Thursday, 26 December 2013

गुड़

  गुड़
ठंड में खाने के बाद गुड़ जरूर खाएंगे, जब जान जाएंगे ये लाजवाब फायदे!
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गुड़ का सेवन अधिकांश लोग ठंड में ही करते हैं वह भी थोड़ी मात्रा में इस सोच के साथ की ज्यादा गुड़ खाने से नुकसान होता है। इसकी प्रवृति गर्म होती है, लेकिन ये एक गलतफहमी है गुड़ हर मौसम में खाया जा सकता है और पुराना गुड़ हमेशा औषधि के रूप में काम करता है।आयुर्वेद संहिता के अनुसार यह शीघ्र पचने वाला, खून बढ़ाने वाला व भूख बढ़ाने वाला होता है। इसके अतिरिक्त गुड़ से बनी चीजों के खाने से बीमारियों में राहत मिलती है।

- गुड़ में सुक्रोज 59.7 प्रतिशत, ग्लूकोज 21.8 प्रतिशत, खनिज तरल 26प्रतिशत तथा जल अंश 8.86 प्रतिशत मौजूद होते हैं।इसके अलावा गुड़ में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा और ताम्र तत्व भी अच्छी मात्रा में मिलते हैं। इसलिए चाहे हर मौसम में आप गुड़ खाना न पसन्द करें लेकिन ठंड में गुड़ जरूर खाएं।

- यह सेलेनियम के साथ एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है। गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस व जस्ता पाया जाता है यही कारण है कि इसका रोजाना सेवन करने वालों का इम्युनिटी पॉवर बढ़ता है। गुड़ में मैग्नेशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है इसलिए ये बॉडी को रिचार्ज करता है साथ ही इसे खाने से थकान भी दूर होती है।

- गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी में अस्थमा परेशान नहीं करता है। रोजाना गुड़ का सेवन हाइब्लडप्रेशर को कंट्रोल करता है। जिन लोगों को खून की कमी हो उन्हें रोज थोड़ी मात्रा में गुड़ जरूर खाना चाहिए। इससे शरीर में हिमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।

- गुड़ का हलवा खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शरीर से जहरीले तत्वों को बाहर निकालता है व सर्दियों में, यह शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करता है। यह लड़कियों के मासिक धर्म को नियमित करने यह मददगार होता है।

- अगर आप गैस या एसिडिटी से परेशान हैं तो खाने के बाद थोड़ा गुड़ जरूर खाएं ऐसा करने से ये दोनों ही समस्याएं नहीं होती हैं। गुड़, सेंधा नमक, काला नमक मिलाकर चाटने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाती हैं।

- ठंड में कई लोगों को कान के दर्द की समस्या होने लगती है। ऐसे में कान में सरसो का तेल डालने से व गुड़ और घी मिलाकर खाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

अमरबेल

अमरबेल से जुडे आदिवासी हर्बल नुस्खे, जानिए और कहिए अरे वाह!
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अमरबेल


जंगलों, सड़क, खेत खलिहानों के किनारे लगे वृक्षों पर परजीवी अमरबेल का जाल अक्सर देखा जा सकता है, वास्तव में जिस पेड़ पर यह लग जाती है, वह पेड़ धीरे धीरे सूखने लगता है। इसकी पत्तियों मे पर्णहरिम का अभाव होता है जिस वजह से यह पीले रंग की दिखाई देती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। अमरबेल का वानस्पतिक नाम कस्कूटा रिफ़्लेक्सा है। आदिवासी अंचलों में अमरबेल को अनेक हर्बल नुस्खों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है, चलिए जानते हैं आज अमरबेल से जुडे हर्बल नुस्खों और आदिवासी जानकारियों को..


पूरे पौधे का काढ़ा घाव धोने के लिए बेहतर है और यह टिंक्चर की तरह काम करता है। आदिवासियों के अनुसार यह काढा घावों पर लगाया जाए तो यह घाव को पकने नहीं देता है।

बरसात में पैर के उंगलियों के बीच सूक्ष्मजीवी संक्रमण या घाव होने पर अमरबेल पौधे का रस दिन में 5-6 बार लगाया जाए तो आराम मिल जाता है।

अमरबेल को कुचलकर इसमें शहद और घी मिलाकर पुराने घावों पर लगाया जाए तो घाव जल्दी भरने लगता है। यह मिश्रण एंटीसेप्टिक की तरह कार्य करता है।

- गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार इसके बीजों और पूरे पौधे को कुचलकर आर्थराईटिस के रोगी को दर्द वाले हिस्सों पर पट्टी लगाकर बाँध देते है। इनके अनुसार यह दर्द निवारक की तरह कार्य करता है।

गंजेपन को दूर करने के लिए पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि यदि आम के पेड़ पर लगी अमरबेल को पानी में उबाल लिया जाए और उस पानी से स्नान किया जाए तो बाल पुन: उगने लगते है।

डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।
डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।

पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार मुँह और पेट के कैंसर या ट्युमर में इस पौधे का काढा आराम दिलाता है, आधुनिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस पौधे का अर्क पेट के कैंसर से लड़ने में मदद कर सकता है।

अदरक

अदरक ......
अदरक


अदरक रूखा, तीखा, उष्ण-तीक्ष्ण होने के कारण कफ तथा वात का नाश करता है, पित्त को बढ़ाता है। इसका अधिक सेवन रक्त की पुष्टि करता है। यह उत्तम आमपाचक है। भारतवासियों को यह सात्म्य होने के कारण भोजन में रूचि बढ़ाने के लिए इसका सार्वजनिक उपयोग किया जाता है। आम से उत्पन्न होने वाले अजीर्ण, अफरा, शूल, उलटी आदि में तथा कफजन्य सर्दी-खाँसी में अदरक बहुत उपयोगी है।
सावधानीः रक्तपित्त, उच्च रक्तचाप, अल्सर, रक्तस्राव व कोढ़ में अदरक का सेवन नहीं करना चाहिए। अदरक साक्षात अग्निरूप है। इसलिए इसे कभी फ्रिज में नहीं रखना चाहिए ऐसा करने से इसका अग्नितत्त्व नष्ट हो जाता है।

औषधि-प्रयोगः

उलटीः अदरक व प्याज का रस समान मात्रा में मिलाकर 3-3 घंटे के अंतर से 1-1 चम्मच लेने से अथवा अदरक के रस में मिश्री में मिलाकर पीने से उलटी होना व जौ मिचलाना बन्द होता है।

हृदयरोगः अदरक के रस व पानी समभाग मिलाकर पीने से हृदयरोग में लाभ होता है।

मंदाग्निः अदरक के रस में नींबू व सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से जठराग्नि तीव्र होती है।

उदरशूलः 5 ग्राम अदरक, 5 ग्राम पुदीने के रस में थोड़ा-सा सेंधा नमक डालक पीने से उदरशूल मिटता है।

शीतज्वरः अदरक व पुदीने का काढ़ा देने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है। शीतज्वर में लाभप्रद है।

पेट की गैसः आधा-चम्मच अदरक के रस में हींग और काला नमक मिलाकर खाने से गैस की तकलीफ दूर होती है।

सर्दी-खाँसीः 20 ग्राम अदरक का रस 2 चम्मच शहद के साथ सुबह शाम लें। वात-कफ प्रकृतिवाले के लिए अदरक व पुदीना विशेष लाभदायक है।
खाँसी एवं श्वास के रोगः अदरक और तुलसी के रस में शहद मिलाकर लें।

केला

केले के लाभ --
केला

वैसे तो केला बारह ही महीने बाजार में उपलब्ध रहता है। लेकिन बरसात के सीजन में ये शरीर के लिए विशेष लाभदायक होता है। कच्चा केला मीठा, ठण्डी तासीर का, भारी, स्निग्ध, कफकारक, पित्त, रक्त विकार, जलन, घाव व वायु को नष्ट करता है। पका हुआ केला स्वादिष्ट, शीतल, मधुर, वीर्यवर्ध्दक, पौष्टिक, मांस की वृध्दि करने वाला, रुचिकारक तथा भूख, प्यास, नेत्ररोग और प्रमेह का नाश करने वाला होता है।
- यदि महिलाओं को रक्त प्रवाह अधिक होता है तो पके केले को दूध में मसल कर कुछ दिनों तक खाने से लाभ होता है।
- बार-बार पेशाब आने की समस्या हो तो चार तोला केले के रस में दो तोला घी मिलाकर पीने से फायदा होता है।
- यदि शरीर का कोई हिस्सा जल जाए तो केले के गूदे को मसल कर जले हुए स्थान पर बांधे। इससे जलन दूर होकर आराम पहुंचता है।
- पेचिश रोग में थोड़े से दही में केला मिलाकर सेवन करने से फायदा होता है।
- संग्रहणी रोग होने पर पके केले के साथ इमली तथा नमक मिलाकर सेवन करें।
- दाद होने पर केले के गूदे को नींबू के रस में पीसकर पेस्ट बनाकर लगाएं।
- पेट में जलन होने पर दही में चीनी और पका केला मिलाकर खाएं। इससे पेट संबंधी अन्य रोग भी दूर होते हैं।
- अल्सर के रोगियों के लिये कच्चे केले का सेवन रामबाण औषधि है।
- केला खून में वृध्दि करके शरीर की ताकत को बढ़ाने में सहायक है। यदि प्रतिदिन केला खाकर दूध पिया जाए तो कुछ ही दिनों में व्यक्ति तंदुरुस्त हो जाता है।
- यदि चोट लग जाने पर खून का बहना न रुके तो उस जगह पर केले के डंठल का रस लगाने से लाभ होता है।
- केला छोटे बच्चों के लिये उत्तम व पौष्टिक आहार है। इसे मसल कर या दूध में फेंटकर खिलाने से लाभ मिलता है।
- केले और दूध की खीर खाने या प्रातः सायं दो केले घी के साथ खाने या दो केले भोजन के साथ घंटे बाद खाकर ऊपर से एक कप दूध में दो चम्मच शहद धोलकर लगातार कुछ दिन पीने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
- केले का शर्बत बनाकर पीने से सूखी खांसी, पुरानी खांसी और दमे के कारण चलने वाली खांसी में 2-2 चम्मच सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
- एक पका केला एक चम्मच घी के साथ 4-5 बूंद शहद मिलाकर सुबह-शाम आठ दिन तक रोजाना खाने से प्रदर और धातु रोग में लाभ होता है।
- पके केले को घी के साथ खाने से पित्त रोग शीघ्र शान्त होता है।
- मुंह में छाले हो जाने पर गाय के दूध के दही के साथ केला खाने से लाभ होता है।
- एक पका केला मीठे दूध के साथ आठ दिन तक तक लगातार खाने से नकसीर में लाभ होता है।
- दो केले एक तोला शहद में मिलाकर खाने से सीने के दर्द में लाभ होता है।
- दो पके केले खाकर, एक पाव गर्म दूध एक माह तक सेवन करने से दुबलापन दूर होकर शरीर स्वस्थ बनता है।
- प्रतिदिन भोजन के बाद एक केला खाने से मांसपेशियां मजबूत बनती है व ताकत देता है।
- प्रातः तीन केले खाकर, दूध में शक्कर व इलायची मिलाकर नित्य पीते रहने से रक्त की कमी दूर होती है।
- यदि बाल गिरते हों तो केले के गूदे में नींबू का रस मिलाकर सिर में लगाने से बाल झड़ना रूक जाता है।
- जलने या चोट लगने पर केले का छिलका लगाने से लाभ होता है।
- पके हुए केले को आंवले रस तथा शक्कर मिलाकर खाने बार-बार पेशाब आने की शिकायत होती है।
- बच्चे को दस्त लग जाने पर पके केले को कटोरी में रख कर चम्मच से घोट कर मक्खन जैसा बना लें और जरा सी मिश्री पीस कर मिला कर बच्चे को दिन में दो तीन बार खिलाएं। लाभ होगा, कमजोरी नहीं आएगी और बच्चे के शरीर में पानी की कमी नहीं हो पाएगी। ध्यान रहे कि केला जितनी बार खिलाना हो, उसे उसी समय बनाएं। ढक कर रखा गया या काट कर रखा केला न खिलाएं। वह हानिकारक हो सकता है। मिट्टी खाने के आदी बच्चों को इसका गूदा खूब फेंट कर जरा सा शहद मिला कर आधा आधा चम्मच खिलाना उपयोगी है। पर ध्यान रहे की शाम के बाद केला ना दे ।
- कोई भी चीज मात्रा से अधिक खाना पीना हानिकारक है। इसी तरह केला भी ज्यादा खाने से पेट पर भारी पड़ेगा, शरीर शिथिल होगा, आलस्य आएगा। कभी ज्यादा खा लिया जाए तो एक छोटी इलायची चबाना लाभकारी है।
- कफ प्रकृति वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। हमेशा पका केला ही खाएं।
- केले में मैग्नीशियम की काफी मात्रा होती है जिससे शरीर की धमनियों में खून पतला रहने के कारण खून का बहाव सही रहता है। इसके अलावा पूर्ण मात्रा में मैग्नीशियम लेने से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है।
- कच्चे केले को दूध में मिलाकर लगाने से त्वचा निखर जाती है और चेहरे पर भी चमक आ जाती है।
- रोज सुबह एक केला और एक गिलास दूध पीने से वजन कंट्रोल में रहता है और बार- बार भूख भी नहीं लगती।
-गर्भावस्था में महिलाओं के लिए केला बहुत अच्छा होता है क्योंकि यह विटामिन से भरपूर होता है।
- गले की सुजन में लाभकारी है।
- जी-मिचलाने पर तो पका केला कटोरी में फेंट कर एक चम्मच मिश्री या चीनी और एक छोटी इलायची पीस कर मिला कर खाने से राहत मिलेगी।
- केले के तने के सफेद भाग के रस का नियमित सेवन डायबिटीज की बीमारी को धीरे-धीरे खत्म कर देता है।
- खाना खाने के बाद केला खाने से भोजन आसानी से पच जाता है।

अलसी

 अलसी
अलसी - एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन
अलसी


- जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं। पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।

अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है । अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते है।

- ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।

- आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।

- अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।

- अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी।

- अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है।

- सिम का मतलब सेरीन या शांति, इमेजिनेशन या कल्पनाशीलता और मेमोरी या स्मरणशक्ति तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन या एकाग्रता, क्रियेटिविटी या सृजनशीलता, अलर्टनेट या सतर्कता, रीडिंग या राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी या शैक्षणिक क्षमता और डिवाइन या दिव्य है।



- त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है।

- लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है।

- जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया उपचार है अलसी। ¬¬ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी।

- कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।

- अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है।

- 1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।



अलसी सेवन का तरीकाः- हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।

अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है .

अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।

इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।

अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।

इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।

बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।

अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा।

इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।

डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो)|

केसर (saffron)

केसर (saffron) ------
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एक सुगंध देनेवाला पौधा है। इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल की क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) नामक क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है, यद्यपि इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन तथा भारत में होती है। भारत में यह केवल जम्मू (किस्तवार) तथा कश्मीर (पामपुर) के सीमित क्षेत्रों में पैदा होती हैं। प्याज तुल्य इसकी गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर में रोपी जाती हैं और अक्टूबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं।
खाने मे स्वाद को तो बढ़ाता ही बल्कि कई प्रकार के रोगो को दूर करने मे सहायक होता है
-चन्दन को केसर के साथ घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से, सिर, नेत्र और मस्तिष्क को शीतलता, शान्ति और ऊर्जा मिलती है, नाक से रक्त गिरना बन्द हो जाता है और सिर दर्द दूर होता है।
-शिशु को सर्दी हो तो केसर की 1-2 पखड़ी 2-4 बूंद दूध के साथ अच्छी तरह घोंटें, ताकि केसर दूध में घुल-मिल जाए। इसे एक चम्मच दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ।
-माथे, नाक, छाती व पीठ पर लगाने के लिए केसर जायफल व लौंग का लेप (पानी में) बनाएँ और रात को सोते समय लेप करें।
-कृमि नष्ट करने के लिए केसर व कपूर आधी-आधी रत्ती खरल में डालकर 2-4 बूंद दूध टपकाकर घोंटें और एक चम्मच दूध में मिलाकर बच्चे को 2-3 दिन तक पिलाएं।
- बच्चों को बार-बार पतले दस्त लगने को अतिसार होना कहते हैं। बच्चों को पतले दस्त लगने पर केसर की 1-2 पँखुड़ी खरल में डालकर 2-3 बूंद पानी टपकाकर घोंटें।
-अलग पत्थर पर पानी के साथ जायफल, आम की गुठली, सौंठ और बच बराबर बार घिसें और इस लेप को केसर में मिला लें। इसे एक चम्मच पानी में मिलाकर शिशु को पिला दें। यह सुबह शाम दें।
- जाड़े के दिनों में दूध में केसर या एक चम्मच हल्दी का सेवन करने से भी रक्त साफ होता है।

आलू

आलू ............


भारत और विश्व में आलू विख्यात है और अधिक उपजाया जाता है. यह अन्य सब्जियों के मुकाबले सस्ता मिलता लेकिन गुणों से भरपूर . आलू से मोटापा नहीं बढ़ता. आलू को तलकर तीखे मसाले, घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है. आलू को उबालकर अथवा गर्म रेत या राख में भूनकर खाना लाभदायक और निरापद है.
आलू में विटामिन बहुत होता है. आलू को छिलके सहित गरम राख में भूनकर खाना सबसे अधिक गुणकारी है. इसको छिलके सहित पानी में उबालें और गल जाने पर खाएं। इसको मीठे दूध में भी मिलाकर पिला सकते हैं.
आलुओं में प्रोटीन होता है, सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है. आलू का प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाला और बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने वाला होता है.
आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन-बी तथा फास्फोरस बहुतायत में होता है. आलू खाते रहने से रक्त वाहिनियां बड़ी आयु तक लचकदार बनी रहती हैं तथा कठोर नहीं होने पातीं.
यदि दो-तीन आलू उबालकर छिलके सहित थोड़े से दही के साथ खा लिए जाएं तो ये एक संपूर्ण आहार का काम करते हैं.
आलू के छिलके ज्यादातर फेंक दिए जाते हैं, जबकि अच्छी तरफ साफ़ किये छिलके सहित आलू खाने से ज्यादा शक्ति मिलती है. जिस पानी में आलू उबाले गए हों, वह पानी न फेंकें, बल्कि इसी पानी से आलुओं का रस बना लें. इस पानी में मिनरल और विटामिन बहुत होते हैं.
आलू पीसकर, दबाकर, रस निकालकर एक चम्मच की एक खुराक के हिसाब से चार बार नित्य पिएं, बच्चों को भी पिलाएं, ये कई बीमारियों से बचाता है. कच्चे आलू को चबाकर रस को निगलने से भी बहुत लाभ मिलता है.
कुछ अन्य:
- कभी-कभी चोट लगने पर नील पड़ जाती है। नील पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगाएँ.
- शरीर पर कहीं जल गया हो, तेज धूप से त्वचा झुलस गई हो, त्वचा पर झुर्रियां हों या कोई त्वचा रोग हो तो कच्चे आलू का रस निकालकर लगाने से फायदा होता है।.
-भुना हुआ आलू पुरानी कब्ज और अंतड़ियों की सड़ांध दूर करता है. आलू में पोटेशियम साल्ट होता है जो अम्लपित्त को रोकता है.
-चार आलू सेंक लें और फिर उनका छिलका उतार कर नमक, मिर्च डालकर नित्य खाएं। इससे गठिया ठीक हो जाता है.
-गुर्दे की पथरी में केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है. पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियाँ और रेत आसानी से निकल जाती हैं.
-उच्च रक्तचाप के रोगी भी आलू खाएँ तो रक्तचाप को सामान्य बनाने में लाभ करता है.
-आलू को पीसकर त्वचा पर मलें। रंग गोरा हो जाएगा.
- कच्चा आलू पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम काजल की तरह लगाने से 5 से 6 वर्ष पुराना जाला और 4 वर्ष तक का फूला 3 मास में साफ हो जाता है.

मूली

 मूली
इन 3 कारणों को जानेंगे तो सर्दियों में रोजाना खाना चाहेंगे मूली ---
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ठंड में रोजाना थोड़ी मूली को सलाद के रूप में लेना चाहिए क्योंकि शरीर के लिए इसका नियमित सेवन बहुत अच्छा होता है क्योंकि इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन ए भी होता है। इसके अलावा भी ठंड के मौसम में सलाद के रूप में मूली खाने के अनेक फायदे आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में

- मूली के रस में थोड़ा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप में पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है। मूली के पत्ते काटकर नींबू निचोड़ के खाने से पेट साफ होता है व स्फूर्ति रहती है। पेट संबंधी रोगों में यदि मूली के रस में अदरक का रस और नीबू मिलाकर नियम से पियें तो भूख बढ़ती है। पेट के कीड़ों को नष्ट करने में भी कच्ची मूली फायदेमंद साबित होती है।

- हार्ट से संबंधित बीमारी से ग्रस्त लोगों व कोलेस्ट्रॉल पेशेन्ट्स के लिए मूली का सेवन लाभदायक होता है।ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए मूली का सलाद के रूप में नियमित रूप से सेवन अच्छा माना गया है क्योंकि हाई ब्लड प्रेशर को शांत करने में मूली मदद करती है।

- सुबह-सुबह मूली के नरम पत्तों पर सेंधा नमक लगाकर खाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है। मूली शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड निकालकर ऑक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों और हड्डियों को मजबूत करती है।थकान मिटाने और अच्छी नींद लाने में भी मूली काफी फायदेमंद होती है।

बथुआ

बथुआ --------

इन दिनों दिनों बाज़ार में खूब बथुए का साग आ रहा है।

- बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के नाम से जाना जाता है बथुआ एक ऐसी सब्जी या साग है, जो गुणों की खान होने पर भी बिना किसी विशेष परिश्रम और देखभाल के खेतों में स्वत: ही उग जाता है। एक डेढ़ फुट का यह हराभरा पौधा कितने ही गुणों से भरपूर है। बथुआ के परांठे और रायता तो लोग चटकारे लगाकर खाते हैं बथुआ का शाक पचने में हल्का ,रूचि उत्पन्न करने वाला, शुक्र तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है | यह तीनों दोषों को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन करता है | विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित, बवासीर तथा कृमियों पर अधिक प्रभावकारी है |


- इसमें क्षार होता है , इसलिए यह पथरी के रोग के लिए बहुत अच्छी औषधि है . इसके लिए इसका 10-15 ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है .

- यह कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है .

-किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द या सूजन हो ; तो इसके बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है . इसका साग भी लिया जा सकता है .

- सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके बाँधा जा सकता है . यह वायुशामक होता है .

- गर्भवती महिलाओं को बथुआ नहीं खाना चाहिए .


- एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में पानी मिलाकर पिलायें .

- अगर लीवर की समस्या है , या शरीर में गांठें हो गई हैं तो , पूरे पौधे को सुखाकर 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें .

- पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के पत्तों का रस मिलाकर लें . शीतपित्त की परेशानी हो , तब भी इसका रस पीना लाभदायक रहता है .
- सामान्य दुर्बलता बुखार के बाद की अरुचि और कमजोरी में इसका साग खाना हितकारी है।

- धातु दुर्बलता में भी बथुए का साग खाना लाभकारी है।

- बथुआ को साग के तौर पर खाना पसंद न हो तो इसका रायता बनाकर खाएं।

- बथुआ लीवर के विकारों को मिटा कर पाचन शक्ति बढ़ाकर रक्त बढ़ाता है। शरीर की शिथिलता मिटाता है। लिवर के आसपास की जगह सख्त हो, उसके कारण पीलिया हो गया हो तो छह ग्राम बथुआ के बीज सवेरे शाम पानी से देने से लाभ होता है।

- सिर में अगर जुएं हों तो बथुआ को उबालकर इसके पानी से सिर धोएं। जुएं मर जाएंगे और सिर भी साफ हो जाएगा।

- बथुआ को उबाल कर इसके रस में नींबू, नमक और जीरा मिलाकर पीने से पेशाब में जलन और दर्द नहीं होता।

- यह पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, भोजन में रुचि बढ़ाने वाला पेट की कब्ज मिटाने वाला और स्वर (गले) को मधुर बनाने वाला है।

- पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से पेशाब खुल कर आता है।

- इसका साग खाने से बवासीर में लाभ होता है।

- कच्चे बथुआ के एक कप रस में थोड़ा सा नमक मिलाकर प्रतिदिन लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

Wednesday, 25 December 2013

तुलसी

  तुलसी
  तुलसी 4 बूंद नाक में डालो, बेहोश व्यक्ति तत्काल होश में आएगा
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प्रकृति ने मनुष्य को ऐसे-ऐसे वरदानों से नवाजा है कि वह चाहे तो भी जीवनभर उनसे उऋण नहीं हो सकता है। तुलसी भी ऐसा ही एक अनमोल पौधा है जो प्रकृति ने मनुष्य को दिया है। सामान्य से दिखने वाले तुलसी के पौधे में अनेक दुर्लभ और बेशकीमती गुण पाए जाते हैं। आइये जाने कि तुलसी का पूज्यनीय पौधा हमारे किस-किस काम आ सकता है-

- शरीर के वजन को नियंत्रित रखने हेतु भी तुलसी अत्यंत गुणकारी है।

- इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है यानी तुलसी शरीर का वजन आनुपातिक रूप से नियंत्रित करती है।

- तुलसी के रस की कुछ बूंदों में थोड़ा-सा नमक मिलाकर बेहोंश व्यक्ति की नाक में डालने से उसे शीघ्र होश आ जाता है।
- चाय(बिना दूध की)बनाते समय तुलसी के कुछ पत्ते साथ में उबाल लिए जाएं तो सर्दी, बुखार एवं मांसपेशियों के दर्द में राहत मिलती है।

- 10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से हिचकी एवं अस्थमा के रोगी को ठीक किया जा सकता है।

- तुलसी के काढ़े में थोड़ा-सा सेंधा नमक एवं पीसी सौंठ मिलाकर सेवन करने से कब्ज दूर होती है।

- दोपहर भोजन के पश्चात तुलसी की पत्तियां चबाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है।

- 10 ग्राम तुलसी के रस के साथ 5 ग्राम शहद एवं 5 ग्राम पिसी कालीमिर्च का सेवन करने से पाचन शक्ति की कमजोरी समाप्त हो जाती है।

- दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है।

मूंगफली

  मूंगफली
सर्दियों के मौसम में गर्मागर्म मूंगफली का स्वाद ही कुछ और होता है लेकिन बात जब आपकी सेहत से जुड़ी हो तो इसके फायदों की कोई कमी नहीं है।
मूंगफली के फायदों से पहले बात करते हैं इसमें मौजूद पोषक तत्वों की। करीब 100 ग्राम मूंगफली में आपको 567 कैलोरी, 49 ग्राम फैट्स जिसमें सात ग्राम सैचुरेटेड 40 ग्राम अनसैचुरेटेड फैट्स, जीरो कोलेस्ट्रॉल, सोडियम 18 मिलीग्राम, पोटैशियम 18 मिलीग्राम, कार्बोहाइड्रेट, फोलेट, विटामिन्स, प्रोटीन, फाइबर आदि अच्छी मात्रा में हैं।
फर्टिलिटी बढ़ती है
मूंगफली में फोलेट अच्छी मात्रा में है। कई शोधों में माना जा चुका है कि जो महिलाओं 700 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड वाली डाइट का सेवन करती हैं उनके गर्भवती होने व गर्भस्थ शिशुओं की सेहत में 70 प्रतिशत तक का फायदा होता है।
ब्लड शुगर पर नियंत्रण
एक चौथाई कप मूंगफली के सेवन से शरीर को 35 प्रतिशत तक मैगनीज मिलता है जो फैट्स पर नियंत्रण और मेटाबॉलिज्म ठीक रखता है। इसका नियमित सेवन खून में शुगर की मात्रा संतुलित रखता है।
तेज दिमाग के लिए
मूंगफली में विटामिन बी3 अच्छी मात्रा में है जो दिमाग के लिए फायदेमंद है। यह याददाश्त बढ़ाने में काफी मददगार है।
स्टोन से छुटकारा
कई शोधों में यह प्रमाणित हो चुका है कि एक मुट्ठी मूंगफली का नियमित सेवन गॉल ब्लैडर में स्टोन के रिस्क को 25 प्रतिशत कम करता है।
द‌िल के दौरे से बचाव
मूंगफली में मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स और एंटीऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में होते हैं जो दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है। इसके अलावा, यह धमनियों के ब्लॉकेज के रिस्क को भी कम करने में मदद करता है।
वजन घटाने में फायदेमंद
शोधों में मानी जा चुका है कि जो लोग रोज मूंगफली का सेवन करते हैं उन्हें वजन घटाने में दूसरों की अपेक्षा दोगुनी आसानी होती है।

गहरी नींद के आसान उपाय

गहरी नींद के आसान उपाय
* रात्रि भोजन करने के बाद पन्द्रह से बीस मिनट धीमी चाल से सैर कर लेने के बाद ही बिस्तर पर जाने की आदत बना लेनी चाहिए। इससे अच्छी नींद के अलावा पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है।
* अगर तनाव की वजह से नींद नहीं आ रही हो या फिर मन में घबराहट सी हो तब अपना मन पसंद संगीत सुनें या फिर अच्छा साहित्य या स्वास्थ्य से संबंधित पुस्तकें पढ़ें, ऐसा करने से मन में शांति का भाव आएगा, जो गहरी नींद में काफी सहायक होता है।
* अनिद्रा के रोगी को अपने हाथ-पैर मुँह स्वच्छ जल से धोकर बिस्तर पर जाना जाहिए। इससे नींद आने में कठिनाई नहीं होगी। एक खास बात यह कि बाजार में मिलने वाले सुगंधित तेलों का प्रयोग नींद लाने के लिए नहीं करें, नहीं तो यह आपकी आदत में शामिल हो जाएगा।
* सोते समय दिनभर का घटनाक्रम भूल जाएँ। अगले दिन के कार्यक्रम के बारे में भी कुछ न सोचें। सारी बातें सुबह तक के लिए छोड़ दें। दिनचर्या के बारे में सोचने से मस्तिष्क में तनाव भर जाता है, जिस कारण नींद नहीं आती।
* अपना पलंग मन-मुताबिक ही चुनें और जिस मुद्रा में आपको सोने में आराम महसूस होता हो, उसी मुद्रा में पहले सोने की कोशिश करें। अनचाही मुद्रा में सोने से शरीर की थकावट बनी रहती है, जो नींद में बाधा उत्पन्न करती है।
* अगर अनिद्रा की समस्या पुरानी और गंभीर है, नींद की गोलियाँ खाने की आदत बनी हुई है तो किसी योग चिकित्सक की सलाह लेकर शवासन का अभ्यास करें और रात को सोते वक्त शवासन करें। इससे पूरे शरीर की माँसपेशियों का तनाव निकल जाता है और मस्तिष्क को आराम मिलता है, जिस कारण आसानी से नींद आ जाती है।
* अच्छी नींद के लिए कमरे का हवादार होना भी जरूरी है। अगर मौसम बाहर सोने के अनुकूल है तो छत पर या बाहर सोने को प्राथमिकता दें। कमरे में कूलर-पँखा या फिर एयर कंडीशनर का शोर ज्यादा रहता है, तो इनकी भी मरम्मत करवा लेनी चाहिए, क्योंकि शोर से मस्तिष्क उत्तेजित रहता है, जिस कारण निद्रा में बाधा पड़ जाती है।

* सोने से पहले चाय-कॉफी या अन्य तामसिक पदार्थों का सेवन नहीं करें। इससे मस्तिष्क की शिराएँ उत्तेजित हो जाती हैं, जो कि गहरी नींद आने में बाधक होती हैं।

कालीमिर्च


कालीमिर्च

* यदि आपका ब्लड प्रेशर लो रहता है, तो दिन में दो-तीन बार पांच दाने कालीमिर्च के साथ 21 दाने किशमिश का सेवन करे।
* जुकाम होने पर कालीमिर्च के चार-पांच दाने पीसकर एक टी-कप दूध में पकाकर सुबह-शाम लेने से लाभ मिलता है।
* एक चम्मच शहद में 2-3 बारीक कुटी हुई कालीमिर्च और एक चुटकी हल्दी पावडर मिलाकर लेने से कफ में राहत मिलती है।
* इससे शरीर की थकावट दूर होती है। कालीमिर्च से गले की खराश दूर होती है।
* इससे रक्त संचार सुधरता है।यह दिमाग के लिए फायदेमंद होती है। गैस के कारण पेट फूलने पर कालीमिर्च असरदार होती है। इससे गैस दूर होती है। कालीमिर्च की चाय पीने से सर्दी-ज़ुकाम, खाँसी और वायरल इंफेक्शन में राहत मिलती है। कालीमिर्च पाचनक्रिया में सहायक होती है।
** कालीमिर्च सभी प्रकार के संक्रमण में लाभ देती है।

एलोवेरा

 एलोवेरा
एलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी कहा गया है। त्‍वचा की देखभाल से लेकर बालों की खूबसूरती तक और घावों को भरने से लेकर सेहत की सुरक्षा तक में इस चमत्‍कारिक औषधि का कोई जवाब नहीं है। एलोवेरा विटामिन ए और विटामिन सी का बड़ा स्रोत है।

* एलोवेरा का जूस नियमित पीने वाला व्‍यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता है।

* एलोवेरा जूस के सेवन से पेट के रोग जैसे वायु, अल्सर, अम्‍लपित्‍त आदि की शिकायतें दूर हो जाती हैं। पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कोई औषधि नहीं है।

* जोडों के दर्द और रक्त शोधक के रूप में भी एलोवेरा बेजोड़ है।

* एलोवेरा बालों की कुदरती खूबसूरती बनाए रखता है। यह बालों को असमय टूटने और सफेद होने से बचाता है।

* रोज सोने से पहले एड़ियों पर एलोवेरा जेल की मालिश करने से एड़ियां नहीं फटती हैं।

* एलोवेरा त्वचा की नमी को बनाए रखता है।

* एलोवेरा त्वचा को जरूरी मॉश्चयर देता है।

* गर्मियों में सनबर्न की शिकायत हो जाती है। एलोवेरा वाले मोश्‍चराइजर व सनस्‍क्रीन का उपयोग त्‍वचा के सनबर्न को समाप्‍त करता है।

* एलोवेरा एक बेहतरीन स्किन टोनर है। एलोवेरा फेशवॉश से त्‍वचा की नियमित सफाई से त्‍वचा से अतिरिक्‍त तेल निकल जाता है, जो पिंपल्‍स यानी कील-मुहांसे को पनपने ही नहीं देता है।

मिर्गी रोग

 मिर्गी रोग

मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है।

मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो, हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है। इसलिए हमें किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह नहीं होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क रहना चाहिए।
मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।

दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।

अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।

मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।

मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।

मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।

रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।

पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।

गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।

गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।

मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।

मुंह के छालों से बचने के घरेलू उपचार–

मुंह के छालों से बचने के घरेलू उपचार–
मुंह में अगर छाले हो जाएं तो जीना मुहाल हो जाता है। खाना तो दूर पानी पीना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन, इसका इलाज आपके आसपास ही मौजूद है। मुंह के छाले गालों के अंदर और जीभ पर होते हैं। संतुलित आहार, पेट में दिक्कत, पान-मसालों का सेवन छाले का प्रमुख कारण है। छाले होने पर बहुत तेज दर्द होता है। आइए हम आपको मुंह के छालों से बचने के लिए घरेलू उपचार बताते हैं।

मुंह के छालों से बचने के घरेलू उपचार–

शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें।

मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए।
छाले होने पर कत्था और मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों परलगाने चाहिए।

अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखिए। या केवल अमलतास के गूदे को मुंहमें रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।

अमरूद के मुलायम पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले से राहत मिलती है और छाले ठीक हो जाते हैं

चुकंदर

 चुकंदर

चुकंदर एक ऐसी सब्जी है जिसे बहुत से लोग नापसंद करते हैं. इसके रस को पीने से न केवल शरीर में रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है बल्कि कई अन्य स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं. यदि आप इस सब्जी से नफरत करते हैं तो जरा एक बार इसके फायदों के बारे में जरूर पढ़ लें.

शायद कम लोग ही जानते हैं कि चुकंदर में लौह तत्व की मात्रा अधिक नहीं होती है, किंतु इससे प्राप्त होने वाला लौह तत्व उच्च गुणवत्ता का होता है, जो रक्त निर्माण के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि चुकंदर का सेवन शरीर से अनेक हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने में बेहद लाभदायी है।

ऐसा समझा जाता है कि चुकंदर का गहरा लाल रंग इसमें लौह तत्व की प्रचुरता के कारण है, बल्कि सच यह है कि चुकंदर का गहरा लाल रंग इसमें पाए जाने वाले एक रंगकण (बीटा सायनिन) के कारण होता है। एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के कारण ये रंगकण स्वास्थ्य के लिए अच्छे माने जाते हैं।

एनर्जी बढ़ाये : यदि आपको आलस महसूस हो रही हो या फिर थकान लगे तो चुकंदर का जूस पी लीजिये. इसमें कार्बोहाइड्रेट होता है जो शरीर यह पानी फोड़े, जलन और मुहांसों के लिए काफी उपयोगी होता है. खसरा और बुखार में भी त्वचा को साफ करने में इसका उपयोग किया जा सकता है.

पौष्टिकता से भरपूर : यह प्राकृतिक शर्करा का स्रोत होता है. इसमें कैल्शियम, मिनरल, मैग्नीशियम, आयरन, सोडियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन, और अन्य महत्वपूर्ण विटामिन पाये जाते हैं. इसलिए घर पर इसकी सब्जी बना कर अपने बच्चों को जरूर से खिलाएं.हृदय के लिए : चुकंदर का रस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है. खासकर के चुंकदर के रस का सेवन करने से व्यक्ति में रक्त संचार काफी बढ़ जाता है. रक्त की धमनियों में जमी हुई चर्बी को भी इसमें मौजूद बेटेन नामक तत्व जमने से रोकता है.

स्वास्थ्यवर्धक पेय : जो लोग जिम में जी तोड़ कर वर्कआउट करते हैं उनके लिये चुकंदर का जूस बहुत फायदेमंद है. इसको पीने से शरीर में एनर्जी बढ़ती है और थकान दूर होती है. साथ ही अगर हाई बीपी हो गया हो तो इसे पीने से केवल 1 घंटे में शरीर नार्मल हो जाता है.

कच्चे प्याज के कुछ स्वास्थ्य लाभ

कच्चे प्याज के कुछ स्वास्थ्य लाभ

एनीमिया ठीक करे-
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प्याज काटते वक्त आंखों से आंसू टपकते हैं,
ऐसा प्याज में मौजूद सल्फर की वजह से होता है
जो नाक के दृारा शरीर में प्रेवश करता है। इस
सल्फर में एक तेल मौजूद होता है
जो कि एनीमिया को ठीक करने में सहायक
होता है। खाना पकाते वक्त यही सल्फर जल
जाता है, तो ऐसे में कच्चा प्याज खाइये।

कब्ज दूर करे-
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इसमें मौजूद रेशा पेट के अंदर के चिपके हुए भोजन
को निकालता है जिससे पेट साफ हो जाता है,
तो यदि आपको कब्ज की शिकायत है
तो कच्चा प्याज खाना शुरु कर दीजिये।

गले की खराश मिटाए-
-----------------------
यदि आप सर्दी, कफ या खराश से पीडित हैं
तो आप ताजे प्याज का रस पीजिये। इमसें गुड
या फिर शहद मिलाया जा सकता है।

ब्लीडिंग समस्या दूर करे-
--------------------------
नाक से खून बह रहा हो तो कच्चा प्याज काट
कर सूघ लीजिये। इसके अलावा यदि पाइल्स
की समस्या हो तो सफेद प्याज खाना शुरु कर दें।

मधुमेह करे कंट्रोल-
--------------------
यदि प्याज को कच्चा खाया जाए तो यह शरीर
में इंसुलिन उत्पन्न करेगा, तो यदि आप
डायबिटिक हैं तो इसे सलाद में खाना शुरु कर दें।

दिल की सुरक्षा-
----------------
कच्चा प्याज हाई ब्लड प्रेशर को नार्मल करता है
और बंद खून की धमनियों को खोलता है जिससे
दिल की कोई बीमारी नहीं होती।

कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करे-
----------------------
इसमें मिथाइल सल्फाइड और अमीनो एसिड
होता है जो कि खराब कोलेस्ट्रॉल को घटा कर
अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढाता है।

कैंसर सेल की ग्रोथ रोके-
------------------------
प्याज में सल्फर तत्व अधिक होते हैं। सल्फर शरीर
को पेट, कोलोन, ब्रेस्ट, फेफडे और प्रोस्टेट कैंसर से
बचाता है। साथ ही यह मूत्र पथ संक्रमण
की समस्या को भी खत्म करता है।
________________________

एनीमिया ठीक करे-
--------------------
प्याज काटते वक्त आंखों से आंसू टपकते हैं,
ऐसा प्याज में मौजूद सल्फर की वजह से होता है
जो नाक के दृारा शरीर में प्रेवश करता है। इस
सल्फर में एक तेल मौजूद होता है
जो कि एनीमिया को ठीक करने में सहायक
होता है। खाना पकाते वक्त यही सल्फर जल
जाता है, तो ऐसे में कच्चा प्याज खाइये।

कब्ज दूर करे-
---------------
इसमें मौजूद रेशा पेट के अंदर के चिपके हुए भोजन
को निकालता है जिससे पेट साफ हो जाता है,
तो यदि आपको कब्ज की शिकायत है
तो कच्चा प्याज खाना शुरु कर दीजिये।

गले की खराश मिटाए-
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यदि आप सर्दी, कफ या खराश से पीडित हैं
तो आप ताजे प्याज का रस पीजिये। इमसें गुड
या फिर शहद मिलाया जा सकता है।

ब्लीडिंग समस्या दूर करे-
--------------------------
नाक से खून बह रहा हो तो कच्चा प्याज काट
कर सूघ लीजिये। इसके अलावा यदि पाइल्स
की समस्या हो तो सफेद प्याज खाना शुरु कर दें।

मधुमेह करे कंट्रोल-
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यदि प्याज को कच्चा खाया जाए तो यह शरीर
में इंसुलिन उत्पन्न करेगा, तो यदि आप
डायबिटिक हैं तो इसे सलाद में खाना शुरु कर दें।

दिल की सुरक्षा-
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कच्चा प्याज हाई ब्लड प्रेशर को नार्मल करता है
और बंद खून की धमनियों को खोलता है जिससे
दिल की कोई बीमारी नहीं होती।

कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करे-
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इसमें मिथाइल सल्फाइड और अमीनो एसिड
होता है जो कि खराब कोलेस्ट्रॉल को घटा कर
अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढाता है।

कैंसर सेल की ग्रोथ रोके-
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प्याज में सल्फर तत्व अधिक होते हैं। सल्फर शरीर
को पेट, कोलोन, ब्रेस्ट, फेफडे और प्रोस्टेट कैंसर से
बचाता है। साथ ही यह मूत्र पथ संक्रमण
की समस्या को भी खत्म करता है।

लहसुन के बड़े फायदे

छोटे लहसुन के बड़े फायदे.......

(इन बीमारियों में है रामबाण)

लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है आज हम बताने जा रहे हैं आपको औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है।


1-- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।


2-- लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।


3-- लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है।


4-- खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।


5-- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।


6-- लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे।


7-- लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है।


8-- लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।


9-- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।


10-- लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।


11- यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।


12- जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है।

13- लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है।

लहसुन की बदबू-

अगर आपको लहसुन की गंध पसंद नहीं है कारण मुंह से बदबू आती है। मगर लहसुन खाना भी जरूरी है तो रोजमर्रा के लिये आप लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाये तो आपके मुंह से बदबू नहीं आयेगी। लहसुन खाने के बाद इसकी बदबू से बचना है तो जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर मुंह में डालकर चूसें कुछ देर तक, बदबू बिल्कुल निकल जायेगी।

मसूड़ों से खून रोकने के घरेलू उपचार

मसूड़ों से खून रोकने के घरेलू उपचार
मसूड़ों में खून रोकने के लिए घरेलू उपचारों में खट्टे फल, दूध, कच्ची सब्जियों, बेकिंग सोडा, लौंग, लौंग का तेल, पुदीना तेल, कैलेंडुला पत्ती चाय, कैमोमाइल चाय, नमकीन, मसूड़ों में मालिश, धूम्रपान छोडऩा और वसायुक्त भोजन आदि शामिल हैं। मसूड़ों में खून एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है, जिसमें मसूड़ों में सूजन दिखाई देती है और ब्रश करने और किसी कड़े भोजन के खाने के दौरान अक्सर खून आ जाता है। ऐसा आमतौर पर मुंह की खराब स्वच्छता के कारण होता है, लेकिन यह भी गर्भावस्था की तरह अन्य स्वास्थ्य की स्थिति जैसे विटामिन की कमी, स्कर्वी, ल्यूकेमिया या संक्रमण के किसी भी प्रकार का संकेतक होता है। कुछ घरेलू उपचारों का प्रयोग कर के आप इस दिक्कत से निजाद पा सकते हैं।

दूध
दूध में भी कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है, जिसकी नियमित रूप से जरूरत होती है आपके मसूड़ों को भरने के लिए। इसलिये मसूड़ों में खून रोकने के लिए नियमित आधार पर दूध लिया जाना चाहिए।
कच्ची सब्जियां
कच्ची सब्जियों को चबाने से दांत साफ होते हैं और मसूड़ों में रक्त परिसंचरण को प्रेरित करता है इसलिए प्रतिदिन कच्ची सब्जियां खाने की आदत डाल लेनी चाहिए।

क्रैनबेरी और गेहूँ की घास का रस
क्रैनबेरी या गेहूँ की घास का रस उन लोगों को राहत दे सकता है, जिनके मसूड़ों से खून बहता है। कैनबेरी के जूस में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो मसूड़ों से बेक्टीरिया को दूर कर देता है।

बेकिंग सोडा
बेकिंग सोडा माइक्रोइंवायरनमेंट तैयार करके मुंह में ही बेक्टीरिया को मार देता है और इसे आप मसूड़ों पर उंगली से लगा सकते हैं।

लौंग
लौंग को या तो आप मुंह में रख सकते हैा या धीरे-धीरे चबा सकते हैं या लौंग के तेल से मसूड़ों पर मालिश कर सकते हैं। यह एक प्राचीन पद्धति है और बेहद आसान घरेलू नुस्खा है, जो सभी प्रकार की दांतों की समस्याओं से निजात दिलाता है।

कपूर, पिपरमिंट का तेल
कपूर और पिपरमिंट के तेल का इस्तेमाल करने से आप अपने मुंह की ताजग़ी और स्वच्छता बनाए रखने के लिए कर सकते हैं।

नमक का पानी
नमक का पानी ब्रश करने के बाद हलके गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करने से आराम मिलता है। मसूड़ों में खून रोकने का यह बहुत अच्छा घरेलू नुस्खा है।
मालिश
मालिश ब्रश करने के बाद मसूड़ों पर उंगली से धीरे-धीरे मालिश करने से उसमें रक्स संचार अच्छा होता है। इससे मसूड़े मजबूत होते हैं और रक्त आना बंद हो जाता है।
वसायुक्त भोजन बंद करें वसायुक्त, तीखा और ज्यादा आहार लेने से दांतों के बीच स्थान पर खाना फंस जाता है जो सडऩे लगता है और आगे चलकर यह मसूड़ों में खून की वजह बन जाता है या फिर गिंगिवाइटिस हो जाता है। जितना हो सके उतना ऐेस वसा युक्त भोजन से बचें।
धुम्रपान न करें
धूम्रपान न करें धूम्रपान करने से मुंह में अवायवीय वातावरण बन जाता है , जो वेक्टीरिया के पैदा होने के लिए अच्छा होता है। इसलिए अपने मुंह को वेक्टीरिया मुक्त रखने के लिए आपको धूम्रपान नहीं करना चाहिए।

Friday, 13 December 2013

प्राणायाम

"एक सामान्य श्वसन चक्र में हम 500 ml(Tidal volume)वायु का उपयोग करते हैं |जबकि अध्ययनों के अनुसार यदि हम गहरा श्वांस भरते हैं तो यह मात्रा 4500 ml (4.5 ltr) तक हो सकती है.. बल्कि किसी के फेफड़ों में पर्याप्त क्षमता हो तो Vital Capacity 8000 ml (8 ltr) भी हो सकती है |इस प्रकार गहरा श्वांस लेने से रक्त में ऑक्सीजन (o) का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण कोशिकीय स्तर पर उत्तकों (tissues) को पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु प्राप्त होती है |
प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से हम अपनी श्वांस की गति को कम कर सकते हैं और ऑक्सीजन (प्राणवायु ) का स्तर अपने शरीर में 16 गुना तक बढ़ा सकते है ..और इस प्रकार हम एक स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन की प्राप्ति कर सकते हैं ....."
Normally in one round of breathing (i.e.one inhalation -exhalation) we use 500 ml (Tidal Volume) air.Studies prove that if we take a deep breath ,the quantity of the braethed air can go up to 4500 ml and if one's lungs have adequate vital capacity ,it can go up to 8000 ml(8 ltre) .By this deep inhaling and vigorous exhaling the level of oxygen in blood increases .Which supplies adequate PRANVAYU (O) to the tissue in cells...

Thus by making practice of deep and slow breathing we can increase the level of oxygen in our body upto 16 times and can get Long and Healthy life

डाइबटीज

भारत में 5 करोड़ 70 लाख से ज्यादा लोगों को डाइबटीज है और 3 करोड़ से ज्यादा को हो जाएगी अगले कुछ सालों में (सरकार ऐसा कह रही है ) , हर 2 मिनट में एक आदमी डाइबटीज से मर जाता हैं !
और complications बहुत है !

किसी की किडनी खराब हो रही है ,किसी का लीवर खराब हो रहा है , किसी को paralisis हो रहा है किसी को brain stroke हो रहा है ,किसी को heart attack आ रहा है ! कुल मिलकर complications
बहुत है diabetes के !!

मधुमेह या चीनी की बीमारी एक खतरनाक रोग है। रक्त ग्लूकोज (blood sugar level ) स्तर बढा़ हूँआ मिलता है, यह रोग मरीजों के (रक्त मे गंदा कोलेस्ट्रॉल,) के अवयव के बढने के कारण होता है। इन मरीजों में आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है।

भोजन पेट में जाकर एक प्रकार के ईंधन में बदलता है जिसे ग्लूकोज कहते हैं। यह एक प्रकार की शर्करा होती है। ग्लूकोज हमारे रक्त धारा में मिलता है और शरीर की लाखों कोशिकाओं में पहुंचता है। pancreas (अग्न्याशय) ग्लूकोज उत्पन्न करता है इनसुलिन भी रक्तधारा में मिलता है और कोशिकाओं तक जाता है।

मधुमेह बीमारी का असली कारण जब तक आप लोग नही समझेगे आपकी मधुमेह कभी भी ठीक नही हो सकती है जब आपके रक्त में वसा (गंदे कोलेस्ट्रोल) की मात्रा बढ जाती है तब रक्त में मोजूद कोलेस्ट्रोल कोशिकाओ के चारों तरफ चिपक जाता है !और खून में मोजूद जो इन्सुलिन है कोशिकाओं तक नही पहुँच पाता है (इंसुलिन की मात्रा तो पर्याप्त होती है किन्तु इससे द्वारो को खोला नहीं जा सकता है, अर्थात पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है)

वो इन्सुलिन शरीर के किसी भी काम में नही आता है जिस कारण जब हम शुगर level चैक करते हैं शरीर में हमेशा शुगर का स्तर हमेशा ही बढा हुआ होता है क्यूंकि वो कोशिकाओ तक नहीं पहुंची जबकि जब हम बाहर से इन्सुलिन लेते है तब वो इन्सुलिन नया-नया होता है तो वह कोशिकाओं के अन्दर पहुँच जाता है !

अब आप समझ गये होगे कि मधुमेह का रिश्ता कोलेस्ट्रोल से है न कि शुगर से

जब सम्भोग के समय पति पत्नी आपस में नही बना कर रख पाते है या सम्भोग के समय बहुत तकलीफ होती है समझ जाइये मधुमेह हो चूका है या होने वाला है क्योकि जिस आदमी को मधुमेह होने वाला हो उसे सम्भोग के समय बहुत तकलीफ होती है क्योकि मधुमेह से पहले जो बिमारी आती वो है सेक्स में प्रोब्लम होना, मधुमेह रोग में शुरू में तो भूख बहुत लगती है। लेकिन धीरे-धीरे भूख कम हो जाती है। शरीर सुखने लगता है, कब्ज की शिकायत रहने लगती है। बार बार बहुत अधिक प्यास लगती है अधिक पेशाब आना और पेशाब में चीनी आना शुरू हो जाती है और रोगी का वजन कम होता जाता है। शरीर में कहीं भी जख्मध्घाव होने पर वह जल्दी नहीं भरता।

तो ऐसी स्थिति मे हम क्या करें ??

100 ग्राम (मेथी का दाना )ले ले इसे धूप मे सूखा कर पत्थर पर पीस कर इसका पाउडर बना लें !

100 ग्राम (तेज पत्ता ) लेलें इसे भी धूप मे सूखा कर पत्थर पर पीस कर इसका पाउडर बना लें !

150 ग्राम (जामुन की गुठली )लेलें इसे भी धूप मे सूखा कर पत्थर पर पीस कर इसका पाउडर बना लें !

250 ग्राम (बेलपत्र के पत्ते ) लेलें इसे भी धूप मे सूखा कर पत्थर पर पीस कर इसका पाउडर बना लें !
_________________
तो

मेथी का दना - 100 ग्राम
तेज पत्ता ------- 100 ग्राम
जामुन की गुठली -150 ग्राम
बेलपत्र के पत्ते - 250 ग्राम

तो इन सबका पाउडर बनाकर इन सबको एक दूसरे मे मिला लें ! बस दवा तैयार है !!
इसे सुबह -शाम (खाली पेट ) 1 से डेड चम्मच से खाना खाने से एक घण्टा पहले गरम पानी के साथ लें !!
2 से 3 महीने लगातार इसका सेवन करें !! (सुबह उठे पेट साफ करने के बाद ले लीजिये )

कई बार लोगो से सीधा पाउडर लिया नहीं जाता ! तो उसके लिए क्या करें ??
आधे से आधा गिलास पानी को गर्म करे उसमे पाउडर मिलाकर अच्छे से हिलाएँ !! वो सिरप की तरह बन जाएगा ! उसे आप आसानी से एक दम पी सकते है ! उसके बाद एक आधा गिलास अकेला गर्म पानी पी लीजिये !!

____________________________

अगर आप इसके साथ एक और काम करे तो सोने पे सुहागा हो जाएगा ! और ये दवा का असर बहुत ही जल्दी होगा !! जैसा कि आप जानते है शरीर की सभी बीमारियाँ वात,पित ,और कफ के बिगड़ने से होती हैं !! दुनिया मे सिर्फ दो ही ओषधियाँ है जो इन तीनों के सतर को बराबर रखती है !!

एक है गौ मूत्र , दूसरी है त्रिफला चूर्ण !!

 हमारे शास्त्रो मे करोड़ो वर्षो पहले से इसका महत्व बताया है ! लेकिन गौ मूत्र का नाम सुनते हमारी नाक चढ़ती है !

खैर जिसको पीना है वो पी सकता है ! गौ मूत्र बिलकुल ताजा पिये सबसे बढ़िया !! बाहरी प्रयोग के लिए जितना पुराना उतना अच्छा है लेकिन पीने के लिए ताजा सबसे बढ़िया !! हमेशा देशी गाय का ही मूत्र पिये (देशी गाय की निशानी जिसकी पीठ पर हम्प होता है ) ! 3 -4 घंटे से अधिक पुराना मूत्र ना पिये !!
और याद रखे गौ मूत्र पीना है अर्क नहीं ! आधे से एक सुबह सुबह कप पिये ! सारी बीमारियाँ दूर !

________________________________

अब बात करते हैं त्रिफला चूर्ण की !

त्रिफला अर्थात तीन फल !

कौन से तीन फल !

1) हरड़ (Terminalia chebula)
2) बहेडा (Terminalia bellirica)
3) आंवला (Emblica officinalis)

एक बात याद रखें इनकी मात्रा हमेशा 1:2:3 होनी चाहिए ! 1 अनुपात 2 अनुपात 3 !

बाजार मे जितने भी त्रिफला चूर्ण मिलते है सब मे तीनों की मात्रा बराबर होती है ! बहुत ही कम बीमारियाँ होती है जिसमे त्रिफला बराबर मात्रा मे लेना चाहिए !!
इसलिए आप जब त्रिफला चूर्ण बनवाए तो 1 :2 मे ही बनवाए !!

सबसे पहले हरड़ 100 ग्राम , फिर बहेड़ा 200 ग्राम और अंत आंवला 300 ग्राम !!
इन तीनों को भी एक दूसरे मे मिलकर पाउडर बना लीजिये !! और रात को एक से डेड चमच गर्म पानी के साथ प्रयोग करें !!

सीधा पाउडर लिया नहीं जाता ! तो उसके लिए क्या करें ??
आधे से आधा गिलास पानी को गर्म करे उसमे पाउडर मिलाकर अच्छे से हिलाएँ !! वो सिरप की तरह बन जाएगा ! उसे आप आसानी से एक दम पी सकते है ! उसके बाद एक आधा गिलास अकेला गर्म पानी पी लीजिये !!

सावधानियाँ !!

गुड़ खाये , फल खाये ! भगवान की बनाई गई को भी मीठी चीजे खा सकते हैं !!
रात का खाना सर्यास्त के पूर्व करना होगा !! मतलब सूर्य अस्त के बाद भोजन ना करें

ऐसी चीजे ज्यादा खाए जिसमे फाइबर हो रेशे ज्यादा हो, High Fiber Low Fat Diet घी तेल वाली डायेट कम हो और फाइबर वाली ज्यादा हो रेशेदार चीजे ज्यादा खाए। सब्जिया में बहुत रेशे है वो खाए, डाल जो छिलके वाली हो वो खाए, मोटा अनाज ज्यादा खाए, फल ऐसी खाए जिनमे रेशा बहुत है ।

Sunday, 8 December 2013

आयुर्वेदिक औषधियां

आयुर्वेदिक औषधियां –


गुलाची :

गुलाची का रंग सफेद होता है। गुलाची का फल पेड़ और पुष्प वाटिकाओं में होता है। गुलाची का पेड़ बड़ा होता है। गुलाची का फूल होता है। इसके पत्ते गंदे होते है। गुलाची की जड़ की छाल… …. ……. ….

गाजर :

गाजर प्रकृति की बहुत ही कीमति देन है जो शक्ति का भण्डार है। गाजर फल भी है और सब्जी भी तथा इसकी पैदावार पूरे भारतवर्ष में की जाती है। मूली की तरह गाजर भी जमीन के अंदर पैदा होती है। … …. ……. ….

जंगली गाजर :

जंगली गाजर सामान्य गाजर की तरह ही यह एक जड़ होती है जंगली गाजर धातु को पुष्ट (गाढ़ा) करती है। आमाशय में गर्मी पैदा करती है। हृदय को मुलायम करती है। शरीर में अघिक मात्रा में वीर्य उत्पन्न करता है। … …. ……. ….

गाजर के बीज :

गाजर के बीज लाल और भूरे रंग के होते है। गर्भाशय को शुद्ध करते हैं। सीने के दर्द में यह लाभकारी होता है। इसके बीजों की राख जलोदर (पेट में पानी की अधिकता), पेशाब की बंदी और… …. ……. ….

जंगली गाजर के बीज :

जंगली गाजर के बीज कालापन लिए हुए लाल रंग का होते है।जंगली गाजर के बीज खाने से पेशाब ज्यादा मात्रा में आता है। यह रुके हुए मासिक धर्म को दुबारा चालू करता है। पाचन शक्ति .. …. ……. ….

घुघंची :

दोनों प्रकार की घुघंची बलकारक (ताकत देने वाला), रुचिकारक (इच्छा बढ़ाने वाला) और गृहपीड़ा निवारक होती है। अगर सफेद घुघंची के छिलके उतार कर उसका चुरन बनायें और दूध में डालकर रबड़ी बना लें तो यह रबड़ी धातु को अधिक मात्रा में… …

गुलाब जामुन :

गुलाब जामुन सफेद, हरे, पीले और लाल रंग के होते है। इसके फल अमरुद की तरह होते हैं। गुलाब जामुन मन को प्रसन्न करता है। खून को गाढ़ा करता है और गुणों में यह सेब के जैसा……. ……. ….

गुल मेंहदी :

गुलमेंहदी फुलवाड़ियों में लगाया जाता है। गुलमेंहदी का पेड़ 2 फीट तक ऊंचा होता है। गुलमेंहदी के फूल गोल-गोल लाल तथा काले रंगों के होते हैं। गुलमेंहदी के बीजों को गोश्त के साथ खाने से शरीर बलवान व शक्तिशाली……………..

घीकुंवार :

घीकुंवार रेतीली खारी जमीन पर होती है। घीकुवार के पत्ते लम्बे और मोटे होते हैं। घीकुंवार के किनारों पर दो छोटे-छोटे कांटे होते है। घीकुंवार ऊपर से हरे रंग का तथा अन्दर सफेद से लुबावदार होता है।… …. ……. ….

गंधप्रियंगु, :

प्रियंगुद नाम की एक लता होती है। इसके फूलों को फूल प्रियंगु तथा फूलो के अंदर के भाग को गंधप्रियंगु कहते हैं यह शीतल (ठंड़ी), कड़वी, विषैली, वात, पित्त, रक्तविकार (खूनी की खराबी), पसीना, दाह, तृषा (प्यास), वमन (उल्टी), बुखार, गुल्म (फोड़ा) को दूर करने वाली और … …. ……. ….

गंधक :

गंधक पीले रंग का होता है। गंधक एक खनिज पदार्थ हैं, इसें आग बहुत जल्दी पकड़ लेती है। गंधक खून को साफ करती है। गंधक शरीर में गर्मी लाती है। गंधक खुजली… …. ……. ….

गन्धपलासी :

गंधपलासी कषैली, ग्राही (भारी), हल्की, कडुवी, तीखी, शोथ, खांसी, श्वास, शूल, हिचकी … …. ……. ….

गेहूं :

गेहूं लोगों का मुख्य आहार है तथा सारे खाने वाले पदार्थो में गेहूं का महत्वपूर्ण स्थान है। समस्त अनाजों की अपेक्षा गेहूं में पौष्टिक तत्व अधिक होते हैं। इसकी उपयोगिता के कारण ही गेहूं अनाजो का राजा कहलाता है। अपने देश भारतवर्ष में गेहूं का उत्पादन सबसे ज्यादा… …. ……. ….

गांजा (भांग) :

गांजा का रंग हरा और भूरा होता है। गांजा नशा चढ़ाता है। शरीर के अंग-प्रत्यंग को सुस्त और ढीला कर देता है। यह गर्मी पैदा करता है। और बेहोशी लाने में अफीम से बढ़कर होता है।… …. ……. ….

गन्ने का रस :

गन्ने का रस सफेद रंग का होता है। गन्ने का रस बहुत ही मीठा होता है। इसके साथ पके चावल का सेवन करने से शरीर मोटा और बलवान होता है। यह मन को प्रसन्न… …. ……. ….

जंगली गेहूं :

जंगली गेहूं का दाना स्याह (नीला) रंग का होता है। जगंली गेहूं एक घास होती है जो बिल्कुल गेहूं के समान होती है। यह सूजन और वायु को दूर करता हैं तथा मेदे के कीड़े को मारता है। चाकसू और मिश्री के साथ बनाया हुआ सुरमा……. ……. ….

गेंदा :

गेंदें के फूलों की मालाओं का सर्वाधिक प्रयोग आम जीवन में किया जाता है। गेंदें की खूबसूरती और सुंगध सभी को आकर्षित करती है। उसका पौधा बरसात के मौसम में लगता है और पूरे भारत वर्ष में पाया जाता है। गेंदें के पौधे की उचाई 90 से 120 सेमी तक होती … …. ……. ….

गेरु :

गेरु लाल रंग की एक मिट्टी होती है जो जमीन के अंदर खानों से निकाली जाती है। गेरु का रंग पीला और लाल होता है। गेरु का बीज होता है। यह रक्त विकार (खून से संबंधी रोग), कफ, हिचकी और विष को दूर करता है। यह बच्चों के लिए… …. ……. ….

घी (ब्यूटीरम डेप्यूरम) :

घी तबियत को नर्म करता है। शरीर को स्वस्थ्य बनाता है। तैयारी लाता है। घी आवाज को साफ करता है। कलेजे की खरखराहट को मिटाता है। घी गले की खुश्की को मिटाता है। सूखी खांसी में यह लाभकारी होता … …. ……. .…

गिलोय(Tinspora Kordifoliya) :

नीम पर चढ़ी गिलोय को सबसे उत्तम माना जाता है। गिलोय के पत्ते दिल के आकार के, पान के पत्तों के समान व्यवस्थित तरीके से 2 से 4 इंच व्यास के चिकने होते हैं। गिलोय के फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लगते हैं जो गर्मी के मौसम में आते हैं।… …. ……. ….

गिलोय का रस :

गिलोय का रस स्वादिष्ट, हल्का, दीपन और आंखों के लिए लाभकारी होता है। यह वातरक्त (खूनी दोष), त्रिदोष (वात, कफ, और पित्त), पांडुरोग (पीलिया), तीव्र ज्वर, उल्टी, पुराना बुखार, पित्त, कामला, प्रमेह, अरुचि, श्वांस, खांसी, हिचकी, बवासीर, क्षय (टी.बी), दाह,… …. ……. ….

गोभी :

गोभी शरीर को बलवान बनाती है तथा यह पित्त, कफ और रक्तविकारों (खून की खराबी) को दूर करती है। यह प्रमेह (वीर्य विकार) तथा सूजाक के रोग में बहुत लाभकारी होता है। खांसी, फोड़े-फुंसी वालों के लिए लाभकारी होता है।…………. ….

जंगली गोभी :

जंगली गोभी का पेड़ छत्तेदार होता है इसके पत्ते लम्बे-लम्बे होते हैं। फूल सूनहरे रंग के पीले होते है। जंगली गोभी के पत्तों के बीच में एक बाल निकलती है।… …. ……. ….

गोखरु(LAND CALTROPS),(Tribulus Terrestris) :

गोखरु एक सरलता से उपलब्ध होने वाला और जमीन पर फैलने वाला पौधा है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरंभ में ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास आम जगहों पर उग आता है। गोखरु की शाखाएं 2-3 फुट लंबी होती है जिसमें पत्ते चने के समान… …. ……. ….

गोल लौकी :

गोल लौकी की बेल चलती हैं। गोल लौकी का फूल सफेद और पत्ते बड़े-बड़े होते हैं। गोल लौकी की सब्जी भी बनाई जाती है। गोल लौकी हरे और पीले रंग की होती है। गोल लौकी भारी… …. ……. ….

गोल मिर्च :

हल्की, तीक्ष्ण, गर्म, कड़वी, दिल के लिए लाभकारी, रुचिकारक (इच्छा बढ़ाने वाला), वात, बलगम (कफ), मुंह की बदबू को दूर करने वाला तथा आंखों की रोशनी को तेज करने वाला होता है।… …. ……. ….

गोंद :

पेड़ से निकलने वाले गाढ़े पदार्थ को गोंद कहते हैं। गोंद वाले युवा पेड़ों पर अक्सर सर्दी के मौसम में छाल फटकर खुद ही बाहर आ जाती है। इस छाल को सुबह सूरज उगने से पहले … …. ……. ….

गोंद पटेर :

गोंद के पत्ते बहुत लम्बे-लम्बे तथा 4-5 फूट के लगभग ऊंचे होते है। गोंद के पत्ते एक इंच-मोटे और चौड़े होते हैं कि ये बीच से चीरे जा सकते है। इसके ऊपर बाजरे के समान एक बाल होती है। बाल के ऊपर एक पतली सी लकड़ी… …. ……. ….

गोरोचन :

गोरोचन गाय का मस्तक (माथे) में होता है। गोरोचन का रंग पीला होता है। यह बहुत ही उपयोगी वस्तु है। तांत्रिक लोग तंत्र में इसका अधिक मात्रा में उपयोग करते हैं।… …. ……. ….

गुड़ TRACLE :

गुड़ से विभिन्न प्रकार के पकवान बनते हैं। मेहनत करने के बाद गुड़ खाने से थकावट उतर जाती है। परिश्रमी लोगों के लिए गुड़ खाना अधिक लाभकारी है। चूरमा में या लपसी के साथ गुड़ खाने से गुड़ … …. …….

गुड़हल Malvaceae, Hibiscus rosa sinensis, Shoe flower; China Rose :

गुड़हल का पौधा बाग-बगीचों, घर के गमलों, क्यारियों और मंदिर के बगीचों में फूलों की सुंदरता के कारण लगाया जाता है गुड़हल का पौधा आमतौर पर 5 से 9 फुट उचां होता है, जो सदा हरा-भरा रहता है। इसके पत्ते 3 सेमी लम्बे व 2 सेमी चौड़े, चिकने, चमकील… …. ……. ….

गुडूची सत्व :

सत्व निष्कासन विधि द्वारा गुडूचि कांड से औषधि का निर्माण करना चाहिए……. ……. ….

गुग्गुल Bedeliyam :

गुग्गुल का पेड़ 4 से 12 फुट ऊंचा होता है। गुग्गुल की शाखाएं कांटेदार होती है। शाखाओं की टहनियों पर भूरे रंग का पतला छिलका उतरता नजर आता है। गुग्गुल की छाल हरापन लिए हुए पीली, चमकीली और परतदार होती है। गुग्गुल के पत्ते नीम के पत्ते के समान छोटे-छोटे, चमकीले,…

गुलदाउदा :

गुलदाउदा सफेद और पीले रंग का होता है। गुलदाउदा एक खुशबूदार पेड़ का फूल होता है जो लगभग 1 फुट ऊंचा होता है। गुलदाउदा का फूल जमे हुए खून को पचाता है। अगर मेदों में… …. ……. ….

गुलाब का जीरा :

गुलाब का जीरा भूरे रंग का होता है। गुलाब का जीरा गुलाब में से निकलता है। गुलाब का जीरा मुंह से खून के आने को रोकता है। वह दस्त जो किसी तरह बंद न होता हो को बन्द करता है। यह आमाशय और आंखो की रोशनी……………..

गुलकन्द :

गुलकन्द लाल रंग का होता है। गुलकन्द खाने में मीठा और खट्टा होता है। गुलकन्द गुलाब के फल और शक्कर को मिलाकर बनाया जाता है। यह सूर्य के ताप और चन्द्रमा की ठंडक से बनाया…………….

गुलरोगन :

गुलरोगन लाल रंग का होता है। गुलरोगन तिल्ली के तेल और गुलाब के फुल को मिलाकर बनाया जाता है। यह आमाशय को बलवान बनाता है। इसे सिर में लगाने से दिमाग की गर्मी शांत,… …. ……. ….

गुलनार :

गुलनार के पेड़ में फल नही लगते है। गुलनार रक्तरोधक (खून को साफ करने वाला) होता है और पाचनशक्ति (भोजन पचाने कि क्रिया) को बढ़ाता है। 7 ग्राम की मात्रा में गुलनार का सेवन… …. ……. ….

गुंदना पहाड़ी :

गुंदना पहाड़ी हरे रंग की होती है। गुंदना पहाड़ी लहसुन के समान एक सब्जी होती है। पहाड़ी गुंदना कफ (बलगम) को गलाकर शरीर से बाहर निकाल देती है। यह पसीना लाता है। पहाड़ी गुंदना के सेवन से स्त्रियों के… …. ……. ….

ग्वारपाठा, घृतकुमारी :

इसका पौधा अक्सर खेतों की बाड़ में, नदी किनारे अपने आप ही उग जाता है। ग्वार पाठ के पौधे की ऊचाई 60 से 90 सेमी तक होती है। ग्वार पाठ के पत्तों की लम्बाई एक से डेढ़ फुट तथा चौड़ाई एक से तीन इंच तक,… …. ……. ….

गूलर KLASTER FIG KANTRI FIG, FAIKAS GLOMERETA :

गूलर का वृक्ष, 20 से 40 फुट ऊंचा होता है। गूलर का तना, मोटा, लम्बा, तथा टेढ़ा होता है। गूलर की छाल लाल व मटमैली रंग की होते है। गूलर के पत्ते 3 से 5 इंच लम्बे, डेढ़ से 3 इंच चौड़े, नुकीले, चिकने और चमकीले होते हैं। गूलर के फूल गुप्त रुप से…. ……. ….

गुलाब (ROSE),(ROSA CENTIFOLIA) :

गुलाब का पौधा ऊंचाई में 4-6 फुट का होता है। तने मे असमान कांटे लगे होते है। गुलाब की पत्तियां 5 मिली हुई होती है। गुलाब का फल अंडाकार होता है। गुलाब के पेड़ फुलवाड़ियों में लगाये जाते है। इसकी डालों में कांटे लगे होते हैं, यह 2 तरह का……. ….

गुंजा BEED TREE :

गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त……. ….

ग्लिसरीन :

मुंह के छालों में ग्लिसरीन लगाने से लाभ मिलता है। जले हुए अंगों पर ग्लिसरीन लगाने से दर्द और जलन कम हो जाती है थकावट होने पर पैरों में ग्लिसरीन की मालिश करने से लाभ होता है। रुई की एक लम्बी सी बत्ती बनाकर ग्लिसरीन……. ….

आयुर्वेदिक औषधियां

आयुर्वेदिक औषधियां –

इमली :

इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह अमेरिका, अफ्रीका और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते है। 8 वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। फरवरी और मार्च……………

इन्द्रायन छोटी :

इन्द्रायन छोटी कडुवा,तीखा, उष्णवीर्य, लघु, अग्निवर्द्धक, दस्तावर, बांझपन को दूर करने वाला, विषनाशक, तथा पेट के कीड़े, कफ, घाव, पेट के रोग, गांठे, पित्त, सफेद घाग…. ……. ….

इन्द्रायन कांटेदार :

कांटेदार इन्द्रायण ईरान आदि देशों में पाया जाता है। यह औषधि आमाशय के लिए पौष्टिक और रसायन गुणों से युक्त होती है। इस औषधि का उपयोग उल्टी, दस्त …. ……. ….

इन्द्रायन छोटी :

लाल इन्द्रायन वामक (उल्टी लाने वाला), दस्तावर, सूजननाशक, गले के रोग, सांसरोग, अपचे, खांसी, प्लीहा, कफ पेट के रोग, सफेद दाग, बड़े घाव, और बांझपन को नष्ट…. ……. ….

ईसरमूल :

ईश्वरमूल कडुवा, रसयुक्त होता है। औषधि के रूप मे इसे सांस रोग, खांसी, भूत –प्रेत बाधा उत्तेजक, दस्तावर, उल्टी लाने वाला, रक्तशोधक, सफेद दाग, पीलिया, बवासीर,…. ……. ….

इपिकाक :

इपिकाक बलगम, उल्टी, पाचक, उत्तेजक, पसीना लने वाला, गर्भाशय को संकुचित करने वाला,पित्त तथा दस्तावर होता है। यह मल के साथ बाहर निकलने वाले कीड़…. ……. ….

ईसबगोल (SPOGEL SEEDS) :
ईसबगोल की व्यवसायिक रूप से खेती हमारे देश के उतरी गुजरात के मेहसाना और बनासकाठा जिलों में होती है। वैसे ईसबगोल की खेती उ.प्र पंजाब,हरियाणा प्रदेश मे भी की जाती है। ईसबगोल का पौधा तनारहीत…………….

गन्ना(ईख) :

आहार के 6 रसों मे मधुर रस का विशेष महत्व है। गुड़,चीनी, शर्कर आदि मधुर (मीठी)पदार्थ गन्ने के रस से बनते है। गन्ने का मूल जन्म स्थान भारत है। हमारे देश में यह पंजाब,हरियाणा, उत्तर प्रदेश,बिहार,बंगाल, दक्षिण……………

इलायची :

इलायची हमारे भारत देश तथा इसके आसपास के गर्म देशों में ज्यादा मात्रा में पायी जाती है। इलायची ठंडे देशों में नहीं पायी जाती है। इलायची मालाबार,कोचीन, मंगलौर तथा कर्नाटका में बहुत पैदा होती है। इलायची के पेड़ …………….

इन्द्रायण :

इन्द्रायण एक लता होती है जो पूरे भारत के बलुई क्षेत्रों में पायी जाती है यह खेतों में उगाई जाती है। इन्द्रायण 3 प्रकार की होती है। पहली छोटी इन्द्रायण, दूसरी बड़ी इन्द्रायण और तीसरी लाल इन्द्रायण होती है। तीनों प्रकार………..

ईसबगोल(SPOGEL SEEDS) :

ईसबगोल की व्यवसायिक रूप से खेती हमारे देश के उत्तरी गुजरात के मेहसाना और बनासकाठा जिलों में होती है। वैसे ईसबगोल की खेती उ.प्र, पंजाब, हरियाणा प्रदेशों में भी की जाती है। ईसबगोल का पौधा तनारहित, मौसमी, झाड़ीनुमा होता

फिटकरी :

यह लाल व सफेद दो प्रकार की होती है । दोनों के गुण लगभग समान ही होते है। सफेद फिटकरी का ही अधिक्तर प्रयोग किया जाता है। शरीर की त्वचा, नाक, आंखे, मूत्रांग और मलदार पर इसका स्थानिक……. ….

फल कटेरी :

इसमें डालियां होती हैं जो जमीन पर फैली रहती हैं। इसके फूल नीले तथा बैंगनीं रंग के होते हैं । इसके फल छोटे आंवले जैसे होते हैं जो पकने पर पीले हो जाते है। कटेरी के फल को कटेरी,……. ….

फालसा :

फालसे का विशाल पेड़ होता है। यह बगीचों मे पाया जाता है। इसका फल पीपल के फल के बराबर होता है। यह मीठा होता है। गर्मी के दिनों में इसका शर्बत भी बनाकर……. ….

फनसी (फेंच बीन्स) :

फनसी का रस इंसुलिन नामक हार्मोन का स्राव बढाता है। इसलिए यह मधुमेह (शूगर) में उपयोगी होता है। इसकी फसल शीत ॠतु (सर्दी का मौसम) में होती है और फलियां लम्बी……. ….

फ़िनाइल :

एक बाल्टी पानी में 1 चम्मच फ़िनाइल डालकर स्नान करने से खुजली, सूखी फुंसियां ठीक हो जाती है। सावधानी रखें कि यह पानी सिर पर न डालें। नाक, आंख, कान व मुंह…….

फराशबीन :

फराशबीन एक सब्जी को कहा जाता है यह उन सब्जियों में से एक होती है जिनमें बहुत अधिक कैलोरी पाई जाती है इसके अंदर प्रोटीन कम मात्रा में पाया जाता है। इसके अंदर प्रोटीन कम मात्रा……. ….

फांगला :
 फांगला छोटा, रूक्ष (रूख), गर्म, दीपक (उत्तेजक), रोचक,तीक्ष्ण (तीखा), रक्त संचारक (रक्त संग्राहक), वातकर (वायु को नष्ट करने वाला),………Â

फरहद :
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यह तीखा (तिक्त), कटु (खट्टा), उष्णवीर्य (गर्म प्रकृति वाला), रोचक, दीपन (उतेजक), पाचक होता है। मूत्रल (पेशाब की मात्रा अधिक आना), आर्तवजनन (बन्द माहावारी चालू करना), बाजीकरण……. .…

फालसा :

फालसे का विशाल पेड़ होता है। यह बगीचों में पाया जाता है। उत्तर भारत में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है……………

आयुर्वेदिक औषधियां

आयुर्वेदिक औषधियां

दाद मर्दन :

दादमर्दन के पत्ते कीड़ों को नष्ट करने वाला, कण्डु(खुजली) दाद, चर्मरोग-नाशक और दस्तावर होते है। बीज, कसैले, रेचक, वातकफ को नष्ट व कुछ मूत्रल होता है। दाद… ……. ….

दादमारी :

दादमारी के पत्तों को पीसकर दाद या खाज पर लगाने से दाद-खाज-खुजली में आराम मिलता है।.. …. ……. ….

दादमारी :

दादमारी तीखा, कडुवा,कब्ज को नष्ट करने वाला, और उष्णवीर्य है। इसके पत्ते अधिक ज्वलनशील होते है। उन्हे पीसकर त्वचा पर लगाने से जल्द ही जलन होकर आधे.. …. ……. ….

दुधेरी :

दुधेरी लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, तीखा, कडुवा, मधुर, उष्णवीर्य, खाने में कडुवा, कफ, पित्त को दूर करने वाला, उत्तेजक,यकृत को उत्तेजित करने वाला, पित्तसारक,दस्तावर. …. ……. ….

दुधिया हेमकन्द :

दुधिया हेमकन्द स्वाद में तीखा, मधुर, उष्णवीर्य (कुछ लोग शीत वीर्य मानते है), दर्द और वेगशामक, रक्तशोधक ,सूजनाशक, कफ,विष त्वचा संबंधी विभिन्न प्रकार के…. ……. ….

दूधिया लता :

दूधिया लता तीखा, भारी, कडुवा, रूखा, उष्णवीर्य, कब्जकारक, मूत्रवर्द्धक, कामोत्तेजना को बढ़ाने वाला, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, सफेद दाग, वातनलिक.. …. ……. ….

दुद्धी बड़ी(लाल) नागार्जुनी :

दुद्धी बड़ी के गुण धर्म छोटी दुद्धी के ही समान होते है। यह श्वासनलिका के आक्षेप में लाभकारी है। पुरानी खांसी,फेफड़ों का फूलना. वर्षा ॠतु की सांस का दौरा आदि.. …. ……. ….

डिजिटेलिस (DIGITALIS PURPUREA) :
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डिजिटेलस आकार में छोटा, तीखा, कड़वा, गर्म प्रकृति का तथा हृदय के रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह कफनाशक, पित्तवर्द्धक, पेशाब अधिक लाना, कफ को दूर करने वाला, बाजीकरण, गर्भाशय……. ….

डिकामाली (GARDENIA GUMMIFERA) :
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डिकामाली छोटा, रुखा, तीखा, कडुवा, गर्म प्रकृति का, कफवात को नष्ट करने वाला, उत्तेजक, पाचक, अनुकुल, संकोचक, घाव को भरने वाला, दर्द को दूर करने वाला, आमनाशक, हृदय को……. ….

डबलरोटी :
कैंसर 10 जनवरी 1979 (वफ़ी) नई दिल्ली, लीडन विश्वविद्यालय के (पश्चिमी जर्मनी) के प्रोफ़ेसर ग्रोएन ने एक नई खोज की, की अगर पेट के कैंसर से बचना हो तो भोजन में डबलरोटी की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए…………....

डाभ :

डाभ त्रिदोष नाशक होता है। यह मूत्रकृच्छ पथरी (पेशाब करने की जगह मे पथरी), प्यास, वस्तीरोग, प्रदररोग और रक्तविकार (खून की खराबी)को दूर करता है, गर्भ की स्थापना करता है तथा यह श्रम और रजोदोष का निवारन…………….

दही :
दही में प्रोटीन की क्वालिटी सबसे अच्छी होती है। दही जमाने की प्रक्रिया में बी विटामिनों विशेषकर थायमिन, रिबोफ़्लेवीन और निकोटेमाइड की मात्रा दुगनी हो जाती है। दूध की अपेक्षा दही आसानी से पच जाता है।…………….

दालचीनी :

दालचीनी मन को प्रसन्न करती है। सभी प्रकार के दोषों को दूर करती है। यह पेशाब और मैज यानि की मासिक धर्म को जारी करती है। यह धातु को पुष्ट करती है। यह उन्माद यानी की पागलपन को दूर करती है। इसका तेल…………….

डंडोत्पल :
डंडोत्पल सभी प्रकार की खांसी को दूर करता है। डंडोत्पल की टोपी बनाकर सिर में पहनने से बुखार उतर जाता है।…………….

हाथी का दांत :

हाथी दांत के बुरादे को शहद के साथ सेवन करने से दिमागी शक्ति और बुद्धि बढती है। यह दस्तों और खून के बहने को बंद करता है। इससे बनाया तेल संभोग शक्ति को बढाता है। हाथी दांत की ताबीज गले मे लटकाने से…………….

दन्ती :
दन्ती बहुत अधिक गर्म होती है। यह जलोदर (पेट मे पानी भरना), सूजन और पेट के कीड़ों को नष्ट करती है तथा गैस को समाप्त करती है।…………….

दारूहल्दी :

दारूहल्दी के पेड़ हिमालय क्षेत्र में अपने आप झाड़ियों के रूप मे उग आते है। यह बिहार, पारसनाथ और नीलगिरी की पहाड़ियों वाले क्षेत्र में भी पाई जाते है। इसका पेड़ 150 से लेकर 480 सेमीमीटर ऊंचा, कांटेदार, झाड़ीनुमा…………….

दशमूल :
दशमूल त्रिदोषनाशक,श्वास (दमा), खांसी, सिर दर्द, सूजन, बुखार, पसली का दर्द, अरुचि (भोजन का मन ना करना) और अफारा (पेट मे गैस) को दूर करता है। स्त्रियों के…………….

दशमूलारिष्ट :

दशमूल 600 ग्राम, चित्रक मूल, 300 ग्राम, गुडूची, कांड एवं पटिटका लोध्र 240 ग्राम, आमलकी 192 ग्राम, यवांसा पंचांग 144 ग्राम, खादिर त्वक, असन त्वक और हरीतकी प्रत्येक 96 ग्राम, विडंग, कुष्ठ, मंजिष्ठा, देवदारू, यष्टि मधु…………….

दौना (मरुवा) :
यह मन को प्रसन्न करता है। सूजनो को पचाता है और शरीर को शुद्ध करता है। यह मसाना और गुर्दे की पथरी को तोड़ता है। यह समलवाई की मस्तक पीड़ा के लिए लाभकारी होती है। यह सीने का दर्द, दमा, जिगर तथा…………….

देवदार :
देवदार दोषों को नष्ट करता है। सूजनों को पचाता है। सर्दी से उत्पन्न होने वाली पीड़ा को शांत करता है, पथरी को तोड़ता है। इसकी लकड़ी के गुनगुने काढ़े में बैठने से गुदा…………….

देवदारु :

देवदारु के पेड़ हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र, वर्मा, बंगाल में अधिक होते है। इस पेड़ को जितनी अधिक जगह मिल जाए तो यह उतना ही बढ़ता है। 30-40 साल का होने पर इसमे फ़ल आने लगते है। देवदारु का पेड़ 100-200…………….

ढाक DAWNY BRANCH BUTEA :
ढाक का पेड़ पूरे भारत में पैदा होता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 40 से 50 फ़ुट तथा टहनियों की चौड़ाई 5 से 6 फ़ुट होती है। इसकी टहनिया टेढ़ी-मेढ़ी और छाल हल्के भूरे रंग की होती है इसके पत्ते 5 से 8 इंच चौड़े होते है।…………….

धान :

उरक्षत (सीने मे घाव)- 6 ग्राम धान की खील को 100 ग्राम कच्चे दूध और शहद में मिलकर पियें। 2 घंटे बाद गाये के 200 ग्राम दूध में मिश्री मिलाकर पियें। इससे उरक्षत(सीने मे घाव)मिट जाता है।…………….

धनिया CORIANDER :
धनिये के हरे पत्ते और उनके बीजों को सुखाकर 2 रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। हरे धनिये को जीरा, पुदीना, नींबू का रस आदि मिलाकर स्वादिष्ट बनाकर सेवन करने से अरुचि बंद हो जाती है, इससे भूख खुलकर लगती…………….

धतूरा Thorn Apple :

धतूरे का पौधा सारे भारत में सर्वत्र सुगमता के साथ मिलता है। आमतौर पर यह खेतों के किनारों, जंगलों में, गांवों में और शहरों में यहां-वहां उगा हुआ दिख जाता है। भगवान शिव की पूजा के लिए लोग इसके फल और…………….

धवई के फूल :
धवई के फूलों का अधिक उपयोग नशा लाता है। इसके उपयोग से गर्भ ठहरता है और प्यास, अतिसार (दस्त)तथा रुधिर के विकार नष्ट हो जाते है। इसके फूलों का काढ़ा दिन में बराबर मात्रा में लेने से प्रदर रोग नष्ट हो…………….

धाय :

धाय के पेड़ देहरादून के जंगलों में अधिक मात्रा में पाये जाते है। इसके अतिरिक्त यह अन्य प्रदेशों मे भी पाये जाते है। इसका पेड़ 6 से 12 फुट ऊंचा. घना, फैली हुई लम्बी टहनियों से युक्त होता है। इसकी टहनियों और…………….

ढेढस :
ढेढस देर में पचता है, इसका उपयोग गोश्त के साथ बुखार को दूर करता है बाकी इसके सभी गुण लौकी के गुणों के समान ही होते है…………….

धूप सरल :

धूप सरल शरीर की सूजनों को खत्म करती है, यह जख्मों की मवाद (पस) को साफ करके जख्मों को भरती है। यह मिर्गी, सूखी खांसी और दमे के लिए लाभकारी होता है, इसका लेप जख्म और घाव के दागों को मिटाता ……………

दियासलाई :
यदि बर्र, मधुमक्खी ने काटा हो तो दियासलाई (माचिस) का मसाला पानी में घिसकर शरीर के काटे हुए स्थान पर लगाने से लाभ मिलता…………….

द्राक्ष :

द्राक्षा एक श्रेष्ठ प्राकृतिक मेंवा है, इसका स्वाद मीठा होता है। इसकी गिनती उत्तम फलों की कोटि में की जाती है। इसकी बेल होती है। बेल का रंग लालिमा लिये हुआ होता है। द्राक्ष की बेल 2-3 वर्ष की होने लगती है। खासकर……………

द्रोणपुष्पी :
द्रोणपुष्पी का पौधा बारिश के मौसम में लगभग हर जगह पैदा होता है, गर्मी के मौसम में इसका पौधा सूख जाता है। इसकी ऊंचाई 1-3 फुट और टहनी रोमयुक्त होता है। इसके पत्ते तुलसी के पत्ते से समान 1-2 इंच लंबे 1 इंच…………….

हरी दूब CREEPING CYNODAN :

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार दूब (घास) को परम पवित्र माना जाता है, प्रत्येक शुभ कामों पर पूजन सामग्री के रूप मे इसका उपयोग किया जाता है। देवता, मनुष्य, और पशु सभी को प्रिय दूब (घास), खेल के मैदान, मंदिर……………

दूध (MILK) :

दूध पुराने समय से ही मनुष्य को बहुत पसन्द है। दूध को धरती का अमृत कहा गया है। दूध में विटामिन ‘सी’को छोड़कर शरीर के लिए पोषक तत्त्व यानि विटामिन है। इसलिए दूध को पूर्ण भोजन माना गया है। सभी दूधों………….…

औरत का दूध :

जिन लोगों को नींद नही आती है उन लोगों को नाक मे औरत का दूध डालने से नींद आ जाती है। औरत का दूध पीने से दिमाग की बहुत सारी बीमारियों मे लाभ होता है……………

गधी का दूध :

गधी का दूध ठंडक प्रदान करता है, मन को खुश करता है, गर्म प्रकृति वालों के दिल और दिमाग को ताकतवर बनाता है। यक्ष्मा (टी.बी), जीर्ण बुखार और फ़ेफ़ड़े के जख्म के लिए यह् दूध बहुत ही गुणकारी है, जिन लोगों…………….

गाय का दूध :

गाय का दूध जल्दी हजम होता है। खून और वीर्य को बढ़ाता है। वीर्य को मजबूत भी करता है। यह शरीर, दिल और दिमाग को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। यह मैथुन शक्ति (संभोग शक्ति) को बढ़ाता है। जीर्णस्वर, यक्ष्मा……………

हिरनी का दूध :

हिरनी के दूध का सारा गुण नील गाय के दूध के गुणों के बराबर होता है।…………….

नील गाय का दूध :

नील गाय का दूध मन को खुश करता है इससे पेशाब ज्यादा आता है, यह शरीर को शुद्ध करता है और धातु को ताकतवर बनाता है।……………

शेरनी यानी बाघिन का दूध :

ज्यादातर लोग अपने बच्चो को निडर बनाने के लिए शेरनी का दूध पिलाते है, यह सर्दी की बीमारियों में राहत देता है, गुस्से को बढ़ाता है और हौसलो को मजबूत करता…………….

दूधी छोटी और दूधी बड़ी :

यह कफ़ (बलगम) के रोग को शांत करती है, यह कोढ़ और बवाई जैसी बीमारियों के लिये लाभदायक है, पेट के कीड़ो को नष्ट करती है और खांसी के लिये लाभकारी है…………….

सूअर का दूध :

सूअर का दूध शरीर को मोटा ताजा करता है। यह पुराने बुखार और टी.बी को शांत करता है। अंग्रेज लोग इसको अधिक पसंद करते हैं और वे अपने बच्चों को इसका दूध……………

आयुर्वेदिक औषधियां

आयुर्वेदिक औषधियां
चम्पा :

चम्पा के पेड़ बगीचों में लगाये जाते है। इसके पत्ते लम्बे-लम्बे महुआ के पत्तों की भाति पीले रंग के तथा कोमल होते हैं। इसके फूल पीले 4-5 पंखुडियों सहित 5-7 केसरों से युक्त होते है। मालवा देश में इसकी उत्पत्ति अधिक ………………

चीड़ :

चीड़ का बाहरी उपयोग कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के काम में आता है जैसे –पूतिकर(Antiseptic) (नाक से बदबूदार गंध आना) ,प्रदाह(जलन), रक्त-वाहिनियों का. …. ……. ….

चिलबिल :

इसमें निम्न प्रकार के गुण पाये जाते है जैसे –रूक्ष (रूखापन) (खुश्क),अनुकूल, छोटा,तेज (तीखा या तिक्त), कटु-विपाक(खटा), उष्णवीय(गर्म प्रकृति वाला), कफ –पित्ताशामक… ……. ….

चिल्ला :

चिल्ला गर्म प्रकृति वाला, मूत्रल (पेशाब की मात्रा बढ़ाने वाला), रक्तशोधक (खून को सोखने वाला), कफवातनाशक(कफ को नष्ट करने वाला), धातुपुष्टिकर (वीर्य को.. …. ……. ….

चिरायता छोटा :

चिरायता छोटा,तेज (तिक्त या तीखा), शीतवीर्य(ठंडी प्रकृति वाला), दीपन( उत्तेजक), पाचक,रूचिकर(हाजमे को ठीक करने वाला), पित्तशामक (पित्त को नष्ट करने वाला…. ……. ….

चिरयारी :

यह स्वाद में तीखा (तिक्त, तेज), कड़वा(कसैली), शीतल(ठंढा) होता है। तथा यह बल्यवर्धक (शरीर को शक्ति देने वाला),वीर्यप्रद(वीर्य बनाने वाला), स्निग्ध(चिकना. …. ……. ….

चियन :

इसका बीज दाहकारक(जलन को करने वाला), वामक (उल्टी को बन्द करने वाला )तथा मछलियों को मारने वाला होता है। इसका बीज कटि कमर दर्द, संधिशूल.. …. ……. ….

चोबहयात :

खुश्क, दीपन्(उत्तेजक), पाचक, मूत्रल(अधिक मात्रा में पेशाब आना), पसीना अधिक लने वाला, धातुपरिवर्तक(पेशाब में धातु बन्द करना), हृद्य (लाभकारी), उष्ण(गर्म),…. ……. ….

छोंकर :

छोंकर छोटा, रूक्ष(रूखा), इसका पका फल खट्टा, मीठा (मधुर), कषाय(कषैला) तथा शीतवीर्य (ठंडी प्रकृति वाला), कफपित्त-शामक (कफ-पित्त-वात को नष्ट करने वाला…. ……. ….

छिरबेल :
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छिरबेल में कई प्रकार के रोगों को ठीक करनेÂ के गुणÂ पाए जाते है। जैसे-शीतवीर्य आंत्र संकोचक ,धातुपरिवर्त्तक ,मधुमेह (खून में शर्करा का बढ़ जाना) ,मूत्रल (पेशाब को बढ़ाने वाला.. …. ……. ….

चाय :

चाय एक प्रकार के पेड़ की पत्ती होती है। यह बहुत प्रसिद्ब है, जो बहुत मशहुर है। चाय नियमित पीने के लिए नहीं है। यह आवश्कतानुसर पीने पर लाभदायक होता है। चाय वायु और ठण्डी प्रकृति वालो के लिए हितकारी होती है………………

चकबड़ :

चकबड़ स्वादिष्ट, रुखा, हल्का होता है। यह वातपित्त, दाद, कुष्ठ, कृमि(पेट के कीड़े), सांसो की परेशनि, बवासीर, घाव, मेद आदि रोगो को समाप्त करता है। चकबड़े के पत्तों की सब्जी पित्त को बढ़ाने वाला व गर्म कफ, वात, दाद………..

चकोतरा :

सभी रसदार फलों में चकोतरा सबसे बड़े आकार का फल होता है। चकोतरा संतरे की प्रजाति का फल है। परन्तु संतरे की अपेक्षा चकोतरे में सिट्रिक अम्ल अधिक और शर्करा कम होता है। इसके अन्दर का गुदा पीले और………………

चाकसू :

चाकसू काबिज होता है यह सूजन को पचाता है आंखों की रोशनी को बढ़ाता है। आंख से पानी निकलने में यग लाभकारी होता है। घावों के लिए यह लाभदायक होती है। खासतौर पर इन्द्री के घावों के लिए यह विशेष रूप से………..

चालमोंगरा Hydnocarpus oil :

चालमोंगरा के पेड़ दक्षिण भारत, में पश्चिम घाट के पर्वतों पर दक्षिण घाट के पर्वतों पर, दक्षिण भारत, ट्रावनकोर में तथा श्रींलका में अधिक मात्रा में पाये जाते है। इसके बीजो से प्राप्तो होने वाले तेल का तथा बीजों का औषधी में………………

चमेली :

चमेली की बेल आमतौर पर घरों, बगीचों में आमतौर पर सारे भारत में लगाई जाती है जिसके फूलों की खुशबू बड़ी मादक और मन को प्रसन्न करती है। उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद, जौनपुर, और गाजीपुर जिले में इसे विशेष………..

चना (GRAM) :

चना शरीर में ताकत लाने वाले और भोजन में रूचि पैदा करने वाले होते है। सूखे भुने हुए चने बहुत रूक्ष और वात तथा कुष्ठ को कुपित करने वाले होते है। उबले हुए चने कोमल, रूचिकारक, पित्त, शुक्रनाशक, शीतल, कषैले………..

चनार :

चनार की जली हुई छाल का लेप बदन को साफ करता है। सफेद कुष्ठ(कोढ़) के लिए यह बहुत ही लाभकारी होता है। इसके ताजा फलों का काढ़ा सांप इत्यादि जहरीले………..

चंदन :

चंदन की पैदावार तमिलनाडु, मालाबार और कर्नाटक में अधिक होती है। इसका पेड़ सदाबहार, 30 से 40 फुट ऊंचा और अर्द्धपराश्रयी होता है। बाहर से छाल का रंग मटमैला और काला और अंदर से लालिमायुक्त लम्बे………………

लाल चंदन :

लाल चंदन का उपयोग करने से खूनी दस्त और बुखार बंद हो जाते है। यह मानसिक उन्माद(पागलपन) को समाप्त कर देता है। लाल चंदन गुणों में सफेद चंदन से अधिक लाभकारी होता है। यह सूजन, दाह और जलन को………..

चंदन सफेद :

सफेद चंदन मन को प्रसन्न करता है। यह दिल और अमाशय को बलवान बनाता है। यह सूजन को पचाता है। रक्त को बढ़ाता है। यह उन्माद और आन्तरिक गर्मी को दूर करता है। इसे घिसकर लेप करने से मस्तिष्क की……………...

चांदी (SILVER) :

चांदी दिल और दिमाग को शक्तिशाली व बलवान बनाता है। यह मांस, हड्डी, शरीर के अंदर की चर्बी तथा शरीर के सभी अवयवों को पुष्ट करती है। यह वीर्य को गाढ़ा करती है। बलगम को दूर करती है तथा मेद रोग यानी………….

चांदनी के फूल :

चांदनी का फूल दिल को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है, यह मन को प्रसन्न करता है। मानसिक उन्माद(दिमागी परेशानी) को बढ़ाता है। यह दिल की धड़कन जो………………

चन्द्रसूर :

चन्द्रसूर वात, बलगम और दस्त को ठीक करता है। यह बलवर्द्धक और पुष्टिकारी होता है। चन्द्रसूर गुल्म को खत्म करता है, स्त्री के स्तनों में दूध को बढ़ाता है। इसको पानी में पीसकर पीने तथा इसका लेप करने से खून के रोग………….

चरस :

चरस के सेवन से शरीर में नशा आता है और मैथुन के समय वीर्य को अधिक देर तक रोकता है। यह सूजनों को पचाती है। होशोहवाश को खो देती है और बेहोशी उत्पन्न………………

चरबी :

चरबी सूजन को पचाती है। दर्द को शान्त करती है। यह बदन के अवयवों में तरावट लाती है, खासकर पुट्ठों को। इसे खाने से शरीर शक्तिशाली, मोटा और स्फूर्तिवान हो जाता है। सभी जनवरों की चरबी उस जानवर के मांस के………….

चौलाई :

चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी सब्जी बनाकर………………

चावल :

चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी सब्जी बनाकर………………

चावल मोंगरा :

चावल मोगरा का अधिक मोंगरा गोटियों को तोड़ता है। यह शरीर को शुद्ब करता है। इसका उपयोग करने से कुष्ठ(कोढ़), खुजली और सफेद दाग तथा चमड़ी के रोग दूर………….

चंवरा :

चंवरा तृप्तिकारक, वातकारक, रूचि पैदा करने वाली, स्त्री के स्तनों में दूध बढ़ाने वाली तथा शरीर को शक्तिशाली बनाती है। यह मल को रोकती है। यह गन्ने के समान ही………………

छाछ :

छाछ या मट्ठा शरीर में उपस्थित विजातीय तत्वों को बाहर निकालकर नया जीवन प्रदान करता है। यह शरीर में प्रतिरोधात्मक(रोगों से लड़ने की शक्ति) शक्ति पैदा करता है। छाछ में घी नहीं होना चाहिए। गाय के दूध से………….

छाल :

बूटी अथवा पेड़ों की छाल और बक्कल को युवावस्था में ही उतारना चाहिए। मुर्झाये एंव सूखे पेड़ की छाल में गुण कम हो जाते है। पेड़ की हरी भरी अवस्था में छाल आसानी से उतर जाती है। अतः बसंत ऋतु से पहले या………………

छरीला :

छरीला काबिज होती है। यह सूजन और अफारा(पेट की गैस) को मिटाती है। यह प्रकृति के समान आचरण करती है। छरीला का काढ़ा दिल के लिए अच्छा होता है। छरीला उन्माद, पागलपन, उल्टी, मिर्गी और जी मचलाने में………….

छतिवन :

छतिवन कषैला, गर्म, कड़वा, अग्नि को दीपन करने वाला, सारक, स्निग्ध तथा दिल के लिए लाभकारी, मदगंध से युक्त तथा पेट के कीड़ों, दमा, कोढ़(कुष्ठ), गांठे, घाव, रुधिर विकार, त्रिदोष (वात, पित्त, कप) नाशक, दर्द……………...

छोंकर :(“समी”)

छोंकर को “समी” भी कहते है। इसके पेड़ होते है। इसके पत्तों की आकृति इमली के पत्तों के आकार की होती है। इसका उपयोग हवन के काम में भी किया जाता है। बहुत से स्थानों पर विजयदशमी (दशहरा) के दिन इसका पूजन………….

छुई-मुई :

छुई-मुई शीतल, तीखा, रक्तपित्त, अतिसार(दस्त) तथा योनिरोग नाशक है।………

छुहारा :

छुहारा का लैटिन नाम फीनिक्स डेक्टाइलीफेरा है। यह प्रसिद्ध मेवाओं में से एक है। छुहारे एक बार में चार से अधिक नही खाने चाहिए,वरना इससे गर्मी होती है। दूध में भिगोकर छुहारा खाने से इसके पौष्टिक गुण बढ़ जाते………….

चिचींड़ा (SNAKE GOURD) :

चिचींड़ा शरीर के रूखेपन और कमजोरी को खत्म करता है। यह पाचक है। हल्का होता है। गर्म स्वभाव वालों के लिए यह लाभकारी होता है। यह भूख को बढ़ाता है। इसकी जड़ दस्तावर है। यह गर्मी और सुर्ख मादा के लिए………………

चीड़ :

चीड़ गर्म, तीखी और खांसी को ठीक करने वाली होती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करती है। इसके ज्वादा सेवन करने से पित्त और श्रम दूर होता है।…………….

चिकनी सुपारी :

चिकनी सुपारी काबिज होती है। यह दस्तों को बंद करती है तथा दिल और आमाशय को बलवान बनाती है।………………

चीकू :

चीकू का पेड़ मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका के उष्ण कटिबंध का वेस्टंइडीज द्वीप समूह का है। वहां यह’चीकोज पेटी’ के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु चीकू वर्तमान समय में सभी…………….

चिलगोजा :

चिलगोजा धातुवर्द्बक होता है। यह भूख को बढ़ाता है। यह गुर्दे मसाने और लिंगेद्री को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। चिलगोजे अत्यधिक मर्दाना शक्तिवर्द्धक होते है। इसलिए 15 चिलगोजे रोजाना खाएं।………………

चीनी और शक्कर :

चीनी और गुड़ का छोटी आंत में पाचन होने के बाद खून में शोषण होता है। खून में घुल जाने के बाद चीनी का ग्लाइकोजन में रूपान्तर होकर भविष्य के उपयोग के लिए यकृत (जिगर) में संग्रह होता है। इस अभिशोषण की………………

चिरौजी :

चिरौंजी मलस्तम्भक, स्निगध, धातुवर्द्धक कफकारक बलवर्द्धक और वात विनाशकारी होता है। यह शरीर को मोटा और शक्तिशाली बनाता है। चिरौंजी कफ को दस्तों के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देती है। यह चेहरे के रंग को…………….

चिरायता :

चिरायता आमतौर पर आसाने से उपलब्ध होने वाला पौधा नही है। चिरायता का मूल उत्पादक देश होने के कारण नेपाल में यह अधिक माता में पाया जाता है। भारत में यह हिमाचल प्रदेश में कश्मीर से लेकर अरूणाचल तक………………

चिरचिटा :

गुर्दे के रोग- 5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ का काढ़ा 1 से 50 ग्राम बह शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है। इसकी क्षार अगर भेड़ के पेशाब के साथ खाये तो गुर्दे की पथरी में ज्यादा लाभ होता है।…………….

चोबचीनी :

चोबचीनी ताकत को बढ़ाती है। खून को साफ करती है। यह शरीर की गर्मी को स्थाई बनाती है। यह फालिज लकवा और दिमागी बीमारी के लिए बहुत हानिकारक होता है। यह गर्भाशय और गुदा बीमारियों में लाभदायक………..

चोब हयात :

चोब हयात सूजन को पचाता है। यह दर्द को रोकता है। जहर को पचाता है। यह काबिज है। यह हैजा दस्तों और जी मिचलाने को रोकती है, इसका मरहम घाव को भर…………….

छोंगर :

छोंगर फोड़ो को पकाकर फोड़्ती है। इसका फल कर्ण मूल और भगंदर को दूर करता है।………..

चोक :

चोक रेचक, दस्तावर, कड़वी, भेदक, ग्लानिकारक, पेट के कीड़े, खुजली, जहर, अफारा(गैस), बलगम, पित्त, रूधिर, कोढ़ को नष्ट करती है। इसके प्रयोग से बांझ स्त्रियों को…………….

चुकन्दर के बीज :

चुकन्दर के बीजों के प्रयोग से पेशाब और मासिक धर्म खुलकर आता है तथा यह कफ को छांटता है।………..

चुकन्दर :

चुकन्दर एक कन्दमूल है। चुकन्दर में ‘प्रोटीन’ भी मिलती है। यह जठर और आंतो को साफ रखने में उपयोगी है। चुकन्दर अतिशय गुणकारी और निर्दोष है। यह रक्तवर्द्धक(खून को साफ करने वाला), शक्तिदायक( शरीर में ताकत…………….

चूहाकानी :
चूहाकनी के उपयोग से पेशाब खुलकर आता है। यह सूजनों को खत्म करती है। यह लकवा, फालिज और मिर्गी के लिए लाभदायक होती है।……………..

चोपचीनी गुग्गुल :

द्वीपान्तर वचा(मघुस्नुही, चोपचीनी) की जड़ तथा गुग्गुल एक भाग लें। गुग्गुल को अच्छी प्रकार घोटकर इसमें द्वीपान्तर वचा का चूर्ण मिलाते है। मिश्रण को अच्छी प्रकार मर्दन करें तथा 0.5 से 1.0 ग्राम की वटी बना लेते…………….

छोटी इलायची :

छोटी इलायची तीखा, शीतल, हल्की, वात, बलगम, दमा, खांसी, बवासीर, मूत्रकृच्छ(पेशाब में जलन) को नष्ट करती है।…………….

चुम्बक :
चुम्बक गर्भाशय के दर्द को दूर करता है। और बच्चा होने में आसानी करता है। इसकी पिसी हुई चुटकी घाव पर छिड़कने से घाव का बहता हुआ खून बंद हो जाता है और…………….

चूना :

लगभग 50 ग्राम चूने की डली को 500 ग्राम पानी में रात को भिगोकर रख दें। सुबह इस पानी को कपड़े से छान लेते है। बच्चे की उम्र के अनुसार 1 चम्मच या आधी चम्मच कप में इस पानी को 4 गुना ताजा पानी मिलाकर पीने से उल्टी, दस्त खट्टी डकारे, दूध उलटना, उबकाई आदि ठीक हो जाती है।…………….

कॉफी :
कॉफी, चाय जैसा ही दूसरा पेय है। परन्तु कॉफी में गुण की अपेक्षा अवगुण अधिक होते है। कुछ लोग तो कॉफी को जहर के समान मानते है। दिमाग की थकान मिटाने हेतु कॉफी का सेवन किया जाता है। कॉफी मूत्रवर्द्धक…………….

आयुर्वेदिक औषधियां

आयुर्वेदिक औषधियां

बाजरा :

बाजरा भारत में सभी जगह पायी जाती है। यह मेहनती लोगों का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कुछ लोगों का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल………………

बारतग :

बारतग एक प्रकार की लता होती है, जिसके पत्ते दिखने में बकरे के जीभ के समान लगता है। यह बूंटी बागों मे………………

बबूल :

वास्तव में बबूल रेगिस्तानी प्रदेशो का पेड़ है। बबूल के पेड़ की छाल एवं गोंद प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती है। यह कांटेदार पेड़ होते हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में बबूल के लगाये हुए तथा जंगली पेड़………………

बबूल का गोंद :

बबूल की गोंद का प्रयोग करने से छाती मुलायम होती है। यह मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है। यह आंतों को भी मजबूत बनाता है। यह सीने के दर्द को समाप्त करता है तथा गले की आवाज को साफ करता है। इसका………………

बबूना देशी या मारहट्ठी :

बाबूना देशी(मारहट्ठी) पेट के अन्दर की गांठों को खत्म करता है। इसके सेवन करने से कफ और वात को दस्त के रुप में बाहर निकालता है।………………

बच :

बच शरीर के खून को साफ करती है। इससे धातु की पुष्टि होती है। बच कफ(बलगम) को हटाती है और गैस को समाप्त करती है। दिल और दिमा को कफ के रोगों से दूर करती है। फलिज और लकवा से पीड़ित रोगियों के लिए………………

वेदमुश्क :

वेदमुश्क गांठों को तोड़ता है, दिमागी और गर्मी के दर्द को राहत देता है, दिल और पेट के कल पुरजों का बल बढ़ाता है। वेदमुश्क का रस काफी अच्छा होता है तथा यह मन………………

बादाम :

बादाम के पेड़ पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके तने मोटे होते हैं। इसके पत्ते लम्बे, चौड़े और मुलायम होते हैं। इसके फल के अन्दर की मिंगी को बादाम कहते हैं। बादाम के पेड़ एशिया में ईरान, ईराक………………

बड़हर :

आयुर्वेद के अनुसार कच्चा बड़हर शरीर के लिए गर्म होता है। यह शरीर में देर से पचाता है। यह शरीर के वात, कफ और पित्त के विकारों को दूर करता है। यह खून में उत्पन्न विकारों (खून की खराबी) को दूर करता है। बड़हर………………

बड़ी इलायची :

इलायची अत्यंत सुगन्धित होने के कारण मुंह की बदबू को दूर करने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसको पान में रखकर भी खाते हैं। सुग्न्ध के लिए इसे शर्बत और मिठाइयों में मिलाते हैं। मासालों तथा औषधियों में भी……………...

बहेड़ (Beleric Myrobolam) (Terminalia Belerica) :

बहेड़ा के पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लम्बे होते हैं। इसके पेड़ 60 से 100 फूट तक ऊंचे होते हैं और इसके छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। बहेड़ा के पेड़ पहाड़ों और ऊंचे भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ के लिए लाभदायक होता है। इसके………………

बहमन लाल :

इन्द्र जव और मछली से बहमन लाल की तुलना की जा सकती है। यह धातु को पुष्ट करता है तथा शरीर को मोटा ताजा और बलवान बनाता है। यह खून को साफ करता है और उसकी बीमारी को दूर करता है। यह मानसिक………………

बहमन सफेद :

बहमन सफेद धातु को पुष्ट करता है। यह शरीर को मोटा, ताजा और बलवान बनाता है। यह गर्मी अधिक पैदा करता है और दिल-दिमाग(मन और मस्तिष्क) को बलवान बनाता है। यह गैस को दूर करता है तथा कफ………………

वज्रदन्ती :

वज्रदन्ती के प्रयोग से दांत के रोग ठीक हो जाते हैं। इसके पत्तों और पानी को कत्था डालकर उबालने पर गुनगुने पानी से कुल्ली करने से दांतों से खून का गिरना………………

बकाइन/ बकायन का फल :

बकायन का पेड़ बहुत बड़ा होता है। नीम की तरह बकायन के पत्ते भी गांवों में पाये जाते हैं। इसके पत्ते कड़वे नीम के समान तथा आकार में कुछ बड़े होते हैं। बकायन की लकड़ी का प्रयोग इमारती कामों के लिए………………

बकरी का दूध :

बकरी का दूध मन को प्रसन्न रखता है। मुँह में खांसी के साथ आने वाले खून के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। बकरी का दूध फेफड़ों के घाव और गले की पीड़ा को दूर करता है। यह पेट को शीतलता प्रदान करता है। बकरी………………

बकुची(बावची) (Esculeut Fiacourtia) (Fabaceae)(Psoralia Corylifolia) :

बकुची के पौधे पूरे भारत में कंकरीली भूमि और झाड़ियों के आसपास उग आते हैं। कहीं-कहीं पर इसकी खेती भी की जाती है। औषधि के रुप में इसके बीज और बीजों से प्राप्त तेल का व्यवहार किया जाता है। बकुची पर शीतकाल………………

बाल :

आग से जले हुए घाव पर बाल लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। बालों को पीसकर सिरका में मिलाकर फोड़े-फुंसियों में लगाने से आराम मिलता है। यह बरबट की सूजन को मिटाता है। इसकी बारीक पिसी हुई चुटकी………………

बालछड़ :

यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। बालछड़ के सेवन से आमाशय पुष्ट होता है और पथरी को गलाता है। यह मुँह की दुर्गन्ध को दूर करता है। इसका सुरमा बनकर लगाने से आँखों की देखने की………………

बालगों :

यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह पागलपन और दिल की घबराहट को दूर करता है। यह दस्त के लिए गुलाब के रस के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए। यह पेचिश और पेट के मरोड़ को खत्म………………

बालू :

बालू ठंडा होता है। यह गर्मी को समाप्त करता है तथा फोड़ों को ठीक करता है। यह घावों मुख्य रुप से सीने के घावों को भरता है। इससे सिकाई करने से वात रोग समाप्त हो जाता है। आमवात(गठीया) और जलोदर(पेट में………………

बालूत :

बालूत से कब्ज पैदा होती है तथ यह दस्तों को रोकता है। यह शरीर के किसी भी भाग से खून का निकलना बन्द करता है और यह मुख्यतः मुँह से निकलने वाले खून को बन्द करता है। यह आंतों के घावों और उससे पैदा हुए………………

बन चटकी :

बन चटकी के फूल और पत्तों को पीसकर किसी भी प्रकार के सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है। इससे पेशाब खुलकर आता है। प्रसव के दौरान गर्भवती महिला को इसे………………

बनकेला :

बनकेला के विभिन्न गुण होते हैं। यह ठंडक प्रदान करती है। बनकेला खाने में मीठा और स्वादिष्ट होता है तथा इसके फल रस से भरा होता है। यह शरीर को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह मनुष्य की धातु शक्ति को………………

बांदा :

बांदा, बलगम, वात, खूनी विकार फोड़े और जहर के दोषों को समाप्त करता है। बांदा भूत से संबंधित परेशानियों को दूर करता है। वंशीकरण आदि कार्यो में इसका प्रयोग किया जाता है। यह वीर्य को मजबूत करता है और बढ़ाता………………

बंडा आलू :

बंडा आलू स्त्री प्रसंग की इच्छा को बढ़ाता है। यह नपुंसकता को दूर करता है। बंडा आलू खून की बीमारी यानी खून के फसाद को मिटाता है तथा यह पेशाब का रुक-रुक कर आनी (मूत्रकृछ)की बीमारी को खत्म करता………………

बन्दाल Bristilufiya, Lyufayekineta :

बन्दाल कड़वी, वमनकारक, बलगम, बवासीर, टी.बी. हिचकी, पेट के कीड़ों तथा बुखार को समाप्त करता है। इसका फल गुल्म, दर्द तथा बवासीर को दूर करता है।………………

बंगलौरी बैंगन :

बंगलौरी बैंगन का कर्नाटक में दाल, चटनी व सब्जियों को बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसमें पानी का तत्व लगभग 93 प्रतिशत होता है और इसमें कैल्शियम भी पाये जाते हैं। कम कैलोरी वाली सब्जी होने के कारण यह………………

बनियाला :

यह पित्त को नष्ट करता है। यह पित्त से पीड़ित रोगियों के लिए यह बहुत ही लाभकारी होता है।………………

बांझ खखसा :

बांझ खखसा बलगम और स्थावर विषों (जहरों) को समाप्त करती है। पारे को बांधता, घावों को शुद्ध(साफ) करत है, सांप के जहर पर इसको लगाने से जहर का असर उतर जाता है। यह आँखों की बीमारी, सिर के रोग, कोढ़, खून………………

बनककड़ी :

यह गर्म तथा कड़वी होती है। यह भेदक, बलगम को खत्म करने वाले, पेट के कीड़े और खुजली को दूर करता है तथा बुखार को खत्म करता है।………………

बनपोस्ता :

बनपोस्ता आँखों के घावों को ठीक करता है और मुँह में लार की मात्रा को बढ़ाता है। बनपोस्ता एक प्रकार की घास होती है, जो बिल्कुल पोस्तादाना के समान होती है।………………

बांस (Bambu), (Bambu savlgerees) :

बांस का पेड़ भारत में सभी जगहों पर पाया जाता है। यह कोंकण(महाराष्ट्र) में अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह 25-30 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते लम्बे होते हैं। बांस का पेड़ बहुत मजबूत होता है। इसका अन्दाज इस………………

बंशलोचन :

बंशलोचन शरीर की धातुओं को बढ़ाता है। यह वीर्य की मात्रा में वृद्धि करता है और धातु को पुष्ट करता है। बंशलोचन स्वादिष्ट और ठंडा होता है तथा प्यास को रोकती है। बंशलोचन खाँसी, बलगम, बुखार, पित्त खून की………………

बरक :

बरक प्यास को बढ़ाता है। दाँतों के दर्द को रोकता है, हाजमा ठीक करता है, मेदा(आमाशय) को बलवान बनाता है। गर्मी के बुखार और सूखी तथा गीली खांसी में यह फायदा करती है। अगर गले में जोक फस जायें तो यह………………

बर्फ :

प्रसव के समय शिशु का सांस न लेना बच्चे के जन्म के बाद बच्चा न रोता हो और सांस भी न ले रहा हो और वह जिंदा हो तो, उसके गुदा द्वार पर बर्फ का टुकड़ा रख दें। इससे बच्चे की सांस चलने लगेगी और रोने लगेगा।………………

बायबिडंग (गैया, बेवरंग) (EMBELIA ROBUSTA) :

बायबिडंग (गैया, बेवरंग), वातानुमोलक, कोष्ठवात, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, बवासीर तथा सूजन में विशेष रुप से……. ….

बैद लैला (Salix Tetrasperma) :

बेद लैला के लगभग सभी गुण बेद-मुश्क के जैसे ही होते है। बेद लैला छाल का काढ़ा कड़वा तथा बुखारनाशक होता है। इसके फूलों का रस बेद-मुश्क के रस के समान ही जलननाशक……. ….

बेद-मुश्क (Salix Caprea) :

बेदमुश्क चिकना, कड़वा, तीखा, ठंडा, वीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, पाचन शक्ति बढ़ाने वाला, जलन को समाप्त करने वाला, लीवर को बढ़ाने वाला, खून को जमाने वाला, मूत्रवर्द्धक, कामवासना को……. ….

बेद-सादा (SALIX ALBA) :

बेद सादा ठंडा, रुखा, कड़वा, तीखा, सुगंधित, जलन को शांत करने वाला, दिल और दिमाग के लिए ताकत, सौमनस्यजनक, मूत्रवर्द्धक, दर्द को दूर करने वाला और पैत्तिक बुखार……. ….

बेकल (विंककत) (GYMNNOSPORIA MONTANA) :

बेकल के पत्तों में भी कई गुण मौजुद होते है। खून की खराबी, बवासीर, पेचिश, पीलिया, सूजन और पित्तविकार पर इसके पत्तों के काढ़े में शक्कर मिलाकर पिलाते है। इससे पाचन शक्ति……. ….

बेलन्तर (DICHROSTACGYS CINEREA) :

बेलन्तर का फल तीखा, गर्म, खाने में कड़वा, भोजन की पाचन शक्तिवर्द्धक, मलरोधक है। स्त्रियों के योनिरोग, वातविकार, जोड़ो का दर्द और पेशाब के रोगों में भी……. ….

भगलिंगी (BHANGLINGES) :

भगलिंगी उपलेपक, सूजन को दूर करने वाला और चिरगुणकारी पौष्टिक है। भूख ना लगना और भोजन करने का मन ना करना के रोग में भगलिंगी की जड़ को काली मिर्च……. ….



भटवांस भारी, रुखा, मीठा, तीखा, चरपरा, उष्णवीर्य, कड़वा, खाने में खट्टा, दस्त लाने वाला, स्तनों में दूध की वृद्धि, पित्त और खून बढ़ाने वाला, टट्टी-पेशाब को रोकने वाला, कफ विकार, सूजन, जहर को……. ….



भूतकेशी की जड़ पौष्टिक, मूत्रवर्द्धक, धातु परिवर्तक और बुखार को दूर करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसे उपदंश की विकृति, कंठमाला और चर्म रोगों को समाप्त करने के लिए……. ….



भोरंग इलायची के बीज संकोचक और बलकारक होते है। इसके चूर्ण का मंजन करने से दांत दृढ़ और चमकीले रहते है। इसके रासायनिक तत्त्व बड़ी इलायची के रासायनिक तत्त्वों से मिलते हुए होते हैं। चीनी नागरिक इसके बीजों का……. ….



भुंई आंवला का रस मीठा, अनुरस, कड़वा, रुचिकर, छोटा, शीतवीर्य, पित्त-कफनाशक, रक्तसंचार और जलन को नष्ट करता है। यह आंखों के रोग, घाव, दर्द, प्रमेह, मूत्ररोग, प्यास, खांसी तथा विष……. ….



भुंई कंद (पहाड़ी कंद) में प्रायः सभी प्रकार के वे तत्व उपस्थित होते हैं जो केली कंद के अन्दर पाये जाते हैं। अंतर केवल इतना होता है कि केलीकंद के ऊपर झिल्ली रहती है और भूमि कंद में……. ….



भुंई आंवला बड़ा का पंचांग जीरा और मिश्री तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते है। इसे एक चाय के चम्मच के बराबर मात्रा में पीने से सूजाक रोग……. ….



बिधारा (समुद्रशोष) की जड़ और लकड़ी स्निग्ध, कडुवा, तीखा, कषैला, मधुर, उष्णवीर्य, कफ-नाशक, उत्तेजक, पाचन शक्तिवर्द्धक, अनुलोमक, दस्तावर, मेध्य, नाड़ी-बल्य, धातुवर्द्धक, गर्भाशय की सूजन तथा……. ….



आयुर्वेदिक मतानुसार यह वनस्पति सूजन को नष्ट करने वाली और घाव को भरने वाली होती है। इसके फल की पुल्टिस बनाकर फोड़ों पर रखने से फोड़ें फूट जाते है। इसके एक पूरे पौधे को पीसकर……. ….

बिच्छू बूटी (GIRARDIUIA HETEROPHYLLA) :

बिच्छू बूटी उष्ण वीर्य, वातकफनाशक और पित्त को बढ़ाने वाला होता है। इसके सूखे पत्तों की चाय पीने से कफजन्य बुखार दूर हो जाता है। वातरोग, श्वांस रोग तथा खांसी में……. ….

बिदारीकंद (भुई कुम्हड़ा) (IPOMOEA PANICULATA) :

बिदारीकंद स्वाद में कडुवा और तीखा होता है तथा यह कषैला, मधुर, शीतवीर्य, स्निग्ध, अनुकुल, पित्तशारक (पित्त से उत्पन्न कब्ज को नष्ट करने वाला), वीर्यवर्द्धक, कामोत्तेजक, रसायन (वृद्धावस्था नाशक औषधि), बलवर्द्धक, मूत्रवर्द्धक……. ….

बिही (cydionia vulgaris) :

बिही अग्निमांद्य, अरुचि, उल्टी, प्यास, पेट दर्द, मस्तिष्क विकार, बेहोशी, सिरदर्द, हृदय दुर्बलता, रक्तविकार, यकृतविकार, खून की कमी, रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ, पैत्तिक विकार, सामान्य दुर्बलता……. ….

बिखमा (ACONITUM PALMATUM) :

बिखमा तीखा, कटु विपाक, उष्णवीर्य, कफवातहर, पाचन, संकोचक, कटु, पौष्टिक, दर्दनाशक, पेट के कीड़े, बुखार, अग्निमांद्य, अजीर्ण, अफारा, अतिसार (दस्त) ग्रहणी, उल्टी, हैजा, आमाशय तथा आंतों से……. ….

बिल्ली लोटन (CYDONIA VULGARIS) :

बिल्ली लोटन प्रकृति में गर्म, रुखा, उत्तेजक, हृदय के लिये लाभकारी, रक्तशोधक, मुंह की दुर्गन्ध को दूर करने वाला, श्वांसरोग नाशक, स्मरणशक्तिवर्द्धक, आमाशय और कामशक्ति को……. ….

बिना (AVICENNIA OFFICINALIS) :

चेचक से पीड़ित रोगी को इसकी छाल का सेवन करने से लाभ मिलता है। शरीर के घावों और फोड़ों को पकाने के लिए “बिना” के कच्चे फलों या बीज को पीसकर……. ….

बिरंजासिफ (पहला घास) (ACHILLEA MILLEFOLIUM) :

बिरंजासिफ के फूल गर्म प्रकृति के रुखे और स्वाद में कड़वे होते है। यह पेट को साफ करता है तथा मासिक धर्म की अनयिमितता, मासिक स्राव के समय होने वाला दर्द, घाव को भरना, मूत्र लाना, उत्तेजक, पेट के कीड़ों को……. ….

बिषफेज (POLYPODIUM) :

बिषफेज प्रकृति में गर्म, रुखा, स्वाद में तीखा, हल्का कषैला होता है। यह गले में जमे हुए कफ गलाकर बाहर निकाल देता है। यह दर्द को दूर करने, वायुरोग को नष्ट करने, सूजन को दूर……. ….

ब्रह्मदंडी (TRICHOLEPSIS GLABERRIMA) :

ब्रह्मदंडी तीखा, उष्णवीर्य, कामवासना को बढ़ाने वाला, याददाश्त का बढ़ाने वाला, शरीर को मज्जातंतुओं को मजबूत बनाने वाला, रक्त को शुद्धि करने वाला, घावों को भरने वाला, कफ, वात, सूजन……. ….

ब्रह्मकमल (SAUSSUREA OBVALLATA) :

ब्रह्मकमल के फूलों के तेल से सिर की मालिश करने से मिर्गी के दौरे तथा मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। ब्रह्मकमल के फूलों की राख को लीवर की वृद्धि में शहद के साथ……. ….

बुई (OTOSTEGIA LIMBATA “BENTH) :

यह जड़ी बूटी हृदय के लिए बहुत ही लाभकारी होती है। यदि किसी रोगी का हृदय अधिक दुर्बल और अव्यवस्थित हो तथा बुखार भी आता हो तो उसके लिए इसका……. ….



भारत में बरगद के पेड़ को पवित्र माना गया है, इसे पर्व व त्यौहारों पर पूजा जाता है। इसके पेड़ बहुत ही बड़ा व विशाल होता है। बरगद की शाखाओं से जटाएं लेटकर जमीन तक पहुँचती है और तने का रुप ले लेती………………



ब्रह्मदण्डी खून को साफ करता है, घावों को भरता है, वीर्य की कमजोरी को दूर करता है। यह दिमाग और याददाश्त की शक्ति को बढ़ाता है। त्वचा के सफेद दाग और बीमारियों को दूर करता है। यह गले और चेहरे को साफ………………



बरही को खाने से दिल खुश होता है। यह मेदा(आमाशय) और जिगर को ताकत देता है। इससे शरीर के मुख्य स्थान को बल प्रदान करता है, गले की आवाज को साफ करता है, खाँसी, दमा और कफ (बलगम) को दूर करत………………

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खिरैटीपानी बरियारी स्निग्ध है। यह रुची को बढ़ाती है और शरीर को मजबूत बनाती है। यह वीर्य को बनाती है। यह ग्राही, वात, पित्त् को खत्म करता है और पित्तासार को खत्म करता है। यह कफ(बलगम) को दूर करत………………



मीठा नीम सन्ताप, कोढ़(कुष्ठ) और रक्तविकार(खून के रोग) को खत्म करता है। यह पेट के कीड़े, भूत बाधा और कीड़ो के काटने से उत्पन्न जहर को खत्म करता………………



बथुआ दो प्रकार का होता है जिसके पत्ते बड़े व लाल रंग के होते हैं। उसे गोड वास्तुक और जो बथुआ जौ के खेत में पैदा होता है। उसे शाक कहते हैं। इस प्रकार बथुआ छोटा, बड़ा, लाल व हरे होने के भेद से दो प्रकार के होते………………



बथुए के बीज गांठों को दूर करता है। यह दस्तों को लाने वाला, जलोदर और कांबर के लिए बहिता ही लाभकारी होता है। यह पेशाब करने में परेशानी को दूर करता है। बथुआ का बीज गुर्दे और आंतों की कमजोरी को दूर………………



यह चरपरी, गर्म, कड़वी होती है और भूख को बढ़ाती है। बवई दिल के लिए फायदेमंद है। यह जलन पैदा करती है, खूजली, वमन(उल्टी) और विष को दूर करती है। यह………………



दस्तावर(पेट को साफ करने वाला) और दिल के लिए अच्छा होता है, सूखे, कफ(बलगम), रक्तपित(खून पित्त), साँस(दमा), कुष्ठ(कोढ़), प्रमेह(वीर्य विकार), ज्वर(बुखार)………………

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भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में बायबिडंग की मोटी वा बड़ी-बड़ी लतायें, अपने आप उगकर पास के पेड़ के सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाती है। इसकी शाखाएं खुरदरी, गठों वाली, बेलनाकार, लचीली और पतली होती है। इसके पत्ते 2 से………………



यह वीर्य को बढ़ाता है। इससे वीर्य खूब पैदा होता है और गाढ़ा होता भै। यह पीठ की हड्डियों और कमर को बलवान बनाता है………………



बेल का पेड़ बहुत प्राचीन काल से है। इस पेड़ में लगे हुए पुराने पीले फल दुबारा हरे हो जाते हैं तथा इसको तोड़कर सुरक्षित रखे हुए पत्ते 6 महीने तक ज्यों का त्यों बने रहते हैं और यह गुणहीन नहीं होता है। इस पेड़ की……………...



वेलिय पीपल हल्का, स्वादिष्ट कड़वा और गर्म होता है। यह मल को रोकता है। वेलिया पित्त जहर और खून की खराबी से होने वाले रोगों को दूर करता है………………

बैंगन Eggplant :

बैंगन का लैटिन नाम- सोलेनम मेलोजिना है और अग्रेजी भाषा में इगपलेंट नाम से जाना जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही बैंगन सर्वत्र होते हैं। बैंगान की लोकप्रियता स्वाद और गुण के नजर से ठंडी के मौसम………………

बेंत :

दोनों तरह के बेंत शीतल, कड़वे, चरपरे, कफ(बलगम), वात, पित्त, जलन, सूजन, बवासीर, पथरी, पेशाब करने में परेशानी, दस्त, रक्त विकार, योनि रोग, कोढ़ और जहर………………

बेर :

बेर का पेड़ हर जगह आसानी से पाया जाता है। बेर के पेड़ में काँटे होते हैं। बेर का आकार सुपारी के बराबर होता है। इसके अनेक जातियां है। जैसे- जंगली बेर, झरबेरी, पेवंदी, बेर आदि। इसके पेड़ पर बहुत अच्छी………………

बैरोजा :

बैरोजा मधुर, कड़वा, स्निग्ध, दस्तावर, गर्म, कषैला, पित्त और वातकारक, सिर रोग, आँखों का रोग, गले की आवाज, कफ(बलगम), जू(लीख) खुजली और घाव को दूर………………

बर बेल :

यह भूख को बढ़ाता है। बरबेल का रस पीने और खाने में कड़वा होता है। यह मल को रोकता है। वात से होने वाले रोगों को रोकता है। मूत्राशय, पथरी और पेशाब के रोगों………………

भांरगी Turk  turban moon, clerodenrum serratu moon :

भांरगी रुचिकारी. अग्निदीपक(भूख को बढ़ाने वाली), गुल्म(न पकने वाला फोड़ा), खून की बीमारी, श्वास(दमा), खाँसी, कफ, पीनस(जुकाम), ज्वर,कृमि, व्रण(जख्म), दाह………………

भद्रदन्ती :

भद्रदन्ती चरपरी, गर्म, दस्तावर, कीड़ों को मारने वाले, दर्द को दूर करने वाला, कोढ़, आमावात(गठिया) और उदर रोग(पेट के रोग) दूर करने वाल होता………………

भद्रमोथा :

भद्रमोथा चरपरा, दीपन, पाचक, कषैला, रक्तपित्त, प्यास, बुखार, आरुचि(भोजन करने का मन न करना) और कीड़ों को दूर करता………………

भाही जोहरा :

भाही जोहरा सभी प्रकार के कफ और गाढ़े खून को दस्त के रास्तें बाहर निकालता है। यह गैस को मिटाता है और गठिया और कमर दर्द को दूर करता है।………………

भांग Indian hemp, knavish indika :

भांग के स्वयंजात पौधे भारत में सभी जगह पाये जाते हैं। विशेषकर भांग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं बिहार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। भांग के नर पैधे के पत्तों को सुखाकर भांग तथा मादा पौधे की रालीय पुष्प………………

भांग के बीज :

भांग के बीजों का अधिक मात्रा में उपयोग करने से पेशाब अधिक मात्रा में आता है। यह स्त्री प्रसंग में वीर्य को निकलने नहीं देता है। यह वीर्य को सूखा देता है और धातुओं को फाड़ता है। यह आँखों की रोशनी को कम………………

भांगरा Treling eklipta, Eklipta postrata :

घने मुलायम काले कुन्तल केशों के लिए प्रसिद्ध भांगरा के स्वयंजात क्षुप 6,000 फुट की ऊंचाई तक आद्रभूमि में जलाशयों के समीप 12 महीने उगते हैं। इसकी एक और प्रजती पीत भृंगराज पाई जाती है जिसके पौधे बंगाल………………

बाबूना गाव (COTULA ANTHMOIDES) :

बाबूना गाव प्रकृति में गर्म और रुखा होता है। इसके गुण बाबूना के ही समान होते हैं। यह कफ और वात के विकार को मल के साथ………………



श्वांस और खांसी से पीड़ित रोगी को बच सुगंधा के जड़ के टुकड़े को पान के बीड़े के साथ रखकर चबाकर खाने से लाभ होता है। इससे मुंह से सुगंध……. ….



बच्छनाग (श्वेत या दूधिया) के गुण काले बच्छनाग के गुणों के समान परन्तु विशेष होते हैं। इसे थोड़ी सी मात्रा में इसे बार-बार देने से दर्द तथा रक्त के……. ….



काला बच्छनाग लघु, रुखा, गर्म, विपाक, तीखा, कषैला, मादक, होता है। यह अपने रुक्ष गुण से वात को, उष्ण गुण से पित्त तथा रक्त को कुपित करता है। तीक्ष्ण गुण से यह बुद्धि को……. ….



बथुआ, लघु, स्निग्ध, मधुर, कटु, विपाक, शीतवीर्य, वात-पित्त-कफ नाशक, पेट को साफ करने वाला, दीपन, पाचक, अनुलोमक, यकृत उत्तेजक, पित्त सारक, मल-मूत्र को शुद्धि करने वाला, आंखों के लिए लाभकारी……. ….

बलसां (BALSEMODENDRON OPOBALSAMUM) :

बलसा का तेल, गर्म, स्निग्ध, कफनिवारक, बाजीकारक, मस्तिष्क बलदायक, सूजाक, सूजन, मिर्गी, तथा घाव आदि के लिए विशेष उपयोगी होता है। यह श्वांस-खांसी, जूकाम, बूढ़ों की……. ….

बादाम देशी (TERMINALIA CATAPPA) :

देशी बादाम की छाल-ग्राही, संकोचक तथा मूत्रवर्द्धक होता है। इसकी छाल का काढ़ा सूजाक और प्रदर में लाभकारी होता है। इसके बने हुए छालों से घावों को धोने से घाव जल्दी भर जाते हैं। काढ़े का कुल्ला करने से……. ….

बन उड़द (JASSIEUA SUFFRUTICOSA) :

बन उड़द लघु, स्निग्ध, तिक्त, मधुर, विपाक, शीतवीर्य, वात-पित्तशामक, कफवर्द्धक, उत्तेजक, स्नेहन, अनुलोमन, ग्राही, रक्तवर्द्धक व शोधक, रक्तपित्त नाशक, सूजन को दूर करने वाला, कामवासना को……. ….

बनफ्शा (VIOLA ODORATA) :

बनफ्सा कफ और शीत रोगों के लिए लाभकारी होता है। यह वातपित्त को नष्ट करने वाला, कफ को दूर करने वाला, पित्तनाशक, अनुलोमन, रेचन, रक्त के विकारनाशक, जलन को……. ….



बंदाल आकार में छोटा, स्वाद में रुखा, तीखा, कडुवा, तीखा, उष्णवीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाल, उल्टी, रक्त को शुद्ध करने वाला, आंतों के कीड़ों को नष्ट करना, सूजन को दूर करना, कफ को गलाकर बाहर निकालना, बंद माहवारी……. ….



बनमेथी के सेवन करने से स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। यह घावों को शीघ्र भरने वाला होता है। इसकी जड़ का उपयोग मेद को नष्ठ करने में किया जाता है तथा यह मूत्रवर्द्धक……. ….



मीठा बादाम भारी, स्निग्ध, मीठा, गर्म, वायु रोगनाशक, कफपित्त वर्द्धक, उत्तेजक, स्नेहन, लेखन, अनुलोमक, मल को आसानी से निकालना, कफ को गला कर बाहर निकालना, मूत्रवर्द्धक, धातुकारक, बलवर्द्धक, बाजीकारक, स्त्रियों के स्तनों में दूध की……. ….



बादावर्द पौष्टिक, पेट को साफ करने वाला, रक्तस्तम्भक, दर्द को नष्ट करने वाला, गर्भधारण में सहायक तथा पुराने से पुराने अतिसार को……. ….

बधारा (ERIOLAENA QUNI) :

बधारा कडुवा, तीखा, सुगंधित, संकोची, पिच्छिल, शांतिवर्द्धक, धातुपरिवर्तक, मूत्रवर्द्धक, कामशक्तिवर्द्धक, कफनाशक, कमर का दर्द, जोड़ों का दर्द, उपदंश, प्रमेह, सूजाक आदि……. ….

बादियान खताई (ILLICIUM VERUM) :

बादियान खताई के फल मीठे, दीपन, पाचक, उत्तेजक, दर्द को दूर करने वाला, उदर-वातहर, कफघ्न, मूत्रवर्द्धक, सारक है। यह अपच, अग्निमांद्य, बुखार, अतिसार (दस्त), प्रवाहिका, आध्यान, जुकाम, खांसी, आदि विकारों में……. ….

बहमन सफेद (CENTAUREA) :
बहमन सफेद लघु, कसैला, मीठा, उष्णवीर्य, मधुऱ विपाक, वात, कफ, पित्तनाशक, दीपन (उत्तेजक), अनुमोलन, रक्तस्तम्भक, वेदना स्थापक, धातुवर्द्धक, बालों की वृद्धि, श्वासनलिका तथा अन्य अंगों की सूजन……. ….

बैबीना (MUSSSAENDRA FRONDOS) :

बैबीना गर्म, कडुवा, कषैला, तीव्र गंध, कफ-वातनाशक, दीपन (उत्तेजक), सफेद दाग, कफ, भूत-प्रेत, ग्रह-पीड़ा निवारक, धातु परिवर्तक, तथा मूत्रवर्द्धक होता है। इसकी जड़……. ….

बाकला (PHASSSEOLUS VOLGARIS) :

बाकला की ताजी फली अकेले या मांस के साथ पकाकर खाने से पुष्टि प्राप्त होती है। सूखे और ताजे बीजों की सब्जी भी बनाते हैं। बाकला के सूखे बीजो के छिलके को निकालकर……. ….

बाकेरी मूल (CAESALPINIA DIGYNA) :

बाकेरीमूल, उष्णवीर्य, सांभक, वातनाशक, शोधक, त्वचा के विकार, कीटाणुनाशक और घाव को भरने वाला होता है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से यह मदकारक (नशीला) प्रभाव डालता है। इसका उपयोग करने से……. ….

बनलौंग (JESSIEUA SUFFRUTICOSA) :

बनलौंग के पंचांग को पीसकर मट्ठे के साथ देने से रक्तातिसार, रक्तामातिसार, कफ के साथ जाना आदि किसी भी अंग से होने वाले रक्तस्राव में लाभ होता है। इसकी जड़ या छाल का काढ़ा……. ….

बनमूंग (PHASEOLLOUS TRILOBUS AIT) :

बनमूंग आकार में छोटा, रुखा, तीखा, मधुर, शीतवीर्य, त्रिदोषनाशक (वात-पित्त-कफ), दीपन (उत्तेजक), अनुलोमन, ग्राही, रक्त के विकार, जलन, जीवनीय, रक्तपित्तनाशक, सूजन……. ….

बराहंता (TRAGIA INVOLUCRATA) :

शरीर की त्वचा पर होने वाली खाज-खुजली, छाजन (त्वचा का रोग) तथा त्वचा के अन्य विकारों को नष्ट करने के लिए इसकी जड़ को तुलसी के रस……. ….

बाराही कन्द (रतालू) (DIOSCOREA BULBIFERA) :

बाराही कंद आकार में छोटा, स्निग्ध, कडुवा, तीखा, मधुर, उष्णवीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, दीपन (उत्तेजक), ग्राही, रक्त संग्राहक, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, तथा……. ….

बराही कन्द (रतालू, भेवर कन्द) (TACCA ASPERA) :

यह कडुवा, तीखा, उष्णवीर्य, पित्तकारक, रसायन (वृद्धावस्थानाशक औषधि), कामोद्दीपक, वीर्य, भूख और चेहरे की चमक बढ़ाने वाला होता है। यह सफेद दाग, प्रमेह, पेट के कीड़े, बवासीर……. ….

बारतंग (PLAANTAGO MAJUR) :

बारतंग शीत, रुखा, संग्राहक तथा दर्दनाशक होता है। गर्मी के कारण उत्पन्न अतिसार (दस्त) या आमातिसार में तो ईसबगोल ही विशेष लाभदायक होता है किन्तु ठंड से उत्पन्न दस्त में……. ….

बरमूला (बरमाला) (CALLICARPA ARBOREA) :

बरमूला की छाल विशेषरुप से सुगंधित, कड़वी, पौष्टिक तथा त्वचा के विकारों को नष्ट करने वाला……. ….

बारतंग (PLAANTAGO LANCEOLATA) :

बारतंग के पत्तों का ताजा रस या सूखे पत्तों का लेप घावों पर करने से घावों की जलन, सूजनयुक्त चट्टे या फोड़ों का दर्द नष्ट होता है। इसके रस घावों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है जिससे घाव……. ….

बसंत (HYPSRICOM PERFORATUM) :

बसंत पौधे के पत्तों का स्वाद तीखा होता है तथा ये पाचनशक्तिवर्द्धक, पेट के कीड़े, बवासीर, कानों का दर्द, अतिसार (दस्त), बच्चों का कांच निकलना, योनि के घाव तथा बिच्छु के विष……. ….

बसट्रा (CALLICARPA LANATA) :

बसट्रा की जड़ तथा छाल का काढ़ा बुखार, पित्त प्रकोप, यकृतावरोध, शीतपित्त और त्वचा के रोगों में दिया जाता है। इसकी जड़ या छाल के चूर्ण के एक भाग मात्रा को लगभग बीस भाग जल में……. ….

बथुवा विदेशी (CHENOPODIUM AMBROSIOIDES) :

बथुवा (विदेशी) क्षारयुक्त, मधुर, बलवर्द्धक तथा त्रिदोष (वातपित्तकफ) नाशक होता है। इसके पत्ते और कोमल डंठलों का साग भी बनाया जाता है। प्राचीनकाल में आदिवासी लोग घरेलू इलाज……. ….

बायविडंग (EMBELIA RIBES) :

बायविडंग आकार में छोटा, रुखा, तीखा, कडुवा, गर्म, कफनाशक, पाचक, दस्तावर, रक्तशोधक, आंतों के कीड़ों को नष्ट करने वाला, मूत्रल (मूत्रवर्द्धक) होता है। इसके अतिरिक्त यह……. ….

भांट (CLERODENDRON INFORTUNATUM) :

बच्चों के लंबे पेट के कीड़ों वाले रोग में भांट के पत्तों के रस को पीसकर मिलाते है। पेट के दर्द और दस्त में भांत की जड़ को तक्र में पीसकर मिलाते है। त्वचा के रोगों में भांट का लेप त्वचा के……. ….

बांझ ककोड़ा(बंध्या कर्कोटकी) :

बांझ ककोड़ा बलगम को दूर करने वाला, जख्मों को साफ करने वाला, सांपों के जहर को समाप्त करने वाला होता है………………

भसींड़ :

भसींड़ कषैला होता है, यह मीठा, भारी तथा मल को रोकने वाला होता है। यह आँखों के लिए लाभकारी, वीर्यवार्द्धक, रक्त पित्त, जलन, प्यास, बलगम और वातपित्त को दूर करती है। यह गुल्म, पित्त, खाँसी, पेट के कीड़े,………………

भटकटैया :

भटकटैया, कटैया, वेगुना भटकटैय के ही नाम है। इसे भी कटेरी(चोक) का ही भेद है। यह जमीन से 2-3 फुट ऊंचा होता है। इसमें छोटे बैंगन जैसा फल लगता है और बैंगन जैसे ही कटीले पत्ते होते हैं। इसमें पीले, चित्तीदार फल………………

भटकटैया बड़ी :

भटकटैया बड़ी के फल, कटु, तिक्त, छोटे, खुजली को नष्ट करने वाले, कोढ़(कुष्ठ), कीड़े, बलगम तथा गैस को खत्म करने वाले होते हैं। इसके बाकी गुण छोटी भटकटैया के,………………

भटकटैया छोटी :

यह मल को रोकती है, दिल के लिये फायदेमंद होती है, पाचक होता है। यह कफ(बलगम) और गैस को खत्म करती है। भटकटैया कड़वी होती है। यह मुँह की नीरसता को दूर करती है, अरुची(भोजन करने का मन न करना)………………

भटकटैया सफेद :

भटकटैया सफेद चरपरी, गर्म,आँखों के लिए फायदेमंद होती है। यह भूख को बढ़ाती है। यह गर्भ को स्थापन करने वाली तथा पारे को बांधने वाली, रुचिकारक, कफ(बलगम) और वात को खत्म करने वाली है। इसके गुण………………

भटवांस :

यह मधुर, रूखा, खाने में खट्टी होती है। यह बादी को दूर करता है और स्तनों में दूध भी बढ़ाती है। यह जलन, कफ(बलगम),सूजन और वीर्य को खत्म करता है। भटवांस खून की खराबी को रोकता है, जहर और आँखों………………

भिंडी :

मधुमेह का रोग भिंडी के डांड काट लें। इन डांडो को छाया में सुखाकर व पीसकर छान लें। इसमें बरबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर आधा-आधा चम्मच सुबह खाली पेट ठंडे पानी से रोजाना फांकी लेने से मधुमेह का रोग मिट जाता है।………………

भ्रमर बल्ली :

भ्रमर बल्ली तीखी, गर्म, कड़वी और रुचि को बढ़ाने वाली होती है। यह अग्नि को शांत करती है और गले के रोग को दूर करती है। यह गले के सभी रोगों को नष्ट करती………………

भुंई खखसा :

भुंई खखसा सफेद दाग को खत्म करता है। यह शरीर के सभी अंगों को शुद्ध करती है। यह जहर, दुर्गन्ध, खांसी, गुल्म और पेट के रोगों को ठीक करता है।………………

भूमि कदम्ब :

भूमि कदम्ब कड़वी, जख्म को सूखा देने वाला, शरीर को ठंडकता प्रदान करने वाला, तीखा तथा वीर्य को बढ़ाने वाला होता है। यह जहर और सूजन को खत्म करती है………………

भूरी छरीला :

भूरी छरीला तीखा, शीतल और सुगन्ध देने वाला होता है। यह हल्का और दिल के लिए हितकारी है। यह रुचि को बढ़ाता है और वात, पित्त, गर्मी, प्यास, उल्टी आदि को दूर करता है। इसका प्रयोग सांस(दमा), घाव, खुजली आदि के………………


भूसी(गेहूँ का चोकर) :

यह सूजन और बलगम को पचाती है और शरीर को शुद्ध और साफ करती है। यह छाती की खर-खराहट और पुरानी खाँसी व धांस को बंद करती है। इसके साथ काला नमक मिलाकर पोटली बनाकर सेंकने से रोंवों के मुँह………………

भूत्रण :

भूत्रण तीखा, कड़वा, गर्म, दस्त को लाने वाला और गर्मी उप्तन्न करने वाला है। यह अग्नि को प्रदीप्त करता है। यह रूखा, मुखशोधक और अवृष्य है। यह मल को बढ़ाता है और रक्त पित्त को दूषित करता है। यह गैस के रोगों को………………

बिछुआ घास :


बिछुआ घास पिच्छिल खट्टी, अन्त्रवृद्धि रोग को नष्ट करने वाली, शरीर को शक्तिशाली बनाले वाली, बिविन्ध को नष्ट करने वाली, दिल के लिए लाभकारी तथा वस्तिशोधक है। यह पित्त को ठीक रखता है तथा दिल को प्रसन्न रखता ………………

बिहारी नींबू :

बिहारी नींबू गैस, पित्त और बलगम तीनों ही रोगों को नष्ट करता है। इसका सेवन क्षय(टी.बी) और हैजा से पीड़ित रोगी ले लिए बहुत ही लाभकारी होता है। विष से पीड़ीत तथा मन्दाग्नि(भूख कम लगना) से ग्रसित रोगियों को………………

बिहीदाना :

इसका लुबाव गले की खरखराहट और गर्मी से होने वाली खाँसी के लिए अत्यंत ही लाभकारी होता है। यह आमाशय में गर्मी उत्पन्न नहीं होने देता है। यह ठंड लगकर बुखार आने, जलन, मुँह का सूखना और प्यास को रोकता………………

बिजौर मरियम :

बिहौर मरियम गांठों को गलाती है। गैस के रोगों को नष्ट करता है। यह पसीना अधिक लाता है। दूध बढ़ाता है। बिजौर मरियम कांवर के लिए लाभदायक होता है। इसकी घुट्टी पिलाने से बच्चों के दाँत आसानी से व शीघ्र ही………………

बिजौरे का छिलका :

यह दिल को प्रसन्न रखता है। कब्ज उत्पन्न करता है। खून को पित्त से साफ करता है। गर्मी से होने वाली वमन(उल्टी) को बंद करता है। यह दिल और आमाशय को शक्तिशाली बनाता है। आंतों की गर्मी को शान्त करता ………………


बिलाई लोटन :

बिलाई लोटन दिल और दिमाग को स्वस्थ्य व शक्तिशाली बनाता है। यह आमाशय को मजबूत करता है और याददाश्त और बुद्धि में वृद्धि करती है। बिलाई लोटन मन को प्रसन्न रखती है। यह कफ के सभी रोगों को नष्ट………………

बिल्लौर :

बिल्लौर सुरमा आँखों के अनेक रोगों को दूर करता है। बिल्लौर गले में लटकाने से छोटे बच्चों के रोग, आँखें निकल आना, शरीर में ऐंठन होना तथा सोते समय………………

बिनौला :

बिनौला धातु को पुष्ट करता है और संभोग में होने वाली सभी परेशानियों को दूर करता है। यह पेट और छाती को नरम रखता है। गर्मी की खाँसी को दूर करता है और स्त्रियों की बेहोशी के लिए यह बहुत ही लाभदायक है। यह ………………

बीरण गांडर :

बीरण गांडर ठंडी होती है तथा ठंडे बुखार को दूर करती है। इसकी गुण भी खश के गुणों के समान होते हैं।………………

वृत्तगंड :

वृत्तगंड मीठा और शीतल होता है। यह बलगम, पित्त और दस्तों को खत्म करता है। यह खून को साफ करता है। यह खून सम्बन्धी समस्त बीमारियों के लिए लाभदायक होता है। वृत्तगंड दो प्राकार का होता है, इन दोनों में………………

बोल :

बोल गैस से होने वाले रोगों को खत्म करता है। यह सर्दी से होने वाली सूजन को भी समाप्त करता है और दिमाग को स्वस्थ करता है। बोल का नशा करने से पेशाब और दस्त आता है। यह आंतों के दर्द और कीड़ों को नष्ट करता………………

बूट :

बूट का उपयोग करने से शरीर में खून, बलगम और पित्त की मात्रा बढ़ती है। यह शरीर को शक्तिशाली बनाता है। यह धातु को पुष्ट करता है और स्तम्भन शक्ति को बढ़ाता है। यह मुँह से निकलने वाली बदबू को खत्म करता………………

ब्रह्मी :

ब्राह्मी का पैधा हिमालय की तराई में हरिद्वार से लेकर बद्रीबारायन के मार्ग में अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो बहुत उत्तम किस्म का होता है। ब्राह्मी पौधे का तना जमीन पर फैलता है जिसकी गांठों से जड़, पत्तियां, फूल………………

बूदर चमड़ा :

बूदार चमड़े को जलाकर घावों पर लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। इसके बर्तन में पानी पीने से पागलपन खत्म हो जाता है………..

बुन :

यह गले की आवाज को साफ करता है, गांठों को तोड़ता है और दर्द को दूर करता है। बुन दिल को बलवान बनाता है और मन को प्रसन्न रखता है। यह धातु को पुष्ट करता है, खून को साफ करता है और पेशाब लाता है। यह ………………

बूरा :

बूरा का उपयोग बलगम को नष्ट करने, सीने की जकड़न को दूर करने और स्वभाव को कोमल(नर्म) बनाने में किया जाता………..