Saturday, 6 July 2013

घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे

घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
20 वर्षों से डायबिटीज झेल रहीं 65 वर्षीय
महिला जो दिन में दो बार इन्सुलिन लेने को विवश थीं, आज इस रोग से पूर्णतः मुक्त होकर सामान्य सम्पूर्ण
आहार ले रही हैं | जी हाँ मिठाई भी |
डाक्टरों ने उस महिला को इन्सुलिन और अन्य ब्लड
सुगर कंट्रोल करने वाली दवाइयां भी बंद करने की सलाह
दी है |
और एक ख़ास बात | चूंकि केवल दो सप्ताह चलने वाला यह उपचारपूर्णतः प्राकृतिक तत्वों सेघर में ही निर्मित
होगा, अतः इसके कोई दुष्प्रभाव होने की रत्ती भर
भी संभावना नहीं है |
मुम्बई के किडनी विशेषज्ञ डा.टोनी अलमैदा ने
दृढ़ता और धैर्य के साथ इस औषधि के व्यापक प्रयोग
किये हैं तथा इसे आश्चर्यजनक माना है | अतः आग्रह हैकि इस उपयोगी उपचार को अधिक से
अधिक प्रचारित करें, जिससे अधिक से अधिक लोग
लाभान्वित हो सकें |
देखिये कितना आसान है इस औषधिको घर में
ही निर्मित करना |
आवश्यक वस्तुएं–
> 1 – गेंहू का आटा 100 gm.
> 2 – वृक्ष से निकली गोंद 100 gm.[babool]
> 3 - जौ 100 gm.
> 4 - कलुन्जी 100 gm.
> निर्माण विधि-
उपरोक्त सभी सामग्री को 1.250literपानी में रखें | आग पर इन्हें १० मिनिट उबालें |
इसे स्वयं ठंडा होने दें | ठंडा होने पर इसे छानकर
पानी को किसी बोतल या जग में सुरक्षित रख दें |
> उपयोग विधि-
सात दिन तक एक छोटा कप पानी[100ml.] प्रतिदिन
सुबह खाली पेट लेना | अगले सप्ताह एक दिन छोड़कर इसी प्रकार सुबह
खाली पेट पानी लेना | मात्र दो सप्ताह के इस प्रयोग के
बाद आश्चर्यजनक रूप से आप पायेंगे कि आप सामान्य
हो चुके हैं और बिना किसी समस्या के अपना नियमित
सामान्य भोजन ले सकते हैं |
गेहूं के जवारे : पृथ्वी की संजीवनी बूटी 

जानिये गेहूँ के ज्वारे के गुण

 प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल नियामतें दी हैं। गेहूं के जवारे उनमें से ही प्रकृति की एक अनमोल देन है। अनेक आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी भी कहा है, क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं, जिसमें इसका सेवन लाभ नहीं देता हो। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है।

गेहूं के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन्‌ अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है। प्रसिद्ध आहार शास्त्री डॉ. बशर के अनुसार क्लोरोफिल (गेहूंके जवारों में पाया जाने वाला प्रमुख तत्व) को केंद्रित सूर्य शक्ति कहा है।

गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूं के जवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

गेहूं के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूं के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूं के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है।

यहां एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूं के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है।

यदि किसी असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को गेहूं के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूं के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूं के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती है, क्योंकि गेहूं के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है।

जवारे का रस के बनाने की विधि:-
_______________________

आप सात बांस की टोकरी मंे अथवा गमलों मंे अच्छी मिट्टी भरकर उन मंे प्रति दिन बारी-बारी से कुछ उत्तम गेहूँ के दाने बो दीजिए और छाया मंे अथवा कमरे या बरामदे मंे रखकर यदाकदा थोड़ा-थोड़ा पानी डालते जाइये, धूप न लगे तो अच्छा है। तीन-चार दिन बाद गेहूँ उग आयेंगे और आठ-दस दिन के बाद 6-8 इंच के हो जायेंगे। तब आप उसमें से पहले दिन के बोए हुए 30-40 पेड़ जड़ सहित उखाड़कर जड़ को काटकर फेंक दीजिए और बचे हुए डंठल और पत्तियों को धोकर साफ सिल पर थोड़े पानी के साथ पीसकर छानकर आधे गिलास के लगभग रस तैयार कीजिए ।
वह ताजा रस रोगी को रोज सवेरे पिला दीजिये। इसी प्रकार शाम को भी ताजा रस तैयार करके पिलाइये आप देखेंगे कि भयंकर रोग दस बीस दिन के बाद भागने लगेगे और दो-तीन महीने मंे वह मरणप्रायः प्राणी एकदम रोग मुक्त होकर पहले के समान हट्टा-कट्ठा स्वस्थ मनुष्य हो जायेगा। रस छानने में जो फूजला निकले उसे भी नमक वगैरह डालकर भोजन के साथ रोगी को खिलाएं तो बहुत अच्छा है। रस निकालने के झंझट से बचना चाहें तो आप उन पौधों को चाकू से महीन-महीन काटकर भोजन के साथ सलाद की तरह भी सेवन कर सकते हैं परन्तु उसके साथ कोई फल न खाइये। आप देखेंगे कि इस ईश्वरप्रदत्त अमृत के सामने सब दवाइयां बेकार हो जायेगी।

गेहूँ के पौधे 6-8 इंच से ज्यादा बड़े न होने पायें, तभी उन्हें काम मंे लिया जाय। इसी कारण गमले में या चीड़ के बक्स रखकर बारी-बारी आपको गेहूँ के दाने बोने पड़ेंगे। जैसे-जैसे गमले खाली होते जाएं वैसे-वैसे उनमें गेहूँ बोते चले जाइये। इस प्रकार यह जवारा घर में प्रायः बारहों मास उगाया जा सकता है।

सावधानियाँ:-

रस निकाल कर ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए।
रस ताजा ही सेवन कर लेना चाहिए। घण्टा दो घण्टा रख छोड़ने से उसकी शक्ति घट जाती है और तीन-चार घण्टे बाद तो वह बिल्कुल व्यर्थ हो जाता है।
ग्रीन ग्रास एक-दो दिन हिफाजत से रक्खी जाएं तो विशेष हानि नहीं पहुँचती है।
रस लेने के पूर्व व बाद मंे एक घण्टे तक कोई अन्य आहार न लें
गमलों में रासायनिक खाद नहीं डाले।
रस में अदरक अथवा खाने के पान मिला सकते हैं इससे उसके स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है।
रस में नींबू अथवा नमक नहीं मिलाना चाहिए।
रस धीरे-धीरे पीना चाहिए।
इसका सेवन करते समय सादा भोजन ही लेना चाहिए। तली हुई वस्तुएं नहीं खानी चाहिए।

तीन घण्टे मंे जवारे के रस के पोषक गुण समाप्त हो जाते हैं। शुरु मंे कइयों को उल्टी होंगी और दस्त लगेंगे तथा सर्दी मालूम पड़ेगी। यह सब रोग होने की निशानी है। सर्दीं, उल्टी या दस्त होने से शरीर में एकत्रित मल बाहर निकल जायेगा, इससे घबराने की जरुरत नहीं है।
स्वामी रामदेव ने इस रस के साथ नीम गिलोय व तुलसी के 20 पत्तों का रस मिलाने की बात कहीं है।
कैलिफोर्निंया विश्वविद्यालय की शोध से प्रकट हुआ कि जवारे के रस में पी फोर डी वन नामक ऐसा ऐन्जाइम है जो दोषी डी एन ए की मरम्मत करता है। रक्त शोधन, यकृत से विषैले रयासनों को निकालने व मलशोधन मंे इसका बहुत योगदान है।डाॅ. हेन्स मिलर क्लोराॅिफल को रक्त बनाने वाले प्राकृतिक परमाणु कहते है। लिट्राइल से कैंसर तक को ठीक करने वाले तत्वों का पता लगा है। कोशिकाओं के म्यूटेशन को रोकता है। अर्थात् कार्सिनोजेनिक रसायनों जैसे बेन्जोंपायरीन को कम करता है। इससे कैंसर वृद्धि रूकती है। चीन में लीवर कैंसर इससे ठीक हुए है।

लगभग एक किलो ताजा जवारा के रस से चैबीस किलो अन्य साग सब्जियों के समान पोषक तत्व पाये जाते है।
डाक्टर विगमोर ने अपनी प्रयोगशाला मंे हजारों असाध्य रोगियों पर इस जवारे के रस का प्रयोग किया है और वे कहती हैं कि उनमें से किसी एक मामले मंे भी उन्हें असफलता नहीं मिली है।


सुबह उठते ही सबसे पहले हल्का गर्म पानी पिये !! 2 से 3 गिलास जरूर पिये !
पानी हमेशा बैठ कर पिये !

पानी हमेशा घूट घूट करके पिये !!

घूट घूट कर इसलिए पीना है ! ताकि सुबह की जो मुंह की लार है इसमे ओषधिए गुण बहुत है ! ये लार पेट मे जानी चाहिए ! वो तभी संभव है जब आप पानी बिलकुल घूट घूट कर मुंह मे घूमा कर पिएंगे !

भोजन करने के तुरन्त बाद पानी न पीए १-१.३० घण्टे बाद ही पानी पिए
दूध पीने के नियम ---

सुबह के समय दूध कभी ना पीये+ जर्सी गाय के दूध कभी भी ना पीये

बोर्नविटा , होर्लिक्स के विज्ञापनों के चलते माताओं के मन में यह बैठ जाता है की बच्चों को ये सब डाल के दो कप दूध पिला दिया बस हो गया . चाहे बच्चे दूध पसंद करे ना करे , उलटी करे , वे किसी तरह ये पिला के ही दम लेती है . फिर भी बच्चों में केशियम की कमी , लम्बाई ना बढना , इत्यादि समस्याएँ देखने में आती है .आयुर्वेद के अनुसार दूध पिने के कुछ नियम है ---
- दोपहर में छाछ पीना चाहिए . दही की प्रकृति गर्म होती है ; जबकि छाछ की ठंडी .
- रात में दूध पीना चाहिए पर बिना शकर के ; हो सके तो गाय का घी १- २ चम्मच दाल के ले . दूध की अपनी प्राकृतिक मिठास होती है वो हम शकर डाल देने के कारण अनुभव ही नहीं कर पाते .
- एक बार बच्चें अन्य भोजन लेना शुरू कर दे जैसे रोटी , चावल , सब्जियां तब उन्हें गेंहूँ , चावल और सब्जियों में मौजूद केल्शियम प्राप्त होने लगता है . अब वे केल्शियम के लिए सिर्फ दूध पर निर्भर नहीं .
- बोर्नविटा , कॉम्प्लान या होर्लिक्स किसी भी प्राकृतिक आहार से अच्छे नहीं हो सकते . इनके लुभावने विज्ञापनों का कभी भरोसा मत करिए . बच्चों को खूब चने , दाने , सत्तू , मिक्स्ड आटे के लड्डू खिलाइए
- प्रयत्न करे की देशी गाय का दूध ले .
- जर्सी या दोगली गाय से भैंस का दूध बेहतर है .
- दही अगर खट्टा हो गया हो तो भी दूध और दही ना मिलाये , खीर और कढ़ी एक साथ ना खाए . खीर के साथ नामकी पदार्थ ना खाए .
- अधजमे दही का सेवन ना करे .
- चावल में दूध के साथ नमक ना डाले .
- सूप में ,आटा भिगोने के लिए , दूध इस्तेमाल ना करे .
- द्विदल यानी की दालों के साथ दही का सेवन विरुद्ध आहार माना जाता है . अगर करना ही पड़े तो दही को हिंग जीरा की बघार दे कर उसकी प्रकृति बदल लें .
- रात में दही या छाछ का सेवन ना करे .

रस-प्रयोग::

किस रोग में कौन सा रस लेंगे?

भूख लगाने के हेतुः प्रातःकाल खाली पेट नींबू का पानी पियें। खाने से पहले अदरक का कचूमर सैंधव नमक के साथ लें।

रक्तशुद्धिः नींबू, गाजर, गोभी, चुकन्दर, पालक, सेव, तुलसी, नीम और बेल के पत्तों का रस।

दमाः लहसुन, अदरक, तुलसी, चुकन्दर, गोभी, गाजर, मीठी द्राक्ष का रस, भाजी का सूप अथवा मूँग का सूप और बकरी का शुद्ध दूध लाभदायक है। घी, तेल, मक्खन वर्जित है।

उच्च रक्तचापः गाजर, अंगूर, मोसम्मी और ज्वारों का रस। मानसिक तथा शारीरिक आराम आवश्यक है।

निम्न रक्तचापः मीठे फलों का रस लें, किन्तु खट्टे फलों का उपयोग न करें। अंगूर और मोसम्मी का रस अथवा दूध भी लाभदायक है।

पीलियाः अंगूर, सेव, रसभरी, मोसम्मी। अंगूर की अनुपलब्धि पर लाल मुनक्के तथा किसमिस का पानी। गन्ने को चूसकर उसका रस पियें। केले में 1.5 ग्राम चूना लगाकर कुछ समय रखकर फिर खायें।

मुहाँसों के दागः गाजर, तरबूज, प्याज, तुलसी और पालक का रस।

संधिवातः लहसुन, अदरक, गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी, हरा धनिया, नारियल का पानी तथा सेव और गेहूँ के ज्वारे।

एसीडिटीः गाजर, पालक, ककड़ी, तुलसी का रस, फलों का रस अधिक लें। अंगूर मोसम्मी तथा दूध भी लाभदायक है।

कैंसरः गेहूँ के ज्वारे, गाजर और अंगूर का रस।

सुन्दर बनने के लिएः सुबह-दोपहर नारियल का पानी या बबूल का रस लें। नारियल के पानी से चेहरा साफ करें।

फोड़े-फुन्सियाँ- गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी और नारियल का रस।

कोलाइटिसः गाजर, पालक और पाइनेपल का रस। 70 प्रतिशत गाजर के रस के साथ अन्य रस समप्राण। चुकन्दर, नारियल, ककड़ी, गोभी के रस का मिश्रण भी उपयोगी है।

अल्सरः अंगूर, गाजर, गोभी का रस। केवल दुग्धाहार पर रहना आवश्यक है।
सर्दी-कफः मूली, अदरक, लहसुन, तुलसी, गाजर का रस, मूँग अथवा भाजी का सूप।

ब्रोन्काइटिसः पपीता, गाजर, अदरक, तुलसी, पाइनेपल का रस, मूँग का सूप। स्टार्चवाली खुराक वर्जित।

दाँत निकलते बच्चे के लिएः पाइनेपल का रस थोड़ा नींबू डालकर रोज चार औंस(100-125 ग्राम)।

रक्तवृद्धि के लिएः मोसम्मी, अंगूर, पालक, टमाटर, चुकन्दर, सेव, रसभरी का रस रात को। रात को भिगोया हुआ खजूर का पानी सुबह में। इलायची के साथ केले भी उपयोगी हैं।

स्त्रियों को मासिक धर्म कष्टः अंगूर, पाइनेपल तथा रसभरी का रस।

आँखों के तेज के लिएः गाजर का रस तथा हरे धनिया का रस श्रेष्ठ है।

अनिद्राः अंगूर और सेव का रस। पीपरामूल शहद के साथ।

वजन बढ़ाने के लिएः पालक, गाजर, चुकन्दर, नारियल और गोभी के रस का मिश्रण, दूध, दही, सूखा मेवा, अंगूर और सेवों का रस।

डायबिटीजः गोभी, गाजर, नारियल, करेला और पालक का रस।

पथरीः पत्तों वाली भाजी न लें। ककड़ी का रस श्रेष्ठ है। सेव अथवा गाजर या कद्दू का रस भी सहायक है। जौ एवं सहजने का सूप भी लाभदायक है।

सिरदर्दः ककड़ी, चुकन्दर, गाजर, गोभी और नारियल के रस का मिश्रण।

किडनी का दर्दः गाजर, पालक, ककड़ी, अदरक और नारियल का रस।

फ्लूः अदरक, तुलसी, गाजर का रस।

वजन घटाने के लिएः पाइनेपल, गोभी, तरबूज का रस, नींबू का रस।

पायरियाः गेहूँ के ज्वारे, गाजर, नारियल, ककड़ी, पालक और सुआ की भाजी का रस। कच्चा अधिक खायें।

बवासीरः मूली का रस, अदरक का रस घी डालकर।

डिब्बेपैक फलों के रस से बचोः
बंद डिब्बों का रस भूलकर भी उपयोग में न लें। उसमें बेन्जोइक एसिड होता है। यह एसिड तनिक भी कोमल चमड़ी का स्पर्श करे तो फफोले पड़ जाते हैं। और उसमें उपयोग में लाया जानेवाला सोडियम बेन्जोइक नामक रसायन यदि कुत्ता भी दो ग्राम के लगभग खा ले तो तत्काल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। उपरोक्त रसायन फलों के रस, कन्फेक्शनरी, अमरूद, जेली, अचार आदि में प्रयुक्त होते हैं। उनका उपयोग मेहमानों के सत्कारार्थ या बच्चों को प्रसन्न करने के लिए कभी भूलकर भी न करें।

'फ्रेशफ्रूट' के लेबल में मिलती किसी भी बोतल या डिब्बे में ताजे फल अथवा उनका रस कभी नहीं होता। बाजार में बिकता ताजा 'ओरेन्ज' कभी भी संतरा-नारंगी का रस नहीं होता। उसमें चीनी, सैक्रीन और कृत्रिम रंग ही प्रयुक्त होते हैं जो आपके दाँतों और आँतड़ियों को हानि पहुँचा कर अंत में कैंसर को जन्म देते हैं। बंद डिब्बों में निहित फल या रस जो आप पीते हैं उन पर जो अत्याचार होते हैं वे जानने योग्य हैं। सर्वप्रथम तो बेचारे फल को उफनते गरम पानी में धोया जाता है। फिर पकाया जाता है। ऊपर का छिलका निकाल लिया जाता है। इसमें चाशनी डाली जाती है और रस ताजा रहे इसके लिए उसमें विविध रसायन (कैमीकल्स) डाले जाते हैं। उसमें कैल्शियम नाइट्रेट, एलम और मैग्नेशियम क्लोराइड उडेला जाता है जिसके कारण अँतड़ियों में छेद हो जाते हैं, किडनी को हानि पहुँचती है, मसूढ़े सूज जाते हैं। जो लोग पुलाव के लिए बाजार के बंद डिब्बों के मटर उपयोग में लेते हैं उन्हें हरे और ताजा रखने के लिए उनमें मैग्नेशियम क्लोराइड डाला जाता है। मक्की के दानों को ताजा रखने के लिए सल्फर डायोक्साइड नामक विषैला रसायन (कैमीकल) डाला जाता है। एरीथ्रोसिन नामक रसायन कोकटेल में प्रयुक्त होता है। टमाटर के रस में नाइट्रेटस डाला जाता है। शाकभाजी के डिब्बों को बंद करते समय शाकभाजी के फलों में जो नमक डाला जाता है वह साधारण नमक से 45 गुना अधिक हानिकारक होता है।

इसलिए अपने और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए और मेहमान-नवाजी के फैशन के लिए भी ऐसे बंद डिब्बों की शाकभाजी का उपयोग करके स्वास्थ्य को स्थायी जोखिम में न डालें।

सुबह उठते ही सबसे पहले हल्का गर्म पानी पिये !! 2 से 3 गिलास जरूर पिये !
पानी हमेशा बैठ कर पिये !
पानी हमेशा घूट घूट करके पिये !!

घूट घूट कर इसलिए पीना है ! ताकि सुबह की जो मुंह की लार है इसमे ओषधिए गुण
बहुत है ! ये लार पेट मे जानी चाहिए ! वो तभी संभव है जब आप पानी बिलकुल घूट
घूट कर मुंह मे घूमा कर पिएंगे !

इसके बाद दूसरा काम पेट साफ करने का है ! रोज पानी पीकर सुबह शोचालय जरूर जाये
!पेट का सही ढंग से साफ न होना 108 बीमारियो की जड़ है !

खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है !
हमेशा डेड घंटे बाद ही पानी पीएं !

खाना खाने के बाद अगर कुछ पी सकते हैं उसमे तीन चीजे आती हैं !!

1) जूस
2) छाज (लस्सी) या दहीं !
3) दूध

सुबह खाने के बाद अगर कुछ पीना है तो हमेशा जूस पिये !
दोपहर को दहीं खाये ! या लस्सी पिये !
और दूध हमेशा रात को पिये !!

इन तीनों के क्रम को कभी उल्टा पुलटा न करे !!फल सुबह ही खाएं (ज्यादा से
ज्यादा दोपहर 1 बजे तक ) ! दहीं दोपहर को दूध रात को !

इसके इलावा खाने के तेल मे भूल कर भी refine oil का प्रयोग मत करे !(वो चाहे
किसी भी कंपनी का क्यू न हो
अभी के अभी घर से निकाल दें ! बहुत ही घातक है !
सरसों के तेल का प्रयोग करे ! या देशी गाय के दूध का शुद्ध घी खाएं ! !
(पतंजलि का सरसों का तेल एक दम शुद्ध है !(शुद्ध सरसों के तेल की पहचान है
मुंह पर लगाते ही एक दम जलेगा ! और खाना बनाते समय आंखो मे हल्की जलन होगी !

चीनी का प्रयोग तुरंत बंद कर दीजिये ! गुड खाना का प्रयोग करे ! या शक्कर खाये

खाने बनाने मे हमेशा सेंधा नमक या काला नमक का ही प्रयोग करे !! आयोडिन युक्त
नमक कभी न खाएं !!

सुबह का भोजन सूर्य उद्य ! होने के 2 से 3 घंटे तक कर लीजिये ! (अगर 7 बजे
आपके शहर मे सूर्य निकलता है ! तो 9 या 10 बजे तक सुबह का भोजन कर लीजिये ! इस
दौरान जठर अग्नि सबसे तेज होती है ! सुबह का खाना हमेशा भर पेट खाएं ! सुबह के
खाने मे पेट से ज्यादा मन संतुष्टि होना जरूरी है ! इसलिए अपनी मनपसंद वस्तु
सुबह खाएं !!

खाना खाने के तुरंत बाद ठीक 20 मिनट के लिए बायीं लेट जाएँ और अगर शरीर मे
आलस्य ज्यादा है तो 40 मिनट मिनट आराम करे ! लेकिन इससे ज्यादा नहीं !

इसी प्रकार दोपहर को खाना खाने के तुरंत बाद ठीक 20 मिनट के लिए बायीं लेट
जाएँ और अगर शरीर मे आलस्य ज्यादा है तो 40 मिनट मिनट आराम करे ! लेकिन इससे
ज्यादा नहीं !

रात को खाना खाने के तुरंत बाद नहीं सोना ! रात को खाना खाने के बाद बाहर सैर
करने जाएँ ! कम से कम 500 कदम सैर करे ! और रात को खाना खाने के कम स कम 2
घंटे बाद ही सोएँ !

ब्रह्मचारी है (विवाह के बंधन मे नहीं बंधे ) तो हमेशा सिर पूर्व दिशा की और
करके सोएँ ! ब्रह्मचारी नहीं है तो हमेशा सिर दक्षिण की तरफ करके सोएँ ! उत्तर
और पश्चिम की तरफ कभी सिर मत करके सोएँ !

मैदे से बनी चीजे पीज़ा ,बर्गर ,hotdog,पूलड़ोग , आदि न खाएं ! ये सब मेदे को
सड़ा कर बनती है !! कब्ज का बहुत बड़ा कारण है ! और ऊपर आपने पढ़ा कब्ज से 108
रोग आते हैं )

इन सब नियमो का अगर पूरी ईमानदारी से प्रयोग करेंगे ! 1 से 2 महीने मे ऐसा
लगेगा पूरी जिंदगी बदल गई है ! मोटापा है तो कम हो जाएगा ! hihgh
BP,cholesterol,triglycerides,सब level पर आना शुरू हो जाएगा ! HDL बढ्ने
लगेगा ! LDL ,VLDL कम होने लगेगा !! और भी बहुत से बदलाव आप देखेंगे !!

नारियल पानी पीने के स्वास्थवर्धक गुण::

गर्मियों में नारियल पानी के सेवन से, आपको दिव्य आनंद प्राप्त होगा। यह केवल आपको ताजगी ही नहीं, बल्कि इस में कई सारे स्वास्थवर्धक गुण भी छुपे हैं। नारियल पानी में विटामिन, मिनरल, इलेक्ट्रोलाइट्स, एंजाइमस्, एमिनो एसिड और साइटोकाइन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि नारियल पानी महिलाओं के स्वािस्य्ना के लिये बहुत ही अच्छाय माना गया है। यदि पेशाब में जलन हो रही हो, डीहाड्रेशन हो गया हो, त्वयचा में निखार चाहिये हो या फिर मोटापा घटाना हो तो नारियल पानी पीजिये। नारियल की तासीर ठंडी होती है इसलिए नारियल का पानी हल्का, प्यास बुझाने वाला, अग्निप्रदीपक, वीर्यवर्धक तथा मूत्र संस्थान के लिए बहुत उपयोगी होता है। इसमें स्वास्थवर्धक गुण तो है ही, साथ ही इसकी ताजगी से भरा स्वाद इसे पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाता है। आइये जानते हैं नारियल पानी के बारे में कुछ स्वागस्य्िश वर्धक बातें।
1. दस्तम मिटाए अगर आप दस्त से परेशान है, तो नारियल पानी का सेवन आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा, यह आपके शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है। नारियल पानी में एमिनो एसिड, एंजाइमस्, डाइटेरी फाइबर, विटामिन सी और कई मिनरल जैसे पोटेशियम, मैग्नीशियम और मैंगनीज पाए जाते हैं। साथ ही, इसका सेवन आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल और क्लोराइड को भी कम करता है।

2.पानी की कमी पूरी करे देश में, आज भी कई ऐसे प्रांत मौजूद है, जहाँ चिकित्सा की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है। यहाँ, हाइड्रेशन के कारण गंभीर रुप से बीमार हुए मरीजों को नारियल पानी पीलाया जाए, तो यह उनके शरीर में पानी की कमी को पूरा करने में लाभदायक साबित होगा।

3.मोटापा न बढाए क्योंकि इस में फैटस की मात्रा बहुत कम है, जिसके कारण यह आपका मोटापा भी कम कर सकता है और तृप्त महसूस कराता है। इसका सेवन, खाना खाने की इच्छा को भी कम करता है।

4. मधुमेह के लिये नारियल पानी का सेवन मधुमेह के रोगियों के लिये बहुत लाभदायक है। इस में मौजूद पोषक तत्व, शरीर में शक्कधर के स्तर को नियंत्रित रखते हैं। जो मधुमेह के रोगियों के लिये बहुत जरुरी है।
5. फ्लू में लाभकारी फ्लू और दाद, दोनों शरीर में वायरल इन्फेक्शन से होने वाली बीमारियाँ हैं। अगर कोई व्यक्ति इन बीमारियों की चपेट में आ गया है, तो नारियल पानी में मौजूद एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल गुण इस बीमारी से लडने में मदद करेंगे।

6. हाइपर्टेंशन और स्ट्रोक से बचाए पोटेशियम से भरपूर नारियल पानी आपको सेहतमंद बनाता है। साथ ही, इसका सेवन हाइपर्टेंशन और स्ट्रोक के खतरे को कम करने में मदद करता है।

7. किडनी स्टोनन से बचाए नारियल पानी में मौजूद मिनरल, पोटेशियम और मैग्नीशियम गुर्दे में होने वाली पथरी के खतरे को कम करते हैं।

8. झुर्रियों और मुंहासों के दाग मिटाए अगर आप हर रात, दो से तीन हफ्तों के लिये, अपने मुँहासों, धब्बों, झुर्रियों, स्ट्रैच माक्स, सेल्युलाईट और एक्जिमा पर नारियल पानी लगाएँगे, तो आपकी त्वचा बहुत साफ हो जाएगी।

9. एंटी एजिंग का काम करे कुछ अनुसंधानों अनुसार, नारियल पानी में मौजूद साइटोकिन्स, एंटी ऐजिंग, एंटी कासीनजन और एंटी थौंबौटिक्स से लडने में काफी फायदेमंद साबित हुए हैं।

10. कैंसर से लड़े कई प्रयोगशालाओं में यह भी पाया गया है कि नारियल पानी के कुछ संयुक्त पदार्थ जैसे सेलनियम में एंटी आॉक्सीडेंट गुण मौजूद है, जो कैंसर से लडने में मदद करते हैं।

11. पाचन में मददगार स्वाभाविक रुप से नारियल पानी में कई बायोएक्टिव एन्जाइमस् जैसे एसिड फॉस्फेट, कटालेस, डिहाइड्रोजनेज, डायस्टेज, पेरोक्सडेस, आर एन ए पोलिमेरासेस् आदि पाए जाते हैं। ये एनेजाइमस् पाचन और चयापचय क्रिया में मदद करते हैं।

12. बी कॉम्लयक्स से भरा नारियल पानी में बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन के राइबोफ्लेविन, नियासिन, थियामिन, पैरिडोक्सिन और फोलेट्स जैसे तत्व मौजूद है। मानव शरीर को इन विटामिन की आवश्कता होती है और इन्हें पूरा करने के लिए उसे अन्य पदार्थों पर निर्भर होना पडता है।

13. इलेक्ट्रो लाइट से भरपूर नारियल पानी में भरपूर मात्रा में इलेक्ट्रोलाइट पोटेशियम पाया जाता है। 100 मिलीलीटक नारियल पानी में 250 मिलीग्राम पोटेशियम और 105 मिलीग्राम सोडियम होता है। कुल मिलाकर ये इलेक्ट्रोलाइट्स, दस्त के दौरान शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं।

14. विटामिन सी ताजे नारियल पानी में कम मात्रा में विटामिन सी (ऐस्कोरबिक एसिड) होती है। इस में 4% या 2.5 मिलीग्राम आर डी ए होता है। विटामिन सी पानी में घुल जाने वाला एटीआॉक्सीडेंट है।

बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार ------
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• एक पानीवाला नारियल जिसे हम मन्दिर में चढाते है उसे छील ल्रे और गिरि निकाल कर उसे आग पर भूने और उसकी भस्म को दही के सथ मिलाकर खाए

• नीम का तेल मस्सों पर लगाने से और 4- 5 बूँद रोज़ पीने से लाभ होता है।

• करीब दो लीटर छाछ (मट्ठा) लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह पर यह छास पी लें। पूरे दिन पानी की जगह यह छाछ (मट्ठा) ही पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करें, मस्से ठीक हो जायेंगे।
छाछ में सोंठ का चूर्ण, सेंधा नमक, पिसा जीरा व जरा-सी हींग डालकर सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

• अगर आप कड़े या अनियमित रूप से मल का त्याग कर रहे हैं, तो आपको इसबगोल भूसी का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा।

• ऐसे भी कुछ उपचार हैं जिनमे शल्य चिकित्सा की और अस्पताल में भी रहने की ज़रुरत नहीं पड़ती।
बवासीर के उपचार के लिये अन्य आयुर्वेदिक औषधियां हैं: अर्शकुमार रस, तीक्ष्णमुख रस, अष्टांग रस, नित्योदित रस, रस गुटिका, बोलबद्ध रस, पंचानन वटी, बाहुशाल गुड़, बवासीर मलहम वगैरह।

बवासीर की रोकथाम:
• अपनी आँत की गतिविधियों को सौम्य रखने के लिये, फल, सब्ज़ियाँ, सीरियल, ब्राउन राईस, ब्राउन ब्रेड जैसे रेशेयुक्त आहार का सेवन करें।
• तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें।
• मसालेदार बिल्कुल न खाए सब्जी में घिया तोरी आदि हल्की सब्जिया खाए

जिंदगी में तनाव कम करने के तरीके
आज की आपाधापी एवं तेज रफ्तार जीवन शैली में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है तो तनाव से युक्त न हो। आज के युग में छोटे-छोटे बच्चे भी तनावग्रस्त रहने लगे हैं। तनाव एक ऐसी समस्या है जो व्यक्ति को अंदर अंदर ही खोखला बना देती है। जब इसकी अति हो जाती है यह एक गंभीर रोग का रूप ले लेता है। तनाव से हर कोई व्यक्ति ग्रस्त है। कुछ लोग तनाव को बेवजह पालते हैं तो कुछ लोग व्यर्थ की चिंताओं में ग्रस्त होकर अपने वर्तमान और भविष्य को नष्ट करते हैं। इसके साथ ही तनाव अनेक रोगों और समस्याओं को जन्म देता है जिसमें भूख न लगना, काम में मन न लगना, चिड़िचिड़ापन, क्रोध, कब्ज आदि मुख्य है।
तनाव से हानियां :-
* तनाव के कारण व्यक्ति को भूख कम लगती है जिससे व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है।
* तनाव रक्तचाप को बढ़ाता है जो हृदय रोग का कारण बनता है।
* तनाव सिरदर्द की समस्या को उत्पन्न करता है। अत्यधिक तनाव आयु को कम करता है।
* तनाव के कारण शरीर असंतुलित हो जाता है जिसके कारण बदहजमी और पेट दर्द की समस्या उत्पन्न होती है। नींद नहीं आने से स्वास्थ्य में गिरावट आती है।
* मानसिक तनाव के कारण चेहरे की मांसपेशियों पर अनावश्यक दबाव पड़ता है जिसके कारण त्वचा में झुर्रियों पड़ता है जिसके कारण त्वचा में झुर्रियों की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
तनाव कम करने के उपाय :-
* धार्मिक कार्यों में रूचि उत्पन्न करें, इससे आपको आत्म संतुष्टि प्राप्त होगी।
* परिवार के लोगों के साथ मिलकर बैठें, साथ भोजन करें और अपनी समस्या पर विचार करें।
* अपनी रूचि का कार्य करें। बागवानी, चित्रकला संगीत, सिलाई कला, पेंटिंग, यदि विद्वान हों तो रचनाएं लिखकर या आलेख लिखकर अपने तनाव को कम किया जा सकता है।
* योग करना तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है।
* अपने अंदर छुपी रूचि को विकसित करने का प्रयास करें।
* कभी भी किसी विषय पर अत्यधिक गंभीर न हो।
* नींद न आना या फिर कम सोना भी तनाव का महत्वपूर्ण कारण है इसलिये भरपूर नींद लें। यदि नींद नहीं आती हो तो सोने से पूर्व अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करें।
* नियमित सैर व व्यायाम का अभ्यास करें। प्रात: जल्दी उठकर ताजी हवा में सांस लें। एकांत में रहने के विपरीत साथ समूह में बैठें। मनोरंजन के लिये टीवी देखें।
* हंसने और मुस्कराने की आदत डालें, ये दोनों आदतें तनाव को कम करने में प्रभावशाली हैं।
* आदतों में बदलाव लाएं, कभी-कभी गलत आदतें और व्यवहार भी हमें तनावग्रस्त में रखता है।
* आपसी विवाद से बचें एवं किसी मामले में झगड़ा फसाद व क्रोध न करें।

आयुर्वेद से एसीडिटी का इलाज ::

• आंवला चूर्ण को एक महत्वपूर्ण औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आपको एसीडिटी की शिकायत होने पर सुबह- शाम आंवले का चूर्ण लेना चाहिए।
• अदरक के सेवन से एसीडिटी से निजात मिल सकती हैं, इसके लिए आपको अदरक को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर गर्म पानी में उबालना चाहिए और फिर उसका पानी अदरक की चाय भी ले सकते हैं।
• मुलैठी का चूर्ण या फिर इसका काढ़ा भी आपको एसीडिटी से निजात दिलाएगा इतना ही नहीं गले की जलन भी इस काढ़े से ठीक हो सकती है।
• नीम की छाल को पीसकर उसका चूर्ण बनाकर पानी से लेने से एसीडिटी से निजात मिलती है। इतना ही नहीं यदि आप चूर्ण का सेवन नहीं करना चाहते तो रात को पानी में नीम की छाल भिगो दें और सुबह इसका पानी पीएं आपको इससे निजात मिलेगी।
• मुनक्का या गुलकंद के सेवन से भी एसीडिटी से निजात पा सकते हैं, इसके लिए आप मुनक्का को दूध में उबालकर ले सकते हैं या फिर आप गुलकंद के बजाय मुनक्का भी दूध के साथ ले सकते हैं।
• त्रि‍फला चूर्ण के सेवन से आपको एसीडिटी से छुटकारा मिलेगा, इसके लिए आपको चाहिए कि आप पानी के साथ त्रि‍फला चूर्ण लें या फिर आप दूध के साथ भी त्रि‍फला ले सकते हैं।
हरड: यह पेट की एसिडिटी और सीने की जलन को ठीक करता है ।
• लहसुन: पेट की सभी बीमारियों के उपचार के लिए लहसून रामबाण का काम करता है।
• मेथी: मेथी के पत्ते पेट की जलन दिस्पेप्सिया के उपचार में सहायक सिद्ध होते हैं।
• सौंफ:सौंफ भी पेट की जलन को ठीक करने में सहायक सिद्ध होती है। यह एक तरह की सौम्य रेचक होती है और शिशुओं और बच्चों की पाचन और एसिडिटी से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए भी मदद करती है।

• दूध के नियमित सेवन से आप एसीडिटी से निजात पा सकते हैं, इसके साथ ही आपको चाहिए कि आप चौलाई, करेला, धनिया, अनार, केला इत्यादि फलों का सेवन नियमित रूप से करें।
• शंख भस्म, सूतशेखर रस, कामदुधा रस, धात्री लौह, प्रवाल पिष्टी इत्यादि औषधियों को मिलाकर आपको भोजन के बाद पानी के साथ लेना चाहिए।
• इसके अलावा आप अश्वगंधा, बबूना , चन्दन, चिरायता, इलायची, अहरड, लहसुन, मेथी, सौंफ इत्यादि के सेवन से भी एसीडिटी की समस्या से निजात पा सकते हैं।

एसीडिटी दूर करने के अन्य उपाय
• अधिक मात्रा में पानी पीना
• पपीता खाएं
• दही और ककड़ी खाएं
• गाजर, पत्तागोभी, बथुआ, लौकी इत्यातदि को मिक्सत करके जूस लें।
• पानी में नींबू और मिश्री मिलाकर दोपहर के खाने से पहले लें।
• तनावमुक्त रहें और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें।
• नियमित रूप से व्यायाम करें।
• दोपहर और रात के खाने के बीच सही अंतराल रखें।
• नियमित रूप से पुदीने के रस का सेवन करें ।
• तुलसी के पत्ते एसिडिटी और मतली से काफी हद तक राहत दिलाते हैं।
• नारियल पानी का सेवन अधिक करें।


एसीडिटी के कारण
• नियमित रूप से चटपटा मसालेदार और जंकफूड का सेवन
• अधिक एल्‍‍कोहल और नशीले पदार्थों का सेवन
• लंबे समय तक दवाईयों का सेवन
• शरीर में गर्मी बढ़-बढ़ जाना
• बहुत देर रात भोजन करना
• भोजन के बाद भी कुछ न कुछ खाना या लंबे समय तक भूखे रहकर एकदम बहुत सारा खाना खाना


एसीडिटी के लक्षण
• एसीडिटी के तुरंत बाद पेट में जलन होने लगती है।
• कड़वी और खट्टी डकारें आना
• लगातार गैस बनना और सिर दर्द की शिकायत
• उल्टी होने का अहसास और खाने का बाहर आने का अहसास होना
• थकान और भारीपन महसूस होना
 पक्षाघात
नसों में जकडन और पक्षाघात की प्रारम्भिक अवस्था में भी यही मेडिसिन काम आती है |

श्री माधव राव जी के गुरु (राजीव दीक्षित) के गुरु थे धर्मपाल जी जिनको पक्षाघात हुआ था और उनकी सेवा करने का मौका माधव राव जी को मिला था । माधव राव जी के माताजी की मृत्यु पक्षाघात से हुई थी जिसका बहुत दुःख उनको था। पर ऐसे बहुत माताजी और पिताजी जिनको पक्षाघात हुआ था उनकी सेवा करने का मौका उनको मिला।

पक्षाघात या Paralysis में एक दावा का नाम है Rhustox और इसकी पोटेंसी है 30 । जिस दिन पक्षाघात आता है रोगीको 15 -15 मिनट पर तिन बार दो दो बूंद जिव पर दे और इसी Rhustox 30 को Cousticum 1M करते हुए रोज सुबह, दोपहर शाम ऐसे देते जाना एक महीने तक तो वो ठीक हो जायेगा कोई कोई रोगी तो 15-20 दिन में ठीक हो जाते है । इसमें एक और दावा है Cousticum 1M , जिसदिन Rhustox 30 दिया दुसरे दिन Cousticum 1M को दो दो बूंद तीनबार दे और इसके आधे आधे घंटे बाद Rhustox 30 देना है । ये Rhustox 30 रोज की दावा है पर Cousticum 1M हफ्ते में एकबार दो दो बूंद तीनबार देनी चाहिए । ऐसे करके पक्षाघात के रोगी को दावा देंगे तो कोई एक महीने में ठीक हो जायेगा कोई 15-20 दिन में ठीक हो जायेगा किसीको देड़ महिना लगेगा और जादातर दो महिना से जादा नही लगेगा ठीक होने में । अगर किसीको Paralysis आने के 15 या एक महीने बाद से दावा दिया जाये तो वो रोगी तिन महीने में ठीक हो जाते है, तिन महिना से जादा समय नही लगता ।

रोगी को चाय कोफ़ी जैसी गलत नशा छोड़ना होगा और शाकाहारी भोजन करना होगा । माधव भाई ने हजारो लोगोंका चिकित्सा किया और आप को ये दावा 10 से 20 रूपए में मिल जाएगी । रोगी को ठीक करने में दावा का खर्च 50 रूपए से जादा खर्च नही होगा । और देश में सभी रोगीयों को इस दवा अनुभव हो ऐसा माधव भाई चाहते है ।

भोजन के अन्त में पानी विष समान है ।
भोजन हमेसा धीरे धीरे, आराम से जमीन पर बैठकर करना चाहिए ताकि सीधे अमाशय में जा सके । यदि पानी पीना हो तो भोजन आधा घंटा पहले पी ले । भोजन के समय पानी न पियें । यदि प्यास लगती हो या भोजन अटकता हो तो मठ्ठा / छाछ ले सकते हैं या उस मौसम के किसी भी फल का रस पी सकते है (डिब्बा बन्ध फलों का रस गलती से भी न पियें) । पानी नहीं पीना है क्योंकि जब हम भोजन करते है तो उस भोजन को पचाने के लिए हमारी जठराग्नि में अग्नि प्रदीप्त होती है । उसी अग्नि से वह खाना पचता है । यदि हम पानी पीते है तो खाना पचाने के लिए पैदा हुई अग्नि मंद पड़ती है और खाना अछि तरह से नहीं पचता और वह विष बनता है । कई तरह की बीमारियां पैदा करता है । भोजन करने के एक घन्टा बाद ही पानी पिए वो भी घूंट घूंट करके

फायदे :
मोटापा कम करने के लिए यह पद्धति सर्बोत्तम है । पित्त की बिमारियों को कम करने के लिए, अपच, खट्टी डकारें, पेट दर्द, कब्ज, गैस आदि बिमारियों को इस पद्धति से अछि तरह से ठीक किया जा सकता है ।

heart attack

अब पढ़िये इसका आयुर्वेदिक इलाज !!
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हमारे देश भारत मे 3000 साल एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे उनका नाम था महाऋषि
वागवट जी !!
उन्होने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है अष्टांग हृदयम!! और इस पुस्तक मे
उन्होने ने बीमारियो को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे थे ! ये उनमे से ही
एक सूत्र है !!

वागवट जी लिखते है कि कभी भी हरद्य को घात हो रहा है ! मतलब दिल की नलियो मे
blockage होना शुरू हो रहा है ! तो इसका मतलब है कि रकत (blood) मे
acidity(अमलता ) बढ़ी हुई है !

अमलता आप समझते है ! जिसको अँग्रेजी मे कहते है acidity !!

अमलता दो तरह की होती है !
एक होती है पेट कि अमलता ! और एक होती है रक्त (blood) की अमलता !!
आपके पेट मे अमलता जब बढ़ती है ! तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है !!
खट्टी खट्टी डकार आ रही है ! मुंह से पानी निकाल रहा है ! और अगर ये अमलता
(acidity)और बढ़ जाये ! तो hyperacidity होगी ! और यही पेट की अमलता
बढ़ते-बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अमलता(blood acidity) होती !!

और जब blood मे acidity बढ़ती है तो ये अमलीय रकत (blood) दिल की नलियो मे से
निकल नहीं पाता ! और नलिया मे blockage कर देता है ! तभी heart attack होता है
!! इसके बिना heart attack नहीं होता !! और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है
जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं ! क्यूंकि इसका इलाज सबसे सरल है !!

इलाज क्या है ??
वागबट जी लिखते है कि जब रकत (blood) मे अमलता (acidty) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी
चीजों का उपयोग करो जो छारीय है !

आप जानते है दो तरह की चीजे होती है !

अमलीय और छारीय !!
(acid and alkaline )

अब अमल और छार को मिला दो तो क्या होता है ! ?????
((acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है )?????

neutral होता है सब जानते है !!
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तो वागबट जी लिखते है ! कि रक्त कि अमलता बढ़ी हुई है तो छारीय(alkaline) चीजे
खाओ ! तो रकत की अमलता (acidity) neutral हो जाएगी !!! और रक्त मे अमलता
neutral हो गई ! तो heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं !! ये है
सारी कहानी !!

अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो छारीय है और हम खाये ?????

आपके रसोई घर मे सुबह से शाम तक ऐसी बहुत सी चीजे है जो छारीय है ! जिनहे आप
खाये तो कभी heart attack न आए ! और अगर आ गया है ! तो दुबारा न आए !!
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सबसे ज्यादा आपके घर मे छारीय चीज है वह है लोकी !! जिसे दुदी भी कहते है !!
english मे इसे कहते है bottle gourd !!! जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है !
इससे ज्यादा कोई छारीय चीज ही नहीं है ! तो आप रोज लोकी का रस निकाल-निकाल कर
पियो !! या कच्ची लोकी खायो !!

स्वामी रामदेव जी को आपने कई बार कहते सुना होगा लोकी का जूस पीयों- लोकी का
जूस पीयों !
3 लाख से ज्यादा लोगो को उन्होने ठीक कर दिया लोकी का जूस पिला पिला कर !! और
उसमे हजारो डाक्टर है ! जिनको खुद heart attack होने वाला था !! वो वहाँ जाते
है लोकी का रस पी पी कर आते है !! 3 महीने 4 महीने लोकी का रस पीकर वापिस आते
है आकर फिर clinic पर बैठ जाते है !

वो बताते नहीं हम कहाँ गए थे ! वो कहते है हम न्योर्क गए थे हम जर्मनी गए थे
आपरेशन करवाने ! वो राम देव जी के यहाँ गए थे ! और 3 महीने लोकी का रस पीकर आए
है ! आकर फिर clinic मे आपरेशन करने लग गए है ! और वो इतने हरामखोर है आपको
नहीं बताते कि आप भी लोकी का रस पियो !!

तो मित्रो जो ये रामदेव जी बताते है वे भी वागवट जी के आधार पर ही बताते है !!
वागवतट जी कहते है रकत की अमलता कम करने की सबे ज्यादा ताकत लोकी मे ही है !
तो आप लोकी के रस का सेवन करे !!

कितना करे ?????????
रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो !!

कब पिये ??

सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते है !!
या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते है !!
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इस लोकी के रस को आप और ज्यादा छारीय बना सकते है ! इसमे 7 से 10 पत्ते के
तुलसी के डाल लो
तुलसी बहुत छारीय है !! इसके साथ आप पुदीने से 7 से 10 पत्ते मिला सकते है !
पुदीना बहुत छारीय है ! इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले ! ये भी
बहुत छारीय है !!
लेकिन याद रखे नमक काला या सेंधा ही डाले ! वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न
डाले !! ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है !!!!

तो मित्रो आप इस लोकी के जूस का सेवन जरूर करे !! 2 से 3 महीने आपकी सारी
heart की blockage ठीक कर देगा !! 21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना
शुरू हो जाएगा !!!
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कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी !! घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से
इसका इलाज हो जाएगा !! और आपका अनमोल शरीर और लाखो रुपए आपरेशन के बच जाएँगे !!
माहवारी (मासिक धर्म)

माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना

1. किशमिश: पुरानी किशमिश को 3 ग्राम की मात्रा में लेकर इसे लगभग 200 मिलीलीटर पानी में रात को भिगोकर रख दें। सुबह इसे उबालकर रख लें। जब यह एक चौथाई की मात्रा में रह जाए तो इसे छानकर सेवन करने से मासिक-धर्म के सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।

2. तिल: काले तिल 5 ग्राम को गुड़ में मिलाकर माहवारी (मासिक) शुरू होने से 4 दिन पहले सेवन करना चाहिए। जब मासिक धर्म शुरू हो जाए तो इसे बंद कर देना चाहिए। इससे माहवारी सम्बंधी सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।
लगभग 8 चम्मच तिल, एक गिलास पानी में गुड़ या 10 कालीमिर्च को (इच्छानुसार) पीसकर गर्म कर लें। आधा पानी बच जाने पर 2 बार रोजाना पीयें, यह मासिक-धर्म आने के 15 मिनट पहले से मासिकस्राव तक सेवन करें। ऐसा करने से मासिक-धर्म खुलकर आता है।
14 से 28 मिलीलीटर बीजों का काढ़ा एक ग्राम मिर्च के चूर्ण के साथ दिन में तीन बार देने से मासिक-धर्म खुलकर आता है।
तिल, जौ और शर्करा का चूर्ण शहद में मिलाकर खिलाने से प्रसूता स्त्रियों की योनि से खून का बहना बंद हो जाता है।

3. ज्वार: ज्वार के भुट्टे को जलाकर इसकी राख को छान लें। इस राख को 3 ग्राम की मात्रा में पानी से सुबह के समय खाली पेट मासिक-धर्म चालू होने से लगभग एक सप्ताह पहले देना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

4. चौलाई: चौलाई की जड़ को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें। इसे लगभग 5 ग्राम मात्रा में सुबह के समय खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग 7 दिनों पहले सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

5. असगंध: असगंध और खाण्ड को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें, फिर इसे 10 ग्राम लेकर पानी से खाली पेट मासिक धर्म शुरू होने से लगभग 7 दिन पहले सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

6. रेवन्दचीनी: रेवन्दचीनी 3 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय खाली पेट माहवारी (मासिक धर्म) शुरू होने से लगभग 7 दिन पहले सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

7. कपूरचूरा: आधा ग्राम कपूरचूरा में मैदा मिलाकर 4 गोलियां बनाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक गोली का सेवन माहवारी शुरू होने से लगभग 4 दिन पहले स्त्री को सेवन करना चाहिए। मासिक-धर्म शुरू होने के बाद इसका सेवन नहीं करना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

8. राई: मासिक-धर्म में दर्द होता हो या स्राव कम होता हो तो गुनगुने पानी में राई के चूर्ण को मिलाकर, स्त्री को कमर तक डूबे पानी में बैठाने से लाभ होता है।

9. मूली: मूली के बीजों का चूर्ण सुबह-शाम जल के साथ 3-3 ग्राम सेवन करने से ऋतुस्राव (माहवारी) का अवरोध नष्ट होता है।

10. अडूसा (वासा): अड़ूसा के पत्ते ऋतुस्त्राव (मासिकस्राव) को नियंत्रित करते हैं। रजोरोध (मासिकस्राव अवरोध) में वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को 500 मिलीलीटर पानी में पका लें। चतुर्थाश शेष रहने पर यह काढ़ा कुछ दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है।

11. कलौंजी: 2-3 महीने तक भी मासिक-धर्म के न होने पर और पेट में भी दर्द रहने पर एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और 2 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम को खाना खाने के बाद सोते समय 30 दिनों तक पियें। नोट: इस प्रयोग के दौरान आलू और बैगन नहीं खाना चाहिए।

12. विदारीकन्द: विदारीकन्द का चूर्ण 1 चम्मच और मिश्री 1 चम्मच दोनों को पीसकर 1 चम्मच घी के साथ मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से मासिक-धर्म में अधिक खून आना बंद होता है।
विदारीकन्द के 1 चम्मच चूर्ण को घी और चीनी के साथ मिलाकर चटाने से मासिक-धर्म में अधिक खून आना बंद हो जाता है।

13. उलटकंबल: उलटकंबल की जड़ की छाल का गर्म चिकना रस 2 ग्राम की मात्रा में कुछ समय तक रोज देने से हर तरह के कष्ट से होने वाले मासिक-धर्म में लाभ मिलता है।
उलटकंबल की जड़ की छाल को 6 ग्राम लेकर 1 ग्राम कालीमिर्च के साथ पीसकर रख लें। इसे मासिक धर्म से 7 दिनों पहले से और जब तक मासिक-धर्म होता रहता है तब तक पानी के साथ लेने से मासिक-धर्म नियमित होता है। इससे बांझपन दूर होता है और गर्भाशय को शक्ति प्राप्त होती है।
अनियमित मासिक-धर्म के साथ ही, गर्भाशय, जांघ और कमर में दर्द हो तो उलटकंबल की जड़ का रस 4 ग्राम निकालकर चीनी के साथ सेवन करने से 2 दिन में ही लाभ मिलता है।
उलटकंबल की 50 ग्राम सूखी छाल को जौ कूट यानी पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें। यह काढ़ा उचित मात्रा में दिन में 3 बार लेने से कुछ ही दिनों में मासिक-धर्म नियमित समय पर होने लग जाता है। इसका प्रयोग मासिक धर्म शुरू होने से 7 दिन पहले से मासिक-धर्म आरम्भ होने तक दें।
उलटकंबल की जड़ की छाल का चूर्ण 4 ग्राम और कालीमिर्च के 7 दाने सुबह-शाम पानी के साथ मासिक-धर्म के समय 7 दिन तक सेवन करें। 2 से 4 महीनों तक यह प्रयोग करने से गर्भाशय के सभी दोष मिट जाते हैं। यह प्रदर और बन्ध्यत्व की सर्वश्रेष्ठ औषधि है।

14. अनन्नास: अनन्नास के कच्चे फलों के 10 मिलीलीटर रस में, पीपल की छाल का चूर्ण और गुड़ 1-1 ग्राम मिलाकर सेवन करने से मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है।
अनान्नास के पत्तों का काढ़ा एक चौथाई ग्राम पीने से भी मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है।

15. बथुआ: 2 चम्मच बथुआ के बीज 1 गिलास पानी में उबालें। आधा पानी बच जाने पर छानकर पीने से रुका हुआ मासिकधर्म खुलकर साफ आता है।

 चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में आयुर्वेद ही एक ऐसा शास्त्र है,जिसमें एक-एक रोग के लिए उपचार हेतु सैकड़ों औषधीय योगों (नुस्खों) का उल्लेख मिलता है। यह चिकित्सा पद्धति राजा-महाराजा,अमीर-गरीब तथा दीन-दरिद्र सभी वर्गों के लिए समान रूप से सुलभ है।

प्रस्तुत पुस्तक में अनेक रोगों में लाभकारी एवं आयुर्वेद की सरल व सहजता से उपलब्ध होने वाली औषधियों का समावेश किया गया है। इसके प्रयोग में लायी जाने वाली सामग्री एवं जड़ी-बूटियाँ तथा उनके अवयव अपने घर खेत,वनों के साथ-साथ बाजार एवं सामान्य पंसारियों की दुकान पर सस्ते दामों पर सरलता से उपलब्ध होती है।

इसमें प्रत्येक रोग प्रकरण में रोग की पहचान,उसके लक्षण,रोग पैदा होने के कारण के साथ-साथ उनका सहज उपचार,पथ्य-अपथ्य का पालन एवं बचाव सुस्पष्ट तथा सरल भाषा में बताये गये हैं।
हमें विश्वास है कि सभी आयु वर्ग के जनसामान्य चिकित्सा में अधिकाधिक लाभ प्राप्त कर नीरोग एवं सुखद जीवन जिएँगे।
प्रस्तावना

आयुर्वेद का संबंध आयु से होता है। इसके द्वारा आयु से संबंधित ज्ञान प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में-आयुर्वेद उस शास्त्र को कहते हैं, जो आयु के हिताहित, अर्थात् रोग और उसके निदान तथा शमन-विधियों का ज्ञान कराता है।
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में आयुर्वेद ही एक ऐसा शास्त्र है, जिसमें एक-एक रोग के अनुसार उपचार हेतु ऐसे सैकड़ों औषधीय योगों का उल्लेख मिलता है, जिन्हें बहुधनराशि व्यय करके तथा कौड़ियों की लागत से भी तैयार किया जा सकता है। इस प्रकार यह पद्धति राजा-महाराजा, अमीर-गरीब तथा दीन-दरिद्र आदि सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए एक समान अत्यंत उपयोगी है।

आयुर्वेदिक ग्रंथों में चरक, सुश्रुत एवं वाग्भट्ट के नाम उल्लिखित हैं, जैसे-महर्षि चरक द्वारा रचित ग्रंथ ‘चरक संहिता’, सुश्रुत द्वारा निर्मित ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ तथा वाग्भट्ट रचित ‘अष्टांग हृदय’ होते हुए भी ‘वाग्भट्ट संहिता’ के रूप में प्रसिद्ध है।
इन ग्रंथों के अतिरिक्त वंगसेन, माधवनिदान, भावप्रकाश, भैषज रत्नावली, वैद्यविनोद, चक्रदत्त, शार, वैद्यजीवन आदि हैं, जो आयुर्वेद के क्षेत्र में सहयोग प्रदान करते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में अनेक रोगों का हितकर या लाभकारी, आयुर्वेद की सरल एवं आसानी से उपलब्ध होने वाली औषधियों का समावेश किया गया है, जिनमें प्रयुक्त होनेवाले पदार्थ या वस्तु एवं सुलभ जड़ी-बूटियाँ अपने घर, खेत, बाजार एवं वनों के साथ-साथ पंसारियों की दुकान पर कम दाम में सरलता से उपलब्ध होती हैं।

इस पुस्तक में लिखे गये नुस्खों को अमीर व्यक्ति या गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी सरलता से अपना सकता है। प्रत्येक रोग प्रकरण में रोग की पहचान, किस कारण होता है, किन लक्षणों से इस रोग को जान सकें एवं उचित उपचार, पथ्य-अपथ्य का पालन और बचाव इस पुस्तक के अंग है। ये सभी घरेलू नुस्खे (योग) प्राचीन ग्रंथों के अनुसार अपने अनुभव एवं अध्ययन द्वारा रचित किए गए हैं। इसमें लिखे रोग रोजमर्रा के रोग हैं, जो सामान्य जीवन में होते रहते हैं।



पाचन संस्थान के रोग


आरोचक
पहचान

आरोचक से तात्पर्य है कि भोजन को ग्रहण करने में ही रुचि न हो या यों कहें कि भूख होते हुए भी व्यक्ति भोजन करने में असमर्थ हो, तो वह आरोचक या ‘मन न करना’ कहलाता है।
आरोचक का अर्थ सीधे-सीधे यह कह सकते हैं कि भूख लगी हो और भोजन भी स्वादिष्ट हो, फिर भी भोजन अच्छा न लगे और गले के नीचे न उतरे।

कारण

चाय-कॉफी का अधिक सेवन, विषम ज्वर (मलेरिया) के बाद, शोक, भय, अतिलोभ, क्रोध एवं गंध, छाती की जलन, मल साफ नहीं आना, कब्ज होना, बुखार होना, लीवर तथा आमाशय की खराबी आदि।

लक्षण

खून की कमी, हृदय के समीप अतिशय जलन एवं प्यास की अधिकता, गले से नीचे आहार के उतरने में असमर्थता, मुख में गरमी एवं दुर्गंध की उपस्थिति, चेहरा मलिन एवं चमकहीन, किसी कार्य की इच्छा नहीं, अल्पश्रम से थकान आना, सूखी डकारें आना, मानसिक विषमता से ग्रस्त होना, शरीर के वजन में दिन-ब-दिन कमी होते जाना, कम खाने पर भी पेट भरा प्रतीत होना।

घरेलू योग

1.    भोजन के एक घंटा पहले पंचसकार चूर्ण को एक चम्मच गरम पानी के साथ लेने से भूख खुलकर लगती है।
2.    रात में सोते समय आँवला 3 भाग, हरड़ 2 भाग तथा बहेड़ा 1 भाग-को बारीक चूर्ण करके एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लेने से सुबह दस्त साफ आता है एवं भूख खुलकर लगती है।
3.    भोजन में पतले एवं हलके व्यंजनों का प्रयोग करने से खाया हुआ जल्दी पच जाता है, जिससे जल्दी ही भूख लग जाती है।
4.    खाना खाने के बाद अजवायन का चूर्ण थोड़े से गुड़ के साथ खाकर गुनगुना पानी पीने से खाया हुआ पचेगा, भूख लगेगी और खाने में रुचि पैदा होगी।
5.    भोजन के बाद हिंग्वष्टक चूर्ण एक चम्मच खाने से पाचन-क्रिया ठीक होगी।
6.    भोजन के बाद सुबह-शाम दो-दो चम्मच झंडु पंचासव सीरप लें, इससे खाया-पिया जल्दी पच जाएगा और खाने के प्रति रुचि जाग्रत् होगी।
7.    हरे धनिए में हरी मिर्च, टमाटर, अदरक, हरा पुदीना, जीरा, हींग, नमक, काला नमक डालकर सिलबट्टे पर पीसकर बनाई चटनी खाने से भोजन की इच्छा फिर से उत्पन्न होती है।
8.    भोजन करने के बाद थोड़ा सा अनारदाना या उसके बीज के चूर्ण में काला नमक एवं थोड़ी सी मिश्री पीसकर मिलाने के बाद पानी के साथ एक चम्मच खाने से भूख बढ़ती है।
9.    एक गिलास छाछ में काला नमक, सादा नमक, पिसा जीरा मिलाकर पीने से पाचन-क्रिया तेज होकर आरोचकता दूर होती है।

आयुर्वेदिक योग

पंचारिष्ट, कुमार्यासव, पंचासव दो-दो चम्मच भोजन के  बाद पीना चाहिए। आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी या क्षुब्धानाशक वटी में से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम लें।

पथ्य

सलाद, पेय पदार्थ, छाछ, पाचक चूर्ण आदि लेना पथ्य है।

अपथ्य

चाय, कॉफी, बेसन, तेज मसाले एवं सूखी सब्जियाँ अपथ्य हैं।

बचाव

इस रोग से बचने का सबसे बढ़िया तरीका सुबह-शाम भोजन करके एक घंटा पैदल घूमना एवं सलाद तथा हरी पत्तीदार सब्जियों का प्रयोग करना है।

अग्निमांद्य
पहचान

अल्प मात्रा में लिया गया आहार भी ठीक से न पचे, मस्तक और पेट में वजन मालूम पड़े और शरीर में हड़फुटन हो तो समझिए कि अग्निमांद्य से पीड़ित हैं अर्थात् पेट में भूख की अग्नि (तड़प) मंद हो रही है या पाचन-क्रिया की गति कम हो गई है।

कारण

1.    सामान्य कारण:- अजीर्ण होने पर भी भोजन करना, परस्पर विरुद्ध आहार लेना, अपक्व (कच्चा) भोजन करना, द्रव पदार्थों का अधिक सेवन करना, ज्यादा गरम तथा ज्यादा खट्टे पदार्थों का सेवन, भोजन के बाद अथवा भोजन के बीच में पानी पीने का अभ्यास, कड़क चाय का अति सेवन आदि।
2.    विशिष्ट कारण:- खाने की नली की बनावट जन्म से ही विकृतमय होना, आँतपुच्छ में सूजन, खून की कमी, एस्प्रीन सैलीसिलेट्स आदि का अधिक सेवन।

लक्षण

इसका प्रमुख लक्षण खाने के बाद पेट भारी रहना है। मुँह सूखना, अफारा, जी मिचलाना, भोजन के प्रति अरुचि, भूख न लगना, दुर्बलता, सिर में चक्कर खाना, मुँह से धुँआँ जैसा निकलना, पसीना आना, शरीर में भारीपन होना, उलटी की इच्छा, मुँह में दुर्गंध, मुँह में पानी भर आना, खट्टी डकारें आना आदि।

घरेलू योग

1.    अग्निमांद्य में गरम पानी पीना चाहिए।
2.    भोजन करने से पहले अदरक की कतरन में सेंधा नमक डालकर चबाने से भूख खुलती है एवं अग्निमांद्य नष्ट होता है।
3.    सिरका और अदरक बराबर-बराबर मिलाकर भोजन से पहले नित्य खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
4.    घी से युक्त खिचड़ी के प्रथम निवाले के साथ हिंग्वष्टक चूर्ण खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
5.    लवणभास्कर चूर्ण को गाय के दूध की छाछ के साथ नित्य लेने से अग्निमाद्य नष्ट होता है।
6.    बथुए का रायता नित्य सेवन करने से भोजन में रुचि बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है।
7.    दोनों समय के भोजन के बीच पाँच घंटे का फासला रखकर दोपहर का भोजन 10 बजे एवं शाम का भोजन 5 बजे तक कर लें। भोजन के पहले एवं बाद में पानी नहीं पीने से खाया हजम होकर भूख खुलेगी, जिससे अग्निमांद्य दूर होगा।
8.    भोजन में कद्दू एवं लौकी का रायता खाने से खाना जल्दी पचता है।
9.    दिन भर में केवल एक बार ही भोजन करने से एवं एक समय फलाहार लेने से भी अग्निमांद्य नष्ट होता है।
10.    भूख से कम एवं खूब चबा-चबाकर खाने से भोजन जल्दी पच जाएगा एवं भूख की मंद अग्नि दूर होगी।

आयुर्वेदिक योग

1.    पंचारिष्ट या पंचासव सीरप- किसी एक की दो-दो चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद लें।
2.    आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी, गैसेक्स, यूनीइंजाम-इनमें से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम छाछ के साथ लें।
3.    लवणभास्कर चूर्ण, पंचसकार चूर्ण, हिंग्वष्टक चूर्ण में से कोई भी एक चम्मच पाचक चूर्ण गरम पानी के साथ लें।

पथ्य

सलाद, छाछ, खिचड़ी, हरी सब्जियाँ एवं रसेदार पदार्थ खाना पथ्य है।

अपथ्य

भूख नहीं लगने पर भी भोजन करना, चाय-कॉफी अधिक मात्रा में लेना, बासी खाना अपथ्य है।

बचाव

भोजन करके दिन या रात में तुरंत नहीं सोना चाहिए।

अम्लपित्त
पहचान

अम्लपित्त से आशय ‘आहार-नली एवं आमाशय में तीव्र जलन’ होता है। यह जलन खाना पचने के बाद महसूस होती है। अम्लपित्त का सीधा सा अर्थ है-हृदय प्रदेश में जलन। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे पेट में जलन या गले की नार (नली) जलना कहते हैं। अंग्रेजी में इसे ‘एसीडिटी’ कहते हैं।

कारण

अधिक मात्रा में मिर्च-मसाले खाना, चाय-कॉफी का अधिक सेवन करना, आमाशय (खाने की थैली) में छाले होना, ज्यादा गरम एवं गरिष्ठ वस्तुओं का ज्यादा प्रयोग करना; बेसन चिकने एवं मीठे या वातकारक खाद्य पदार्थों का सेवन करना, शराब एवं मांस-मछली का नित्य सेवन करना।

लक्षण

इस रोग का सबसे प्रमुख लक्षण छाती में जलन होती है, जिसे अपने आप महसूस किया जाता है। अन्य कारणों में रात में सोते समय जलन के कारण अचानक नींद खुलना, हृदय प्रदेश में जलन, जी मिचलाना, खारा पानी मुँह में आना, भोजन पचते ही जलन प्रारंभ होना, पेट में गुड़गुड़ाहट मालूम होना, कभी-कभी दस्त लगना, जलन के कारण आमाशय में मरोड़ आना, आमाशय में दर्द मालूम होना आदि।

घरेलू योग

1.    निसौत एवं आँवला शहद के साथ चाटें तो अम्लपित्त मिट जाएगा।
2.    मैनफल एवं सेंधा नमक शहद के साथ चाटने से उलटी होगी, जिससे अम्लपित्त दब जाएगा।
3.    विरेचन देने से अम्लपित्त दब जाता है।
4.    जौ, गेहूँ या चावल का सत्तू मिश्री के साथ सेवन करें तो अम्लपित्त शांत होगा।
5.    भोजन के पश्चात् आँवले का रस पीने से अम्लपित्त शांत होता है।
6.    जौ, अडूसा, आँवला, तज, पत्रज और इलायची का काढ़ा शहद के साथ पिएँ तो अम्लपित्त दूर होगा।
7.    गुर्च, निंबछाल एवं पटोल का काढ़ा मधु (शहद) के साथ पिएँ तो अम्लपित्त दूर होगा।
8.    अडूसा, गुर्च, पित्तपापड़ा, चिरायता, नीम की छाल, जलभांगरा, त्रिफला और कुलथी के काढ़े में शहद डालकर पिएँ, अम्लपित्त दूर होगा।
9.    द्राक्षादिगुटिका की एक गोली नित्य खाने से अम्लपित्त रोग दूर हो जाता है।
10.     8 ग्राम अविपतिक चूर्ण का सेवन ठंडे पानी के साथ करने से अम्लपित्त रोग दूर होता है।
11.    सुत शेखर रस या आमदोषांतक कैप्सूल की दो-दो की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से अम्लपित्त रोग नष्ट होता है।
12.    कामसुधा रस की दो-दो गोली नित्य लेने से अम्लपित्त दूर होगा।

पथ्य

शहद, केला, अदरक, धनिया आदि पथ्य हैं।

अपथ्य

तली वस्तुएँ, वातकारक पदार्थ एवं मांस-मछली अपथ्य हैं।

संग्रहणी
पहचान

मंदाग्नि के कारण भोजन न पचने पर अजीर्ण होकर दस्त लगते लगते हैं तो यही दस्त संग्रहणी कहलाती है। अर्थात् खाना खाने के बाद तुरंत ही शौच होना या खाने के बाद थोड़ी देर में अधपचा या अपरिपक्व मल निकलना संग्रहणी कही जाती है। इस रोग के कारण अन्न कभी पचकर, कभी बिना पचे, कभी पतला, कभी गाढ़ा कष्ट या दुर्गंध के साथ शौच के रूप में निकलता है। शरीर में दुर्बलता आ जाती है।

कारण

इस रोग का प्रमुख कारण विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, सी एवं कैल्सियम की कमी होना है।
वातज संग्रहणी:- जो मनुष्य वातज पदार्थों का भक्षण करे, मिथ्या आहार-विहार करे और अति मैथुन करे तो बादी कुपित होकर जठराग्नि को बिगाड़ देती है। तब वातज संग्रहणी उत्पन्न होती है।
पित्तज संग्रहणी:- जो पुरुष गरम वस्तु का सेवन अधिक करे, मिर्च आदि तीक्ष्ण, खट्टे और खारे पदार्थ खाए तो उसका पित्त दूषित होकर जठराग्नि को बुझा देता है। उसका कच्चा मल निकलने लगता है तब पित्तज संग्रहणी होती है।
कफज संग्रहणी:- जो पुरुष भारी, चिकनी व शीतल वस्तु खाते हैं तथा भोजन करके सो जाते हैं, उस पुरुष का कफ कुपित होकर जठराग्नि को नष्ट कर देता है।

लक्षण

वातज:- खाया हुआ आहार कष्ट से पचे, कंठ सूखे, भूख न लगे, प्यास अधिक लगे, कानों में भन-भन होना, जाँघों व नाभि में पीड़ा होना आदि।
पित्तज:- कच्चा मल निकले, पीले वर्ण का पानी मल सहित गुदाद्वार से निकलना और खट्टी डकारें आना।
कफज:- अन्न कष्ट से पचे, हृदय में पीड़ा, वमन और अरुचि हो, मुँह मीठा रहे, खाँसी, पीनस, गरिष्ठता और मीठी डकारें आना।

घरेलू योग

1.    सोंठ, पीपल, पीपलामूल, चव्य एवं चित्रक का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पिएँ, ऊपर से दो-चार बार और भी छाछ पिएँ तो वात संग्रहणी दूर होगी।
2.    8 ग्राम शुद्ध गंधक, 4 ग्राम शुद्ध पारद की कजली, 10 ग्राम सोंठ, 8 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम पीपली, 10 ग्राम पांचों नमक, 20 ग्राम सेंकी हुई अजवायन, 20 ग्राम भूनी हुई हींग, 24 ग्राम सेंका सुहागा और एक पैसे भर भुनी हुई भाँग-इन सबको पीसकर-छानकर कजली मिला दें। उसके बाद इसे दो दिन बाद भी पीसें तो चूर्ण बन जाए। यह 2 या 4 ग्राम चूर्ण गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पीने से वात संग्रहणी मिटती है।
3.    जायफल, चित्रक, श्वेत चंदन, वायविडंग, इलायची, भीमसेनी कपूर, वंशलोचन, जीरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपली, तगर, पत्रज और लवंग बराबर-बराबर लेकर चूर्ण बनाकर इन सबके चूर्ण से दुगुनी मिश्री और थोड़ी बिना सेंकी भाँग-ये सब मिलाकर इसमें से 4 या 6 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिनों तक सेवन करें तो पित्त संग्रहणी दूर होगी।
4.    रसोत, अतीस, इंद्रयव, तज, धावड़े के फूल सबका 8 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ या चावल के पानी के साथ पंद्रह दिनों तक लें तो पित्त संग्रहणी नष्ट होगी।
5.    हरड़ की छाल, पिप्पली, सोंठ, चित्रक, सेंधा नमक और काली मिर्च का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिन तक सेवन करें तो कफ संग्रहणी दूर होगी।

आयुर्वेदिक योग

अभ्रक गुटिका, संग्रहणी कटक रस, हिमालय की डॉयरेक्स-इनमें से किसी एक की दो-दो गोली सुबह-शाम छाछ के साथ लें।

पथ्य

संग्रहणी के रोगी को हमेशा हलका एवं पाचक भोजन ही करना चाहिए।

अपथ्य

भारी, आमोत्पादक, क्षुधानाशक, चिकना पदार्थ, अधिक परिश्रम अति मैथुन और चिंता से दूर रहे।

अष्टवर्ग
जब अपने जीवन के ७५ वर्ष कठोर तप और ब्रम्हचर्य का पालन कर ऋषि च्यवन जो भृगु ऋषि की के वंशज थे ; ने पितृ ऋण को चुकाने के लिए उत्तम संतान पाने की सोची तो पाया की उनकी काया तो वृद्ध , जर्जर और कृशकाय हो चुकी है . तब अश्विनी कुमारों ने उनकी मदद के लिए दिव्य जड़ी बूटी युक्त च्यवनप्राश बनाया ; जिसका सेवन कर ऋषि च्यवन ने फिर दिव्य काया प्राप्त की .इस में करीब ४३ तत्व होते है जिसमे से एक प्रमुख है --अष्टवर्ग की बूटियाँ .वर्त्तमान में च्यवनप्राश के बढ़िया से बढ़िया नमूनों में ,अष्ट वर्गीय पौधों की केवल चार जातियों --वृद्धि , मेधा , काकोली और जीवक का ही उपयोग किया जाता है ;शेष चार का नहीं .इसके नाम है --ऋद्धि , वृद्धि , जीवक , ऋषभक , काकोली , क्षीरकाकोली , मेदा , महामेदा .ये सभी बहुत सुन्दर है और हिमालय के ऊँचे पहाड़ों में ही मिलती है .पतंजलि योग पीठ के दिव्य स्पेशल च्यवनप्राश में इनको भी डाला गया है . ये जीवनीय --अर्थात जीवन या प्राण शक्ति को बढाने वाली , बृहंणीय--अर्थात मेद वृद्धि या मांस धातु को बढाने वाली ,और वयः स्थापन ---अर्थात वृद्धा वस्था की प्रक्रिया को रोक या बहुत धीमी करने वाले है .
क्योंकि पुराने ज़माने में आयुर्वेद की शिक्षा में विद्यार्थी जंगलों में ही रह कर गुरु के साथ असली जड़ी बूटियाँ देखते थे , इसलिए प्राचीन ग्रंथों में इनकी पहचान नहीं लिखी है .इसके अलावा इसके कई और नाम रखे गए और कई वैद्य इन्हें गुप्त रखते थे इन सब कारणों से इनका पता लगाना मुश्किल था .शालिग्राम निघंटु भूषण में लिखा है की अष्टवर्ग के पौधे राजाओं के लिए भी दुर्लभ है इसलिए उनकी जगह प्रतिनिधि पौधों का प्रयोग कर लेना चाहिए .इससे बहुत भ्रम पैदा हुए .पर आचार्य बाल कृष्ण जी ने हिमाचल ,उत्तरांचल में पहाड़ों जैसे चूरधार,शालिचोती , कामरूनाग , औली , रैनथल , गंगोत्री , यमुनोत्री , हेमकुंड में इनकी खोज की .क्षीर काकोली का एक भी पौधा ३ -४ वर्षों तक नहीं मिल पाया क्योंकि इसका अलग अलग पुस्तकों में अलग अलग वर्णन है .इसमें आचार्य बालकृष्ण जी की मदद डॉ जी .एस . गोराया ,वन रक्षक ,और श्री मेला राम शर्मा और कई अन्य लोगों ने की .
इनमे से कई लुप्त होने की कगार पर है . इसलिए सरकार को इन्हें टिशु कल्चर से बचाने और बढाने का प्रयत्न करना चाहिए . क्योंकि ये एच आई वी और एड्स जैसी लाइलाज बीमारियों में भी काम आ सकते है .

 मेथी

डाइबिटीज व मधुमेह
आयुर्वेद के अनुसार डाइबिटीज व मधुमेह में मेथी का सेवन बहुत लाभदायक माना गया है। मेथी को भारतभर में आमतौर पर सेवन किया जाता है। यदि मेथी की सब्जी लोहे की कढ़ाही में बनायी गई तो इसमें लौह तत्व ज्यादा बढ़ जाती है। एनीमिया यानी खून की कमी के रोगियों को यह बहुत फायदेमंद है।

किसी भी व्यक्ति की कैल्सियम की दिनभर की जरूरत 400 मि. ग्राम कैल्सियम मिल जाता है। विटामिन ए और सी भी मेथी में खूब रहता है। ये दोनों विटामिन मेथी दानों की तुलना में मेथी की सब्जी में ज्यादा होते है। साधारण मेथी चम्पा व कसूरी मेथी। मेथी व मेथी दाना डाइबिटीज रोगियों के लिए बहुत अधिक लाभदायक है।

यदि दिनभर में 25 से 100 ग्राम तक मेथी दाने किसी भी रूप में सेवन कर लिया जाए तो रक्त शुगर की मात्रा के साथ बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रोल भी धीरे-धीरे कम होने लगता है। रोगी राहत महसूस करता रहता है। पीसे हुए मेथी दाने 50 से 60 ग्राम मात्रा को एक ग्लास पानी में भिगो दें। 12 घंटे बाद छानकर पीएं। इस तरह से सुबह-शाम रोज दो बार पीते रहने से मधुमेह में आराम मिलता है। इसके अलावा मेथी के पत्तों की सब्जी भी खाएं।

मेथी बहुत ही कारगर औषधि है।
इसके साथ ही यह पाचन शक्ति और
भूख बढ़ाने में मदद करती है।

अन्य गुणों में बारे में जानिए।

बदहजमी/अपच : घरेलू उपचार में
मेथी दाना बहुत उपयोगी होता है।
आधा चम्मच मेथी दाना को पानी के
साथ निगलने से अपच
की समस्या दूर होती है।


साइटिका व कमर का दर्द : आयुर्वेदिक चिकित्सकों के
अनुसार मेथी के बीज आर्थराइटिस
और सााइटिका के दर्द से निजात
दिलाने में मदद करते हैं। इसके लिए
1 ग्राम मेथी दाना पाउडर और सोंठ
पाउडर को थोड़े से गर्म पानी के साथ दिन में दो-तीन बार लेने से लाभ
होता है।


डायबिटीज : इस रोग से दूर रहने के
लिए प्रतिदिन 1 टी स्पून
मेथी दाना पाउडर पानी के साथ
फांकें। इसके अलावा एक टी स्पून मेथी दाना को एक कप पानी में
भिगो कर रात भर के लिए छोड़ दें।
सुबह इसका पानी पिएं। इससे सीरम
लिपिड लेवल कम होता और वजन
भी संतुलित रहता है।



उच्च रक्तचाप : 5-5 ग्राम मेथी और सोया के दाने पीसकर सुबह-शाम
पीने से ब्लड प्रेशर संतुलित रहता है।

न्यूट्रीशनल वैल्यू चार्ट
प्रति 100 ग्राम मेथी दाना में


आर्द्र ता - 13.70

ग्राम
प्रोटीन - 26.20

ग्राम
वसा - 5.80

ग्राम
मिनरल्स - 3.0

ग्राम
फाइबर - 7.20

ग्राम कार्बोहाइड्रेट - 44.1

ग्राम
एनर्जी - 333.0 किलो

कैलरी
कैल्शियम - 160.0

मिग्रा.
फास्फोरस - 370.0

मिग्रा.
आयरन - 6.50

मिग्रा. मेथी घर-घर में सदियों से
अपना स्थान बनाए हुए है। खास तौर
पर इसका प्रयोग मसालों में
किया जाता है। इसके बीजों में
फॉस्फेट, लेसिथिन और
न्यूक्लिओ-अलब्यूमिन होने से ये कॉड लिवर ऑयल जैसे पोषक और
बल प्रदान करने वाले होते हैं। इसमें
फोलिक एसिड, मैग्नीशियम,
सोडियम, जिंक, कॉपर,
नियासिन, थियामिन, कैरोटीन
आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं।

मेथी का प्रयोग स्वाद बढ़ाने के
लिए ही नहीं बल्कि सौंदर्य बढ़ाने
के लिए भी किया जाता है। मेथी में
कैंसर रोधक तत्व भी पाए जाते हैं।
इसका उपयोग डायबिटीज, हाई
ब्लड प्रेशर और पेट संबंधी समस्या में फायदेमंद होता है।


चाय



सुप्रभात
- सुबह उठ कर २ से ४ ग्लास पानी पीना चाहिए . इसके साथ अपनी प्रकृति के
अनुसार कोई ना कोई आयुर्वेदिक औषधि लेनी चाहिए . वात या पित्त प्रवृत्ति
के लोगों को आंवला , एलो वेरा , या बेल पत्र या नीम पत्र या वात
प्रवृत्ति वालों को मेथी दाना (भिगोया हुआ ); थायरोइड के मरीजों को
भिगोया हुआ धनिया , कफ प्रवृत्ति के लोगों को तुलसी , कम रोग प्रतिरोधक
क्षमता वालों को गिलोय घनवटी . इस प्रकार से रूटीन बना ले .
- खाली पेट चाय पीने से एसिडिटी की समस्या बढ़ सकती है .
- चाय का पानी उबालते समय उसमे ऋतू अनुसार कोई ना कोई जड़ी बूटी अवश्य
डाले .अदरक चाय के बुरे गुणों को कम करता है .
- सुबह घुमने जाते समय अपने आस पास के वृक्षों और पौधों पर नज़र डाले .
इनका आयुर्वेदिक महत्त्व समझे और इसके बारे में जानकारी फैलाइए . ताकि
लोग इन्हें संरक्षण दे और काटे नहीं .इसमें कोई ना कोई जड़ी बूटी अपनी चाय
के लिए चुन ले .
- हार्ट के मरीजों को अर्जुन की छाल चाय में डालनी चाहिए
- शकर जितनी कम डालेंगे हमारी आदत सुधरती जायेगी और मोटापा कम होता जाएगा .
- सफ़ेद शकर की जगह मधुरम का प्रयोग करे .
- चाय में तुलसी , इलायची , लेमन ग्रास , अश्वगंधा या दालचीनी डाली जा सकती है .
- चाय के पानी में थोड़ी देर दिव्य पेय डाल कर उबाले .
- राजीव भाई ने बताया था के वाग्भट के अष्टांग हृदयम में बताये गए
सूत्रों के अनुसार दूध सुबह नहीं लिया जाना चाहिए पर ये काढ़े के साथ
लिया जा सकता है . अगर हम चाय के पानी में दिव्य पेय या कोई भी जड़ी बूटी
डाल कर ५-१० मी . उबाल ले तो ये एक काढा ही तैयार हो जाएगा . अब इसमें
हम दूध डाल के ले सकते है .
- जो बच्चें मौसम बदलने पर बार बार बीमार पड़ते है उन्हें रोज़ थोड़ी चाय
(जड़ी बूटी वाली ) दी जानी चाहिए .पेट गड़बड़ होने पर भी बच्चों को चाय
देनी चाहिए .
- चाय के साथ कोई नमकीन पदार्थ ना ले क्योंकि इसमें दूध होता है जिसके
साथ अगर नमक लिया जाए तो ये ज़हर पैदा करता है जिससे त्वचा रोग भी हो सकते
है .
- चाय कम स्ट्रोंग पीनी चाहिए .
- दिन में २ कप से अधिक चाय कभी ना ले .


 नीम
नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम जो प्रायः सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है।
• नीम के पेड़ पूरे भारत में फैले हैं और हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं। नीम एक बहुत ही अच्छी वनस्पति है जो कि भारतीय पर्यावरण के अनुकूल है और भारत में बहुतायत में पाया जाता है। भारत में इसके औषधीय गुणों की जानकारी हज़ारों सालों से रही है।
• भारत में एक कहावत प्रचलित है कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं, वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है। लेकिन, अब अन्य देश भी इसके गुणों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। नीम हमारे लिए अति विशिष्ट व पूजनीय वृक्ष है। नीम को संस्कृत में निम्ब, वनस्पति विज्ञान में 'आज़ादिरेक्ता- इण्डिका (Azadirecta-indica) अथवा Melia azadirachta कहते है।
गुण
यह वृक्ष अपने औषधि गुण के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। नीम स्वाभाव से कड़वा जरुर होता है, परन्तु इसके औषधीय गुण बड़े ही मीठे होते है। तभी तो नीम के बारे में कहा जाता है की एक नीम और सौ हकीम दोनों बराबर है। इसमें कई तरह के कड़वे परन्तु स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ होते है, जिनमे मार्गोसिं, निम्बिडीन, निम्बेस्टेरोल प्रमुख है। नीम के सर्वरोगहारी गुणों से भरा पड़ा है। यह हर्बल ओरगेनिक पेस्टिसाइड साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, दातुन, मधुमेह नाशक चूर्ण, कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। नीम की छाल में ऐसे गुण होते हैं, जो दाँतों और मसूढ़ों में लगने वाले तरह-तरह के बैक्टीरिया को पनपने नहीं देते हैं, जिससे दाँत स्वस्थ व मज़बूत रहते हैं।
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इसे ग्रामीण औषधालय का नाम भी दिया गया है। यह पेड़ बीमारियों वगैरह से आज़ाद होता है और उस पर कोई कीड़ा-मकौड़ा नहीं लगता, इसलिए नीम को आज़ाद पेड़ कहा जाता है। [1]भारत में नीम का पेड़ ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग रहा है। लोग इसकी छाया में बैठने का सुख तो उठाते ही हैं, साथ ही इसके पत्तों, निबौलियों, डंडियों और छाल को विभिन्न बीमारियाँ दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं। ग्रन्थ में नीम के गुण के बारे में चर्चा इस तरह है :-
निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत।
अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥
अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।[2]
घरेलू उपयोग
नीम के वृक्ष की ठंण्डी छाया गर्मी से राहत देती है तो पत्ते फल-फूल, छाल का उपयोग घरेलू रोगों में किया जाता है, नीम के औषधीय गुणों को घरेलू नुस्खों में उपयोग कर स्वस्थ व निरोगी बना जा सकता है। इसका स्वाद तो कड़वा होता है, लेकिन इसके फ़ायदे तो अनेक और बहुत प्रभावशाली हैं और उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :--

• नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है।
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
• चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है।
• नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें।
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं।
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है।
• निबोरी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है।
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते।
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है।
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।
• विदेशों में नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो मधुमेह से लेकर एड्स, कैंसर और न जाने किस-किस तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है।  


जौ

हमारे ऋषियों-मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था। वेदों द्वारा यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। जौ को भूनकर, पीसकर, उस आटे में थोड़ा-सा नमक और पानी मिलाने पर सत्तू बनता है। कुछ लोग सत्तू में नमक के स्थान पर गुड़ डालते हैं व सत्तू में घी और शक्कर मिलाकर भी खाया जाता है। गेंहू , जौ और चने को बराबर मात्रा में पीसकर आटा बनाने से मोटापा कम होता है और ये बहुत पौष्टिक भी होता है .राजस्थान में भीषण गर्मी से निजात पाने के लिए सुबह सुबह जौ की राबड़ी का सेवन किया जाता है .

अगर आपको ब्लड प्रेशर की शिकायत है और आपका पारा तुरंत चढ़ता है तो फिर जौ को दवा की तरह खाएँ। हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जौ से ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है।कच्चा या पकाया हुआ जौ नहीं बल्कि पके हुए जौ का छिलका ब्लड प्रेशर से बहुत ही कारगर तरीके से लड़ता है।

यह नाइट्रिक ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे रसायनिक पदार्थे के निर्माण को बढ़ा देता है और उनसे खून की नसें तनाव मुक्त हो जाती हैं।

उत्तर प्रदेश के फैजाबाद स्थित नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने इस नयी किस्म नरेंद्र जौ अथवा उपासना को विकसित किया है और हाल ही में उत्तर भारत के किसानों के लिए जारी किया गया है। नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉक्टर सियाराम विश्वकर्मा ने बताया कि इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह छिलका रहित है। उपासना में बीटाग्लूकोन ग्लूटेन की कम मात्रा सुपाच्य रेशो एसिटिल कोलाइन (कार्बोहाइड्रेट पदार्थ) पाया जाता है।

इसमें फोलिक विटामिन भी पाया जाता है। यही कारण है कि इसके सेवन से रक्तचाप मधुमेह पेट एवं मूष संबंधी बीमारी गुर्दे की पथरी याद्दाश्त की समस्या आदि से निजात दिलाता है।

इसमें एंटी कोलेस्ट्रॉल तत्व भी पाया जाता है।

यह उत्तर भारत के मैदानी इलाकों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और गुजरात की एक महत्वपूर्ण रबी फसल है।

इसका उपयोग औषधि के रूप मे किया जा सकता है । जौ के निम्न औषधीय गुण है :

- कंठ माला- जौ के आटे में धनिये की हरी पत्तियों का रस मिलाकर रोगी स्थान पर लगाने से कंठ माला ठीक हो जाती है।
- मधुमेह (डायबटीज)- छिलका रहित जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दूध व घी के साथ दलिया का सेवन पथ्यपूर्वक कुछ दिनों तक लगातार करते करते रहने से मधूमेह की व्याधि से छूटकारा पाया जा सकता है।
- जलन- गर्मी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग सी निकलती हो तो जौ का सत्तू खाने चाहिये। यह गर्मी को शान्त करके ठंडक पहूचाता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
- मूत्रावरोध- जौ का दलिया दूध के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बन्धि अनेक विकार समाप्त हो जाते है।
- गले की सूजन- थोड़ा सा जौ कूट कर पानी में भिगो दें। कुछ समय के बाद पानी निथर जाने पर उसे गरम करके उसके कूल्ले करे। इससे शीघ्र ही गले की सूजन दूर हो जायेगी।
- ज्वर- अधपके या कच्चे जौ (खेत में पूर्णतः न पके ) को कूटकर दूध में पकाकर उसमें जौ का सत्तू मिश्री, घी शहद तथा थोड़ा सा दूघ और मिलाकर पीने से ज्वर की गर्मी शांत हो जाती है।
- मस्तिष्क का प्रहार- जौ का आटा पानी में घोलकर मस्तक पर लेप करने से मस्तिष्क की पित्त के कारण हूई पीड़ा शांत हो जाती है।
- अतिसार- जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आंतों की गर्मी शांत हो जाती है। यह सूप लघू, पाचक एंव संग्राही होने से उरःक्षत में होने वाले अतिसार (पतले दस्त) या राजयक्ष्मा (टी. बी.) में हितकर होता है।
- मोटापा बढ़ाने के लिये- जौ को पानी भीगोकर, कूटकर, छिलका रहित करके उसे दूध में खीर की भांति पकाकर सेवन करने से शरीर पर्यात हूष्ट पुष्ट और मोटा हो जाता है।
- धातु-पुष्टिकर योग- छिलके रहित जौ, गेहू और उड़द समान मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण में चार गुना गाय का दूध लेकर उसमे इस लुगदी को डालकर धीमी अग्नि पर पकायें। गाढ़ा हो जाने पर देशी घी डालकर भून लें। तत्पश्चात् चीनी मिलाकर लड्डू या चीनी की चाशनी मिलाकर पाक जमा लें। मात्रा 10 से 50 ग्राम। यह पाक चीनी व पीतल-चूर्ण मिलाकर गरम गाय के दूध के साथ प्रातःकाल कुछ दिनों तक नियमित लेने से धातु सम्बन्धी अनेक दोष समाप्त हो जाते हैं ।
- पथरी- जौ का पानी पीने से पथरी निकल जायेगी। पथरी के रोगी जौ से बने पदार्थ लें।
- गर्भपात- जौ का छना आटा, तिल तथा चीनी-तीनों सममात्रा में लेकर महीन पीस लें। उसमें शहद मिलाकर चाटें।
- कर्ण शोध व पित्त- पित्त की सूजन अथवा कान की सूजन होने पर जौ के आटे में ईसबगोल की भूसी व सिरका मिलाकर लेप करना लाभप्रद रहता है।
- आग से जलना- तिल के तेल में जौ के दानों को भूनकर जला लें। तत्पश्चात् पीसकर जलने से उत्पन्न हुए घाव या छालों पर इसे लगायें, आराम हो जायेगा। अथवा जौ के दाने अग्नि में जलाकर पीस लें। वह भस्म तिल के तेल में मिलाकर रोगी स्थान पर लगानी चाहियें।
- जौ की राख को शहद के साथ चाताने से खांसी ठीक हो जाती है |
- जौ की राख को पानी में खूब उबालने से यवक्षार बनता है जो किडनी को ठीक कर देता है |


उत्तर भारत में पारा ४७ डीग्री पार कर रहा है और लू से झुलस रहा है . लू लगने पर क्या घरेलु नुस्खे अपनाए .......

- सौंफ का रस छह छोटे चम्मच, दो बूंद पुदीने का रस और दो चम्मच ग्लूकोज पाउडर करीब एक-एक घंटे बाद देते रहें।

- जटा वाले नारियल की गिरी को पीसकर दूध निकाल लें। उसे काले जीरे के साथ पीसकर शरीर पर पैक की तरह लगाएं।

- नीम का पंचांग लेकर उसके 10 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर एक-एक घंटे बाद पानी से दें।

- ताजे प्याज के रस को छाती पर मलने से भी लू का असर कम होता है।


वट वृक्ष या बरगद --
वट वृक्ष हमारे धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है . यह पर्यावरण की दृष्टी से भी महत्वपूर्ण है . इसकी जड़ें मिटटी को पकड़ के रखती है और पत्तियाँ हवा को शुद्ध करती है .यह कफ पित्त नाशक ,रक्त शोधक ,गर्भाशय शोधक और शोथहर है .
- इसके पत्तों और जटाओं को पीसकर लेप लगाना त्वचा के लिए लाभकारी है .
- इसके दूध की कुछ बुँदे सरसों के तेल में मिलाकर कान में डालने से कान की फुंसी नष्ट हो जाती है .
- इसके पत्तों की राख को अलसी के तेल में मिला कर लगाने से सर के बाल उग आते है .
- इसके कोमल पत्तों को तेल में पकाकर लगाने से सभी केश के विकार दूर होते है .
- दांत के दर्द में इसका दूध लगाने से दर्द दूर हो जाता है और दुर्गन्ध दूर हो कर दांत ठीक हो जाता है और कीड़े नष्ट हो जाते है .यदि दांत निकालना हो तो इसका दूध लगाकर आसानी से दांत निकाला जा सकता है .
- बड़ की जटा और छाल का चूर्ण दन्त मंजन में इस्तेमाल किया जा सकता है .
- इसके दूध की २-२ बूँद आँख में डालने से आँख का जाला कटता है .
- पत्तों पर घी लगा कर बाँधने से सुजन दूर हो जाती है .
- जले हुए स्थान पर इसके कोमल पत्तों को पीसकर दही में मिलाकर लगाने से शान्ति प्राप्त होती है .
- बड का दूध लगाने से यदि गाँठ पकने वाली नहीं है तो बैठ जाती है और यदि फूटने वाली है तो शीघ्र पक कर फूट जाती है . यही दूध लगाते रहने से गाँठ का घाव भी भर जाता है .
- अधिक देर पानी में रहने से त्वचा पर होने वाले घाव बड के दूध से ठीक हो जाते है .
- फोड़े फुंसियों पर पत्तों को गरम कर बाँधने से शीघ्र ही पक कर फूट जाते है .
- यदि घाव ऐसा हो जिसमे टाँके लगाने की ज़रुरत हो तो घाव का मुख मिलाकर बड के पत्ते को गरम कर घाव के ऊपर रख कर कस के पट्टी बाँध दे .३ दिन में घाव भर जाएगा .३ दिन तक पट्टी खोले नहीं .
- इसके पत्तों की भस्म में मोम और घी मिला कर मरहम बनता है जो घावो में लगाने से शीघ्र लाभ होता है .
- इसकी छाल को छाया में सुखाकर , इसके चूर्ण का सेवन मिश्री और गाय के दूध के साथ करने से स्मरण शक्ति बढती है .
- इसके फल बलवर्धक होते है .
- पुष्य नक्षत्र और शुक्ल पक्ष में लाये हुए कोमल पत्तों का चूर्ण का सेवन प्रातः सेवन करने से स्त्री अवश्य गर्भ धारण करती है .
- इसकी छाल और जटा के चूर्ण का काढा मधुमेह में लाभ देता है .
- इसके दूध को नाभि में लगाने से अतिसार ( डायरिया ) में लाभ होता है .
- छाल के काढ़े में गाय का घी और खांड मिला कर पीने से बादी बवासीर में लाभ होगा .
- जटा का चूर्ण लस्सी के साथ पीने से नकसीर में लाभ होता है .
- इसके दूध का लेप गंडमाल पर किया जाता है .
- इसके और कई प्रयोग है जो अन्य गंभीर रोगों में लाभ देते है पर कुशल वैद्य की देखरेख में ,उनकी सलाह से करने चाहिए 


दूब या दुर्वा

यह घास एक बार लगा दी तो ज़्यादा देखभाल नहीं मांगती और कठिन से कठिन परिस्थिति में भी आराम से बढती है . इसमें कीड़े भी नहीं लगते ..इसलिए लॉन में कोई अन्य घास लगा कर दुर्वा ही लगाना चाहिए .कहा जाता है की यह समुद्र मंथन से मिली थी , अतः यह लक्ष्मी जी की छोटी बहन है . दूर्वा गणेश जी को प्रिय है और गौरा माँ को भी . वाल्मिकी रामायण में श्री राम जी का रंग दुर्वा की तरह बताया गया है .
- इस पर नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है .
- यह शीतल और पित्त को शांत करने वाली है .
- दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है . इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है .
- नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है .
- दूब के काढ़े से कुल्ले करने से मूंह के छाले मिट जाते है .
- दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन (उल्टी ) ठीक हो जाता है .
- दूब का रस दस्त में लाभकारी है .
- यह रक्त स्त्राव , गर्भपात को रोकता है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करता है .
- कुँए वाली दूब पीसकर मिश्री के साथ लेने से पथरी में लाभ होता है .
- इसे पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है .
- दूब की जड़ का काढा वेदना नाशक और मूत्रल होता है .
- दूब के रस को तेल में पका कर लगाने से दाद , खुजली और व्रण मिटते है .
- दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में २-३ बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है .
- दूब के रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते है ,बैठा हुआ तालू ऊपर चढ़ जाता है .


.कड़ी पत्ता या मीठी नीम
अक्सर हम भोजन में से कढ़ी पत्ता निकाल कर अलग कर देते है . इससे हमें उसकी खुशबु तो मिलती है पर उसके गुणों का लाभ नहीं मिल पाता . कढ़ी पत्ते को धो कर छाया में सुखा कर उसका पावडर इस्तेमाल करने से बच्चे और बड़े भी भी इसे आसानी से खा लेते है .इस पावडर को हम छाछ और निम्बू पानी में भी मिला सकते है .इसे हम मसालों में , भेल में भी डाल सकते है .इसकी छाल भी औषधि है . हमें अपने घरों में इसका पौधा लगाना चाहिए और पड़ोसियों को भी इसका लाभ उठाने देना चाहिए . इससे कुछ अच्छा कार्य आपके खाते में जमा होगा .
- पाचन के लिए अच्छा ,डायरिया , डिसेंट्री,पाइल्स , मन्दाग्नि में लाभकारी . मृदु रेचक .
- बालों के लिए बहुत उत्तम टॉनिक -सफ़ेद होने से और झड़ने से रोकता है .
- इसके पत्तों का पेस्ट बालों में लगाने से जुओं से छुटकारा मिलता है .
- पेन्क्रीआज़ के बीटा सेल्स को एक्टिवेट कर मधुमेह को नियंत्रित करता है .
- हरे पत्ते होने से आयरन , जिंक ,कॉपर , केल्शियम ,विटामिन ए और बी , अमीनो एसिड ,फोलिक एसिड आदि तो इसमें होता ही है .
- इसमें एंटी ओक्सीडेंट होते है जो बुढापे को दूर रखते है और केंसर कोशिकाओं को बढ़ने नहीं देते .
- जले और कटे स्थान पर लगाने से लाभ होता है .
- जहरीले कीड़े काटने पर इसके फलों के रस को निम्बू के रस के साथ मिलाकर लगाने से लाभ होता है .
- किडनी के लिए लाभकारी
- आँखों की बीमारियों में लाभकारी .इसमें मौजूद एंटी ओक्सीडेंट केटरेक्ट को शुरू होने से रोकते है .यह नेत्र ज्योति को बढाता है .
- यह कोलेस्ट्रोल कम करता है .
- यह इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करता है .
- वजन कम करने के लिए रोजाना कुछ मीठी नीम की पत्तियाँ चबाये


केशतेल -
- बचपन में हम कफ के प्रभाव में होते है और कफ तत्व का अंग है सर . कफ बिगड़ ना जाए इसलिए आवश्यक है की बच्चों के बालों और कान में समय समय पर तेल लगाया जाए .
- कफ बिगड़ जाने से बच्चें ठीक से पढ़ नहीं पाते और चिडचिडे , जिद्दी और हिंसक तक हो सकते है .
- स्कुल जाने से पहले सर में तेल लगाने से दिमाग शांत रहेगा और पढ़ाई अच्छे से हो पाएगी .
- तेल रिफाइंड ना हो. बाज़ार में मौजूद नारियल तेल जैसे पेराशूट रिफाइंड होते है . इनके सभी पोषक तत्व रिफाइन करने के दौरान निकल जाते है इसलिए इसका कोई असर नहीं होता .
- पतंजलि का तेजस नारियल तेल , कच्ची घानी का सरसों तेल , शुद्ध बादाम तेल बालों के लिए उत्तम है . देशी घी भी बालों के लिए बहुत अच्छा है .
- पतंजलि दिव्य केश तेल औषधि युक्त तेज़ गंध वाला तेल है इसे शेम्पू करने के पहले कुछ देर लगा कर रखे .
- पतंजलि के रीठा और मिल्क शेम्पू से या मुल्तानी मिटटी और खट्टे छाछ से बाल धो ले .
- आंवले का नियमित सेवन करे .
- नस्य बालों के लिए बहुत अच्छा है .
- डैंडरफ के लिए पतंजलि तेजस तेल में कपूर मिला कर लगाए और खट्टे छाछ से बाल धोये .
- डैंडरफ के लिए तेज़ शेम्पू ना लगाए ये सेहत के लिए बहुत हानिकारक है

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