महर्षि मार्कंडेय जी द्वारा पिछले कल्प में प्रयोग किया हुआ ---प्रदुषण और जीवाणु नाशक प्रयोग ---सनातन संस्कृति धन्य है ...
कुछ पुराणी तंत्र की किताब पढते वक्त ये प्रयोग मिला ..तो आप सबको बताने और प्रसार के उद्देश्य से लिख रहा हूँ ....वाकई अनुसन्धान की आवश्यकता है .... सारा विश्व लोहा मान जायेगा सनातन संस्कृति का ...कुछ शब्द मेरे लिए भी नए हैं ..कोई वैद्य ही समझ सकता है इन बुतियुं के नाम ...फिर भी आपको पड़कर आश्चर्य होगा .......................
विस्फोटक विषैले यंत्रों के चलने से वायु में जहरीली गैस भर जाती है , यह हवा दमघोट करने वाली होती है . इस युक्ति से ऐसा प्रदुषण नष्ट होता है . मानव की पूर्ण रक्षा होती है
धाय के फूल , अश्व्कर्ण , तिनिश (सादन ) पलाश , नीम्पातला , फरहद , आम , अदुम्बर , मैनफल , अर्जुन , कुकुभ , राल , पारस पीपल , लिह्सोदा , अंकोला , आमला , करंज , कूटण , शमी , कैथ , अश्मन्तक , मदार मूल , चिर्विल्व , सेहूड , भिलावा , श्योनाक (अरलू) मुलहटी , सहजन , सागौन , गाणवा , मुरवा , भोजपत्र , तिल्वक , तालमखाना , गोपशेता (बिछुवा), इरिमेद सब सामान मात्रा में मिलाकर इन्न्की अंतर्धूम भस्म करें और गौ के दूध में घोले तथा २१ बार घोलते रहें , छानते रहें फिर आग पर पकावे .. पकते समय इसमें पीपरामूल , चुलाई , दालचीनी , तज , मजीठ , करंजा , गज पीपल , मिर्च , विडंग , गृह धूम , सारिवा , कटफल , देवदारु , जल्वेत , शालपर्णी , कोशाम्भु , सफेद सरसों , वरुण , नमक , पिलखन , तगर , हरताल , अरंड , रुद्र्वंती , सात्पर्ण , श्योनाक , राल्वा , नाग्दामानी , अतीस , हरड , चीड , कूट , हल्दी , वच , इनका चूर्ण तथा लोह भस्म , ताम्र चूर्ण मिलावे ....छार तैयार होने पर सुरक्षित रखें .. इसका दुन्धुभी , नगाडा , पताका , तोरण आदि पर लेप करें ..इनके ध्वनि , सुनने स्पर्श करने से विष का प्रभाव नष्ट हो जायेगा ..वायु में स्थित विशाली गैस को ये नष्ट कर देता है ....इसका नस्य /अभ्यंग तथा खाने से अन्तः प्रविष्ट विषैला प्रभाव नष्ट हो जाता है ..इसके द्वारा हवन करने के लिए शमी , आम , बेल की समिधा लगाकर अग्नि प्रज्वलित करें तथा उपरोक्त छार की आहुति डालें ..गायत्री मंत्र के साथ .... जहाँ जहां यज्ञ का धूम्र जायेगा ....विषैली वायु शुद्ध होती जायेगी ....छार के साथ गौ के घी की भी आहुति डालें ..वायु में विद्यमान विषैले कीटाणु नष्ट हो जायेंगे .......
इसमें जो जहरीले पदार्थ हैं भीलवा आदि , उन्हें शुद्ध करके डालें ..ऐसा महामुनि मार्कंडेय जी ने कहा है ..उन्होंने कहा है की पिछले कल्प में वायु प्रदुषण फैलने पर इसका बहुत प्रयोग किया गया था ,,,,,यह सफल और विश्वस्त योग है ....
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