आलूबुखारा -
यह मूलतः यूरोप तथा पश्चिमी एशिया में प्राप्त होता है | भारत में विशेषतः पश्चिमी शीतोष्ण हिमालय के जम्मू एवं कश्मीर,हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड तथा दक्षिण भारत में नीलगिरि के पहाड़ी क्षेत्रों में १५००-२१०० मीटर की ऊंचाई पर उत्त्पन्न होता है | इसके फल गोलाकार तथा चमकदार होते हैं | इसके कच्चे फल खट्टे तथा पके फल खट्टे-मीठे होते हैं,फलों के भीतर पीला गूदा तथा एक बड़ा बीज होता है | इसके वृक्ष से एक प्रकार का पीले रंग का गोंद निकलता है,जो बबूल के गोंद के सामान दिखाई देता है | इसका पुष्पकाल तथा फलकाल फ़रवरी से जुलाई तक होता है |
इसके फल में प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट,वसा,कैल्शियम,मैग्नीशियम,लौह,पोटैशियम , विटामिन C तथा आर्गेनिक अम्ल भी पाया जाता है | बीज में तेल,प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट,खनिज एवं एमीग्लैडीन पाया जाता है | आलूबुखारे के औषधीय उपयोग -
१- नकसीर
आलूबुखारे के पत्तों का रस निकालकर १-२ बूँद नाक में डालने से नकसीर में लाभ होता है |
२- पित्तविकार-
भोजन से पूर्व आलूबुखारे के मीठे फल का सेवन करने से यह पित्त विकारों का शमन करता है |
३- उदरकृमि
आलूबुखारे के पत्तों को पीसकर पेट पर लेप करने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं |
४- तृष्णा -
आलूबुखारे का सेवन करने से प्यास व अरुचि का शमन होता है |
५-अजीर्ण -
इसके बीजों को बादाम की तरह शुष्क फल (dry fruits ) के रूप में खाने से अजीर्ण में लाभ होता है |
६- स्मृतिवर्धनार्थ-
आलूबुखारे के बीज की गिरी का सेवन करने से धीरे-धीरे स्मरणशक्ति बढ़ती है |
आलूबुखारा |
यह मूलतः यूरोप तथा पश्चिमी एशिया में प्राप्त होता है | भारत में विशेषतः पश्चिमी शीतोष्ण हिमालय के जम्मू एवं कश्मीर,हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड तथा दक्षिण भारत में नीलगिरि के पहाड़ी क्षेत्रों में १५००-२१०० मीटर की ऊंचाई पर उत्त्पन्न होता है | इसके फल गोलाकार तथा चमकदार होते हैं | इसके कच्चे फल खट्टे तथा पके फल खट्टे-मीठे होते हैं,फलों के भीतर पीला गूदा तथा एक बड़ा बीज होता है | इसके वृक्ष से एक प्रकार का पीले रंग का गोंद निकलता है,जो बबूल के गोंद के सामान दिखाई देता है | इसका पुष्पकाल तथा फलकाल फ़रवरी से जुलाई तक होता है |
इसके फल में प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट,वसा,कैल्शियम,मैग्नीशियम,लौह,पोटैशियम , विटामिन C तथा आर्गेनिक अम्ल भी पाया जाता है | बीज में तेल,प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट,खनिज एवं एमीग्लैडीन पाया जाता है | आलूबुखारे के औषधीय उपयोग -
१- नकसीर
आलूबुखारे के पत्तों का रस निकालकर १-२ बूँद नाक में डालने से नकसीर में लाभ होता है |
२- पित्तविकार-
भोजन से पूर्व आलूबुखारे के मीठे फल का सेवन करने से यह पित्त विकारों का शमन करता है |
३- उदरकृमि
आलूबुखारे के पत्तों को पीसकर पेट पर लेप करने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं |
४- तृष्णा -
आलूबुखारे का सेवन करने से प्यास व अरुचि का शमन होता है |
५-अजीर्ण -
इसके बीजों को बादाम की तरह शुष्क फल (dry fruits ) के रूप में खाने से अजीर्ण में लाभ होता है |
६- स्मृतिवर्धनार्थ-
आलूबुखारे के बीज की गिरी का सेवन करने से धीरे-धीरे स्मरणशक्ति बढ़ती है |
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