढ़, खून………………
बनककड़ी :
यह गर्म तथा कड़वी होती है। यह भेदक, बलगम को खत्म करने वाले, पेट के कीड़े और खुजली को दूर करता है तथा बुखार को खत्म करता है।………………
बनपोस्ता :
बनपोस्ता आँखों के घावों को ठीक करता है और मुँह में लार की मात्रा को बढ़ाता है। बनपोस्ता एक प्रकार की घास होती है, जो बिल्कुल पोस्तादाना के समान होती है।………………
बांस (Bambu), (Bambu savlgerees) :
बांस का पेड़ भारत में सभी जगहों पर पाया जाता है। यह कोंकण(महाराष्ट्र) में अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह 25-30 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते लम्बे होते हैं। बांस का पेड़ बहुत मजबूत होता है। इसका अन्दाज इस………………
बंशलोचन :
बंशलोचन शरीर की धातुओं को बढ़ाता है। यह वीर्य की मात्रा में वृद्धि करता है और धातु को पुष्ट करता है। बंशलोचन स्वादिष्ट और ठंडा होता है तथा प्यास को रोकती है। बंशलोचन खाँसी, बलगम, बुखार, पित्त खून की………………
बरक :
बरक प्यास को बढ़ाता है। दाँतों के दर्द को रोकता है, हाजमा ठीक करता है, मेदा(आमाशय) को बलवान बनाता है। गर्मी के बुखार और सूखी तथा गीली खांसी में यह फायदा करती है। अगर गले में जोक फस जायें तो यह………………
बर्फ :
प्रसव के समय शिशु का सांस न लेना बच्चे के जन्म के बाद बच्चा न रोता हो और सांस भी न ले रहा हो और वह जिंदा हो तो, उसके गुदा द्वार पर बर्फ का टुकड़ा रख दें। इससे बच्चे की सांस चलने लगेगी और रोने लगेगा।………………
बायबिडंग (गैया, बेवरंग) (EMBELIA ROBUSTA) :
बायबिडंग (गैया, बेवरंग), वातानुमोलक, कोष्ठवात, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, बवासीर तथा सूजन में विशेष रुप से……. ….
बैद लैला (Salix Tetrasperma) :
बेद लैला के लगभग सभी गुण बेद-मुश्क के जैसे ही होते है। बेद लैला छाल का काढ़ा कड़वा तथा बुखारनाशक होता है। इसके फूलों का रस बेद-मुश्क के रस के समान ही जलननाशक……. ….
बेद-मुश्क (Salix Caprea) :
बेदमुश्क चिकना, कड़वा, तीखा, ठंडा, वीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, पाचन शक्ति बढ़ाने वाला, जलन को समाप्त करने वाला, लीवर को बढ़ाने वाला, खून को जमाने वाला, मूत्रवर्द्धक, कामवासना को……. ….
बेद-सादा (SALIX ALBA) :
बेद सादा ठंडा, रुखा, कड़वा, तीखा, सुगंधित, जलन को शांत करने वाला, दिल और दिमाग के लिए ताकत, सौमनस्यजनक, मूत्रवर्द्धक, दर्द को दूर करने वाला और पैत्तिक बुखार……. ….
बेकल (विंककत) (GYMNNOSPORIA MONTANA) :
बेकल के पत्तों में भी कई गुण मौजुद होते है। खून की खराबी, बवासीर, पेचिश, पीलिया, सूजन और पित्तविकार पर इसके पत्तों के काढ़े में शक्कर मिलाकर पिलाते है। इससे पाचन शक्ति……. ….
बेलन्तर (DICHROSTACGYS CINEREA) :
बेलन्तर का फल तीखा, गर्म, खाने में कड़वा, भोजन की पाचन शक्तिवर्द्धक, मलरोधक है। स्त्रियों के योनिरोग, वातविकार, जोड़ो का दर्द और पेशाब के रोगों में भी……. ….
भगलिंगी (BHANGLINGES) :
भगलिंगी उपलेपक, सूजन को दूर करने वाला और चिरगुणकारी पौष्टिक है। भूख ना लगना और भोजन करने का मन ना करना के रोग में भगलिंगी की जड़ को काली मिर्च……. ….
भटवांस भारी, रुखा, मीठा, तीखा, चरपरा, उष्णवीर्य, कड़वा, खाने में खट्टा, दस्त लाने वाला, स्तनों में दूध की वृद्धि, पित्त और खून बढ़ाने वाला, टट्टी-पेशाब को रोकने वाला, कफ विकार, सूजन, जहर को……. ….
भूतकेशी की जड़ पौष्टिक, मूत्रवर्द्धक, धातु परिवर्तक और बुखार को दूर करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसे उपदंश की विकृति, कंठमाला और चर्म रोगों को समाप्त करने के लिए……. ….
भोरंग इलायची के बीज संकोचक और बलकारक होते है। इसके चूर्ण का मंजन करने से दांत दृढ़ और चमकीले रहते है। इसके रासायनिक तत्त्व बड़ी इलायची के रासायनिक तत्त्वों से मिलते हुए होते हैं। चीनी नागरिक इसके बीजों का……. ….
भुंई आंवला का रस मीठा, अनुरस, कड़वा, रुचिकर, छोटा, शीतवीर्य, पित्त-कफनाशक, रक्तसंचार और जलन को नष्ट करता है। यह आंखों के रोग, घाव, दर्द, प्रमेह, मूत्ररोग, प्यास, खांसी तथा विष……. ….
भुंई कंद (पहाड़ी कंद) में प्रायः सभी प्रकार के वे तत्व उपस्थित होते हैं जो केली कंद के अन्दर पाये जाते हैं। अंतर केवल इतना होता है कि केलीकंद के ऊपर झिल्ली रहती है और भूमि कंद में……. ….
भुंई आंवला बड़ा का पंचांग जीरा और मिश्री तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते है। इसे एक चाय के चम्मच के बराबर मात्रा में पीने से सूजाक रोग……. ….
बिधारा (समुद्रशोष) की जड़ और लकड़ी स्निग्ध, कडुवा, तीखा, कषैला, मधुर, उष्णवीर्य, कफ-नाशक, उत्तेजक, पाचन शक्तिवर्द्धक, अनुलोमक, दस्तावर, मेध्य, नाड़ी-बल्य, धातुवर्द्धक, गर्भाशय की सूजन तथा……. ….
आयुर्वेदिक मतानुसार यह वनस्पति सूजन को नष्ट करने वाली और घाव को भरने वाली होती है। इसके फल की पुल्टिस बनाकर फोड़ों पर रखने से फोड़ें फूट जाते है। इसके एक पूरे पौधे को पीसकर……. ….
बिच्छू बूटी (GIRARDIUIA HETEROPHYLLA) :
बिच्छू बूटी उष्ण वीर्य, वातकफनाशक और पित्त को बढ़ाने वाला होता है। इसके सूखे पत्तों की चाय पीने से कफजन्य बुखार दूर हो जाता है। वातरोग, श्वांस रोग तथा खांसी में……. ….
बिदारीकंद (भुई कुम्हड़ा) (IPOMOEA PANICULATA) :
बिदारीकंद स्वाद में कडुवा और तीखा होता है तथा यह कषैला, मधुर, शीतवीर्य, स्निग्ध, अनुकुल, पित्तशारक (पित्त से उत्पन्न कब्ज को नष्ट करने वाला), वीर्यवर्द्धक, कामोत्तेजक, रसायन (वृद्धावस्था नाशक औषधि), बलवर्द्धक, मूत्रवर्द्धक……. ….
बिही (cydionia vulgaris) :
बिही अग्निमांद्य, अरुचि, उल्टी, प्यास, पेट दर्द, मस्तिष्क विकार, बेहोशी, सिरदर्द, हृदय दुर्बलता, रक्तविकार, यकृतविकार, खून की कमी, रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ, पैत्तिक विकार, सामान्य दुर्बलता……. ….
बिखमा (ACONITUM PALMATUM) :
बिखमा तीखा, कटु विपाक, उष्णवीर्य, कफवातहर, पाचन, संकोचक, कटु, पौष्टिक, दर्दनाशक, पेट के कीड़े, बुखार, अग्निमांद्य, अजीर्ण, अफारा, अतिसार (दस्त) ग्रहणी, उल्टी, हैजा, आमाशय तथा आंतों से……. ….
बिल्ली लोटन (CYDONIA VULGARIS) :
बिल्ली लोटन प्रकृति में गर्म, रुखा, उत्तेजक, हृदय के लिये लाभकारी, रक्तशोधक, मुंह की दुर्गन्ध को दूर करने वाला, श्वांसरोग नाशक, स्मरणशक्तिवर्द्धक, आमाशय और कामशक्ति को……. ….
बिना (AVICENNIA OFFICINALIS) :
चेचक से पीड़ित रोगी को इसकी छाल का सेवन करने से लाभ मिलता है। शरीर के घावों और फोड़ों को पकाने के लिए “बिना” के कच्चे फलों या बीज को पीसकर……. ….
बिरंजासिफ (पहला घास) (ACHILLEA MILLEFOLIUM) :
बिरंजासिफ के फूल गर्म प्रकृति के रुखे और स्वाद में कड़वे होते है। यह पेट को साफ करता है तथा मासिक धर्म की अनयिमितता, मासिक स्राव के समय होने वाला दर्द, घाव को भरना, मूत्र लाना, उत्तेजक, पेट के कीड़ों को……. ….
बिषफेज (POLYPODIUM) :
बिषफेज प्रकृति में गर्म, रुखा, स्वाद में तीखा, हल्का कषैला होता है। यह गले में जमे हुए कफ गलाकर बाहर निकाल देता है। यह दर्द को दूर करने, वायुरोग को नष्ट करने, सूजन को दूर……. ….
ब्रह्मदंडी (TRICHOLEPSIS GLABERRIMA) :
ब्रह्मदंडी तीखा, उष्णवीर्य, कामवासना को बढ़ाने वाला, याददाश्त का बढ़ाने वाला, शरीर को मज्जातंतुओं को मजबूत बनाने वाला, रक्त को शुद्धि करने वाला, घावों को भरने वाला, कफ, वात, सूजन……. ….
ब्रह्मकमल (SAUSSUREA OBVALLATA) :
ब्रह्मकमल के फूलों के तेल से सिर की मालिश करने से मिर्गी के दौरे तथा मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। ब्रह्मकमल के फूलों की राख को लीवर की वृद्धि में शहद के साथ……. ….
बुई (OTOSTEGIA LIMBATA “BENTH) :
यह जड़ी बूटी हृदय के लिए बहुत ही लाभकारी होती है। यदि किसी रोगी का हृदय अधिक दुर्बल और अव्यवस्थित हो तथा बुखार भी आता हो तो उसके लिए इसका……. ….
भारत में बरगद के पेड़ को पवित्र माना गया है, इसे पर्व व त्यौहारों पर पूजा जाता है। इसके पेड़ बहुत ही बड़ा व विशाल होता है। बरगद की शाखाओं से जटाएं लेटकर जमीन तक पहुँचती है और तने का रुप ले लेती………………
ब्रह्मदण्डी खून को साफ करता है, घावों को भरता है, वीर्य की कमजोरी को दूर करता है। यह दिमाग और याददाश्त की शक्ति को बढ़ाता है। त्वचा के सफेद दाग और बीमारियों को दूर करता है। यह गले और चेहरे को साफ………………
बरही को खाने से दिल खुश होता है। यह मेदा(आमाशय) और जिगर को ताकत देता है। इससे शरीर के मुख्य स्थान को बल प्रदान करता है, गले की आवाज को साफ करता है, खाँसी, दमा और कफ (बलगम) को दूर करत………………
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खिरैटीपानी बरियारी स्निग्ध है। यह रुची को बढ़ाती है और शरीर को मजबूत बनाती है। यह वीर्य को बनाती है। यह ग्राही, वात, पित्त् को खत्म करता है और पित्तासार को खत्म करता है। यह कफ(बलगम) को दूर करत………………
मीठा नीम सन्ताप, कोढ़(कुष्ठ) और रक्तविकार(खून के रोग) को खत्म करता है। यह पेट के कीड़े, भूत बाधा और कीड़ो के काटने से उत्पन्न जहर को खत्म करता………………
बथुआ दो प्रकार का होता है जिसके पत्ते बड़े व लाल रंग के होते हैं। उसे गोड वास्तुक और जो बथुआ जौ के खेत में पैदा होता है। उसे शाक कहते हैं। इस प्रकार बथुआ छोटा, बड़ा, लाल व हरे होने के भेद से दो प्रकार के होते………………
बथुए के बीज गांठों को दूर करता है। यह दस्तों को लाने वाला, जलोदर और कांबर के लिए बहिता ही लाभकारी होता है। यह पेशाब करने में परेशानी को दूर करता है। बथुआ का बीज गुर्दे और आंतों की कमजोरी को दूर………………
यह चरपरी, गर्म, कड़वी होती है और भूख को बढ़ाती है। बवई दिल के लिए फायदेमंद है। यह जलन पैदा करती है, खूजली, वमन(उल्टी) और विष को दूर करती है। यह………………
दस्तावर(पेट को साफ करने वाला) और दिल के लिए अच्छा होता है, सूखे, कफ(बलगम), रक्तपित(खून पित्त), साँस(दमा), कुष्ठ(कोढ़), प्रमेह(वीर्य विकार), ज्वर(बुखार)………………
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भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में बायबिडंग की मोटी वा बड़ी-बड़ी लतायें, अपने आप उगकर पास के पेड़ के सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाती है। इसकी शाखाएं खुरदरी, गठों वाली, बेलनाकार, लचीली और पतली होती है। इसके पत्ते 2 से………………
यह वीर्य को बढ़ाता है। इससे वीर्य खूब पैदा होता है और गाढ़ा होता भै। यह पीठ की हड्डियों और कमर को बलवान बनाता है………………
बेल का पेड़ बहुत प्राचीन काल से है। इस पेड़ में लगे हुए पुराने पीले फल दुबारा हरे हो जाते हैं तथा इसको तोड़कर सुरक्षित रखे हुए पत्ते 6 महीने तक ज्यों का त्यों बने रहते हैं और यह गुणहीन नहीं होता है। इस पेड़ की……………...
वेलिय पीपल हल्का, स्वादिष्ट कड़वा और गर्म होता है। यह मल को रोकता है। वेलिया पित्त जहर और खून की खराबी से होने वाले रोगों को दूर करता है………………
बैंगन Eggplant :
बैंगन का लैटिन नाम- सोलेनम मेलोजिना है और अग्रेजी भाषा में इगपलेंट नाम से जाना जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही बैंगन सर्वत्र होते हैं। बैंगान की लोकप्रियता स्वाद और गुण के नजर से ठंडी के मौसम………………
बेंत :
दोनों तरह के बेंत शीतल, कड़वे, चरपरे, कफ(बलगम), वात, पित्त, जलन, सूजन, बवासीर, पथरी, पेशाब करने में परेशानी, दस्त, रक्त विकार, योनि रोग, कोढ़ और जहर………………
बेर :
बेर का पेड़ हर जगह आसानी से पाया जाता है। बेर के पेड़ में काँटे होते हैं। बेर का आकार सुपारी के बराबर होता है। इसके अनेक जातियां है। जैसे- जंगली बेर, झरबेरी, पेवंदी, बेर आदि। इसके पेड़ पर बहुत अच्छी………………
बैरोजा :
बैरोजा मधुर, कड़वा, स्निग्ध, दस्तावर, गर्म, कषैला, पित्त और वातकारक, सिर रोग, आँखों का रोग, गले की आवाज, कफ(बलगम), जू(लीख) खुजली और घाव को दूर………………
बर बेल :
यह भूख को बढ़ाता है। बरबेल का रस पीने और खाने में कड़वा होता है। यह मल को रोकता है। वात से होने वाले रोगों को रोकता है। मूत्राशय, पथरी और पेशाब के रोगों………………
भांरगी Turk turban moon, clerodenrum serratu moon :
भांरगी रुचिकारी. अग्निदीपक(भूख को बढ़ाने वाली), गुल्म(न पकने वाला फोड़ा), खून की बीमारी, श्वास(दमा), खाँसी, कफ, पीनस(जुकाम), ज्वर,कृमि, व्रण(जख्म), दाह………………
भद्रदन्ती :
भद्रदन्ती चरपरी, गर्म, दस्तावर, कीड़ों को मारने वाले, दर्द को दूर करने वाला, कोढ़, आमावात(गठिया) और उदर रोग(पेट के रोग) दूर करने वाल होता………………
भद्रमोथा :
भद्रमोथा चरपरा, दीपन, पाचक, कषैला, रक्तपित्त, प्यास, बुखार, आरुचि(भोजन करने का मन न करना) और कीड़ों को दूर करता………………
भाही जोहरा :
भाही जोहरा सभी प्रकार के कफ और गाढ़े खून को दस्त के रास्तें बाहर निकालता है। यह गैस को मिटाता है और गठिया और कमर दर्द को दूर करता है।………………
भांग Indian hemp, knavish indika :
भांग के स्वयंजात पौधे भारत में सभी जगह पाये जाते हैं। विशेषकर भांग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं बिहार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। भांग के नर पैधे के पत्तों को सुखाकर भांग तथा मादा पौधे की रालीय पुष्प………………
भांग के बीज :
भांग के बीजों का अधिक मात्रा में उपयोग करने से पेशाब अधिक मात्रा में आता है। यह स्त्री प्रसंग में वीर्य को निकलने नहीं देता है। यह वीर्य को सूखा देता है और धातुओं को फाड़ता है। यह आँखों की रोशनी को कम………………
भांगरा Treling eklipta, Eklipta postrata :
घने मुलायम काले कुन्तल केशों के लिए प्रसिद्ध भांगरा के स्वयंजात क्षुप 6,000 फुट की ऊंचाई तक आद्रभूमि में जलाशयों के समीप 12 महीने उगते हैं। इसकी एक और प्रजती पीत भृंगराज पाई जाती है जिसके पौधे बंगाल………………
बाबूना गाव (COTULA ANTHMOIDES) :
बाबूना गाव प्रकृति में गर्म और रुखा होता है। इसके गुण बाबूना के ही समान होते हैं। यह कफ और वात के विकार को मल के साथ………………
श्वांस और खांसी से पीड़ित रोगी को बच सुगंधा के जड़ के टुकड़े को पान के बीड़े के साथ रखकर चबाकर खाने से लाभ होता है। इससे मुंह से सुगंध……. ….
बच्छनाग (श्वेत या दूधिया) के गुण काले बच्छनाग के गुणों के समान परन्तु विशेष होते हैं। इसे थोड़ी सी मात्रा में इसे बार-बार देने से दर्द तथा रक्त के……. ….
काला बच्छनाग लघु, रुखा, गर्म, विपाक, तीखा, कषैला, मादक, होता है। यह अपने रुक्ष गुण से वात को, उष्ण गुण से पित्त तथा रक्त को कुपित करता है। तीक्ष्ण गुण से यह बुद्धि को……. ….
बथुआ, लघु, स्निग्ध, मधुर, कटु, विपाक, शीतवीर्य, वात-पित्त-कफ नाशक, पेट को साफ करने वाला, दीपन, पाचक, अनुलोमक, यकृत उत्तेजक, पित्त सारक, मल-मूत्र को शुद्धि करने वाला, आंखों के लिए लाभकारी……. ….
बलसां (BALSEMODENDRON OPOBALSAMUM) :
बलसा का तेल, गर्म, स्निग्ध, कफनिवारक, बाजीकारक, मस्तिष्क बलदायक, सूजाक, सूजन, मिर्गी, तथा घाव आदि के लिए विशेष उपयोगी होता है। यह श्वांस-खांसी, जूकाम, बूढ़ों की……. ….
बादाम देशी (TERMINALIA CATAPPA) :
देशी बादाम की छाल-ग्राही, संकोचक तथा मूत्रवर्द्धक होता है। इसकी छाल का काढ़ा सूजाक और प्रदर में लाभकारी होता है। इसके बने हुए छालों से घावों को धोने से घाव जल्दी भर जाते हैं। काढ़े का कुल्ला करने से……. ….
बन उड़द (JASSIEUA SUFFRUTICOSA) :
बन उड़द लघु, स्निग्ध, तिक्त, मधुर, विपाक, शीतवीर्य, वात-पित्तशामक, कफवर्द्धक, उत्तेजक, स्नेहन, अनुलोमन, ग्राही, रक्तवर्द्धक व शोधक, रक्तपित्त नाशक, सूजन को दूर करने वाला, कामवासना को……. ….
बनफ्शा (VIOLA ODORATA) :
बनफ्सा कफ और शीत रोगों के लिए लाभकारी होता है। यह वातपित्त को नष्ट करने वाला, कफ को दूर करने वाला, पित्तनाशक, अनुलोमन, रेचन, रक्त के विकारनाशक, जलन को……. ….
बंदाल आकार में छोटा, स्वाद में रुखा, तीखा, कडुवा, तीखा, उष्णवीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाल, उल्टी, रक्त को शुद्ध करने वाला, आंतों के कीड़ों को नष्ट करना, सूजन को दूर करना, कफ को गलाकर बाहर निकालना, बंद माहवारी……. ….
बनमेथी के सेवन करने से स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। यह घावों को शीघ्र भरने वाला होता है। इसकी जड़ का उपयोग मेद को नष्ठ करने में किया जाता है तथा यह मूत्रवर्द्धक……. ….
मीठा बादाम भारी, स्निग्ध, मीठा, गर्म, वायु रोगनाशक, कफपित्त वर्द्धक, उत्तेजक, स्नेहन, लेखन, अनुलोमक, मल को आसानी से निकालना, कफ को गला कर बाहर निकालना, मूत्रवर्द्धक, धातुकारक, बलवर्द्धक, बाजीकारक, स्त्रियों के स्तनों में दूध की……. ….
बादावर्द पौष्टिक, पेट को साफ करने वाला, रक्तस्तम्भक, दर्द को नष्ट करने वाला, गर्भधारण में सहायक तथा पुराने से पुराने अतिसार को……. ….
बधारा (ERIOLAENA QUNI) :
बधारा कडुवा, तीखा, सुगंधित, संकोची, पिच्छिल, शांतिवर्द्धक, धातुपरिवर्तक, मूत्रवर्द्धक, कामशक्तिवर्द्धक, कफनाशक, कमर का दर्द, जोड़ों का दर्द, उपदंश, प्रमेह, सूजाक आदि……. ….
बादियान खताई (ILLICIUM VERUM) :
बादियान खताई के फल मीठे, दीपन, पाचक, उत्तेजक, दर्द को दूर करने वाला, उदर-वातहर, कफघ्न, मूत्रवर्द्धक, सारक है। यह अपच, अग्निमांद्य, बुखार, अतिसार (दस्त), प्रवाहिका, आध्यान, जुकाम, खांसी, आदि विकारों में……. ….
बहमन सफेद (CENTAUREA) :
बहमन सफेद लघु, कसैला, मीठा, उष्णवीर्य, मधुऱ विपाक, वात, कफ, पित्तनाशक, दीपन (उत्तेजक), अनुमोलन, रक्तस्तम्भक, वेदना स्थापक, धातुवर्द्धक, बालों की वृद्धि, श्वासनलिका तथा अन्य अंगों की सूजन……. ….
बैबीना (MUSSSAENDRA FRONDOS) :
बैबीना गर्म, कडुवा, कषैला, तीव्र गंध, कफ-वातनाशक, दीपन (उत्तेजक), सफेद दाग, कफ, भूत-प्रेत, ग्रह-पीड़ा निवारक, धातु परिवर्तक, तथा मूत्रवर्द्धक होता है। इसकी जड़……. ….
बाकला (PHASSSEOLUS VOLGARIS) :
बाकला की ताजी फली अकेले या मांस के साथ पकाकर खाने से पुष्टि प्राप्त होती है। सूखे और ताजे बीजों की सब्जी भी बनाते हैं। बाकला के सूखे बीजो के छिलके को निकालकर……. ….
बाकेरी मूल (CAESALPINIA DIGYNA) :
बाकेरीमूल, उष्णवीर्य, सांभक, वातनाशक, शोधक, त्वचा के विकार, कीटाणुनाशक और घाव को भरने वाला होता है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से यह मदकारक (नशीला) प्रभाव डालता है। इसका उपयोग करने से……. ….
बनलौंग (JESSIEUA SUFFRUTICOSA) :
बनलौंग के पंचांग को पीसकर मट्ठे के साथ देने से रक्तातिसार, रक्तामातिसार, कफ के साथ जाना आदि किसी भी अंग से होने वाले रक्तस्राव में लाभ होता है। इसकी जड़ या छाल का काढ़ा……. ….
बनमूंग (PHASEOLLOUS TRILOBUS AIT) :
बनमूंग आकार में छोटा, रुखा, तीखा, मधुर, शीतवीर्य, त्रिदोषनाशक (वात-पित्त-कफ), दीपन (उत्तेजक), अनुलोमन, ग्राही, रक्त के विकार, जलन, जीवनीय, रक्तपित्तनाशक, सूजन……. ….
बराहंता (TRAGIA INVOLUCRATA) :
शरीर की त्वचा पर होने वाली खाज-खुजली, छाजन (त्वचा का रोग) तथा त्वचा के अन्य विकारों को नष्ट करने के लिए इसकी जड़ को तुलसी के रस……. ….
बाराही कन्द (रतालू) (DIOSCOREA BULBIFERA) :
बाराही कंद आकार में छोटा, स्निग्ध, कडुवा, तीखा, मधुर, उष्णवीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, दीपन (उत्तेजक), ग्राही, रक्त संग्राहक, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, तथा……. ….
बराही कन्द (रतालू, भेवर कन्द) (TACCA ASPERA) :
यह कडुवा, तीखा, उष्णवीर्य, पित्तकारक, रसायन (वृद्धावस्थानाशक औषधि), कामोद्दीपक, वीर्य, भूख और चेहरे की चमक बढ़ाने वाला होता है। यह सफेद दाग, प्रमेह, पेट के कीड़े, बवासीर……. ….
बारतंग (PLAANTAGO MAJUR) :
बारतंग शीत, रुखा, संग्राहक तथा दर्दनाशक होता है। गर्मी के कारण उत्पन्न अतिसार (दस्त) या आमातिसार में तो ईसबगोल ही विशेष लाभदायक होता है किन्तु ठंड से उत्पन्न दस्त में……. ….
बरमूला (बरमाला) (CALLICARPA ARBOREA) :
बरमूला की छाल विशेषरुप से सुगंधित, कड़वी, पौष्टिक तथा त्वचा के विकारों को नष्ट करने वाला……. ….
बारतंग (PLAANTAGO LANCEOLATA) :
बारतंग के पत्तों का ताजा रस या सूखे पत्तों का लेप घावों पर करने से घावों की जलन, सूजनयुक्त चट्टे या फोड़ों का दर्द नष्ट होता है। इसके रस घावों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है जिससे घाव……. ….
बसंत (HYPSRICOM PERFORATUM) :
बसंत पौधे के पत्तों का स्वाद तीखा होता है तथा ये पाचनशक्तिवर्द्धक, पेट के कीड़े, बवासीर, कानों का दर्द, अतिसार (दस्त), बच्चों का कांच निकलना, योनि के घाव तथा बिच्छु के विष……. ….
बसट्रा (CALLICARPA LANATA) :
बसट्रा की जड़ तथा छाल का काढ़ा बुखार, पित्त प्रकोप, यकृतावरोध, शीतपित्त और त्वचा के रोगों में दिया जाता है। इसकी जड़ या छाल के चूर्ण के एक भाग मात्रा को लगभग बीस भाग जल में……. ….
बथुवा विदेशी (CHENOPODIUM AMBROSIOIDES) :
बथुवा (विदेशी) क्षारयुक्त, मधुर, बलवर्द्धक तथा त्रिदोष (वातपित्तकफ) नाशक होता है। इसके पत्ते और कोमल डंठलों का साग भी बनाया जाता है। प्राचीनकाल में आदिवासी लोग घरेलू इलाज……. ….
बायविडंग (EMBELIA RIBES) :
बायविडंग आकार में छोटा, रुखा, तीखा, कडुवा, गर्म, कफनाशक, पाचक, दस्तावर, रक्तशोधक, आंतों के कीड़ों को नष्ट करने वाला, मूत्रल (मूत्रवर्द्धक) होता है। इसके अतिरिक्त यह……. ….
भांट (CLERODENDRON INFORTUNATUM) :
बच्चों के लंबे पेट के कीड़ों वाले रोग में भांट के पत्तों के रस को पीसकर मिलाते है। पेट के दर्द और दस्त में भांत की जड़ को तक्र में पीसकर मिलाते है। त्वचा के रोगों में भांट का लेप त्वचा के……. ….
बांझ ककोड़ा(बंध्या कर्कोटकी) :
बांझ ककोड़ा बलगम को दूर करने वाला, जख्मों को साफ करने वाला, सांपों के जहर को समाप्त करने वाला होता है………………
भसींड़ :
भसींड़ कषैला होता है, यह मीठा, भारी तथा मल को रोकने वाला होता है। यह आँखों के लिए लाभकारी, वीर्यवार्द्धक, रक्त पित्त, जलन, प्यास, बलगम और वातपित्त को दूर करती है। यह गुल्म, पित्त, खाँसी, पेट के कीड़े,………………
भटकटैया :
भटकटैया, कटैया, वेगुना भटकटैय के ही नाम है। इसे भी कटेरी(चोक) का ही भेद है। यह जमीन से 2-3 फुट ऊंचा होता है। इसमें छोटे बैंगन जैसा फल लगता है और बैंगन जैसे ही कटीले पत्ते होते हैं। इसमें पीले, चित्तीदार फल………………
भटकटैया बड़ी :
भटकटैया बड़ी के फल, कटु, तिक्त, छोटे, खुजली को नष्ट करने वाले, कोढ़(कुष्ठ), कीड़े, बलगम तथा गैस को खत्म करने वाले होते हैं। इसके बाकी गुण छोटी भटकटैया के,………………
भटकटैया छोटी :
यह मल को रोकती है, दिल के लिये फायदेमंद होती है, पाचक होता है। यह कफ(बलगम) और गैस को खत्म करती है। भटकटैया कड़वी होती है। यह मुँह की नीरसता को दूर करती है, अरुची(भोजन करने का मन न करना)………………
भटकटैया सफेद :
भटकटैया सफेद चरपरी, गर्म,आँखों के लिए फायदेमंद होती है। यह भूख को बढ़ाती है। यह गर्भ को स्थापन करने वाली तथा पारे को बांधने वाली, रुचिकारक, कफ(बलगम) और वात को खत्म करने वाली है। इसके गुण………………
भटवांस :
यह मधुर, रूखा, खाने में खट्टी होती है। यह बादी को दूर करता है और स्तनों में दूध भी बढ़ाती है। यह जलन, कफ(बलगम),सूजन और वीर्य को खत्म करता है। भटवांस खून की खराबी को रोकता है, जहर और आँखों………………
भिंडी :
मधुमेह का रोग भिंडी के डांड काट लें। इन डांडो को छाया में सुखाकर व पीसकर छान लें। इसमें बरबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर आधा-आधा चम्मच सुबह खाली पेट ठंडे पानी से रोजाना फांकी लेने से मधुमेह का रोग मिट जाता है।………………
भ्रमर बल्ली :
भ्रमर बल्ली तीखी, गर्म, कड़वी और रुचि को बढ़ाने वाली होती है। यह अग्नि को शांत करती है और गले के रोग को दूर करती है। यह गले के सभी रोगों को नष्ट करती………………
भुंई खखसा :
भुंई खखसा सफेद दाग को खत्म करता है। यह शरीर के सभी अंगों को शुद्ध करती है। यह जहर, दुर्गन्ध, खांसी, गुल्म और पेट के रोगों को ठीक करता है।………………
भूमि कदम्ब :
भूमि कदम्ब कड़वी, जख्म को सूखा देने वाला, शरीर को ठंडकता प्रदान करने वाला, तीखा तथा वीर्य को बढ़ाने वाला होता है। यह जहर और सूजन को खत्म करती है………………
भूरी छरीला :
भूरी छरीला तीखा, शीतल और सुगन्ध देने वाला होता है। यह हल्का और दिल के लिए हितकारी है। यह रुचि को बढ़ाता है और वात, पित्त, गर्मी, प्यास, उल्टी आदि को दूर करता है। इसका प्रयोग सांस(दमा), घाव, खुजली आदि के………………
भूसी(गेहूँ का चोकर) :
यह सूजन और बलगम को पचाती है और शरीर को शुद्ध और साफ करती है। यह छाती की खर-खराहट और पुरानी खाँसी व धांस को बंद करती है। इसके साथ काला नमक मिलाकर पोटली बनाकर सेंकने से रोंवों के मुँह………………
भूत्रण :
भूत्रण तीखा, कड़वा, गर्म, दस्त को लाने वाला और गर्मी उप्तन्न करने वाला है। यह अग्नि को प्रदीप्त करता है। यह रूखा, मुखशोधक और अवृष्य है। यह मल को बढ़ाता है और रक्त पित्त को दूषित करता है। यह गैस के रोगों को………………
बिछुआ घास :
बिछुआ घास पिच्छिल खट्टी, अन्त्रवृद्धि रोग को नष्ट करने वाली, शरीर को शक्तिशाली बनाले वाली, बिविन्ध को नष्ट करने वाली, दिल के लिए लाभकारी तथा वस्तिशोधक है। यह पित्त को ठीक रखता है तथा दिल को प्रसन्न रखता ………………
बिहारी नींबू :
बिहारी नींबू गैस, पित्त और बलगम तीनों ही रोगों को नष्ट करता है। इसका सेवन क्षय(टी.बी) और हैजा से पीड़ित रोगी ले लिए बहुत ही लाभकारी होता है। विष से पीड़ीत तथा मन्दाग्नि(भूख कम लगना) से ग्रसित रोगियों को………………
बिहीदाना :
इसका लुबाव गले की खरखराहट और गर्मी से होने वाली खाँसी के लिए अत्यंत ही लाभकारी होता है। यह आमाशय में गर्मी उत्पन्न नहीं होने देता है। यह ठंड लगकर बुखार आने, जलन, मुँह का सूखना और प्यास को रोकता………………
बिजौर मरियम :
बिहौर मरियम गांठों को गलाती है। गैस के रोगों को नष्ट करता है। यह पसीना अधिक लाता है। दूध बढ़ाता है। बिजौर मरियम कांवर के लिए लाभदायक होता है। इसकी घुट्टी पिलाने से बच्चों के दाँत आसानी से व शीघ्र ही………………
बिजौरे का छिलका :
यह दिल को प्रसन्न रखता है। कब्ज उत्पन्न करता है। खून को पित्त से साफ करता है। गर्मी से होने वाली वमन(उल्टी) को बंद करता है। यह दिल और आमाशय को शक्तिशाली बनाता है। आंतों की गर्मी को शान्त करता ………………
बिलाई लोटन :
बिलाई लोटन दिल और दिमाग को स्वस्थ्य व शक्तिशाली बनाता है। यह आमाशय को मजबूत करता है और याददाश्त और बुद्धि में वृद्धि करती है। बिलाई लोटन मन को प्रसन्न रखती है। यह कफ के सभी रोगों को नष्ट………………
बिल्लौर :
बिल्लौर सुरमा आँखों के अनेक रोगों को दूर करता है। बिल्लौर गले में लटकाने से छोटे बच्चों के रोग, आँखें निकल आना, शरीर में ऐंठन होना तथा सोते समय………………
बिनौला :
बिनौला धातु को पुष्ट करता है और संभोग में होने वाली सभी परेशानियों को दूर करता है। यह पेट और छाती को नरम रखता है। गर्मी की खाँसी को दूर करता है और स्त्रियों की बेहोशी के लिए यह बहुत ही लाभदायक है। यह ………………
बीरण गांडर :
बीरण गांडर ठंडी होती है तथा ठंडे बुखार को दूर करती है। इसकी गुण भी खश के गुणों के समान होते हैं।………………
वृत्तगंड :
वृत्तगंड मीठा और शीतल होता है। यह बलगम, पित्त और दस्तों को खत्म करता है। यह खून को साफ करता है। यह खून सम्बन्धी समस्त बीमारियों के लिए लाभदायक होता है। वृत्तगंड दो प्राकार का होता है, इन दोनों में………………
बोल :
बोल गैस से होने वाले रोगों को खत्म करता है। यह सर्दी से होने वाली सूजन को भी समाप्त करता है और दिमाग को स्वस्थ करता है। बोल का नशा करने से पेशाब और दस्त आता है। यह आंतों के दर्द और कीड़ों को नष्ट करता………………
बूट :
बूट का उपयोग करने से शरीर में खून, बलगम और पित्त की मात्रा बढ़ती है। यह शरीर को शक्तिशाली बनाता है। यह धातु को पुष्ट करता है और स्तम्भन शक्ति को बढ़ाता है। यह मुँह से निकलने वाली बदबू को खत्म करता………………
ब्रह्मी :
ब्राह्मी का पैधा हिमालय की तराई में हरिद्वार से लेकर बद्रीबारायन के मार्ग में अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो बहुत उत्तम किस्म का होता है। ब्राह्मी पौधे का तना जमीन पर फैलता है जिसकी गांठों से जड़, पत्तियां, फूल………………
बूदर चमड़ा :
बूदार चमड़े को जलाकर घावों पर लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। इसके बर्तन में पानी पीने से पागलपन खत्म हो जाता है………..
बुन :
यह गले की आवाज को साफ करता है, गांठों को तोड़ता है और दर्द को दूर करता है। बुन दिल को बलवान बनाता है और मन को प्रसन्न रखता है। यह धातु को पुष्ट करता है, खून को साफ करता है और पेशाब लाता है। यह ………………
बूरा :
बूरा का उपयोग बलगम को नष्ट करने, सीने की जकड़न को दूर करने और स्वभाव को कोमल(नर्म) बनाने में किया जाता………..
सब वनस्पति के गुजराती और अन्य भाषाओं में नाम दिया करो तो अच्छा रहेगा।
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