संधिवात
संधिवात में शरीर के किसी संधि जोड में शोध की उत्पत्ति होती है। धीरे-धीरे शोथ विकसित होता है और तीव्र शूल होने लगता है। शोथ के कारण त्वचा लाल हो जाती है। संधि शोथ को स्पर्श करने में भी पीड़ा होती है। रात को अधिक पीड़ा होने से रोगी की नींद नष्ट हो जाती हैं।
संधि शोथ और शूल के कारण रोगी चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है। उठकर खड़े होने में भी तीव्र शूल होता है। संधिवात के कारण रोगी को ज्वर भी हो जाता है। संधिवात के उग्र रूप धारण करने पर रोगी की भूख नष्ट हो जाती है।
क्या खाएं?
* लहसुन की एक-दो कली प्रतिदिन हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें।
* गर्म जल व दूध में मधु मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है।
* लहसुन की कलियों को सरसों के तेल में देर तक उबालकर जलाएं, फिर उस तेल को छानकर संधि शोथ के अंगों पर मालिश करें।
* मेथी का चूर्ण बनाकर प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से संधिवात का शूल कम होता है।
* संधिवात का रोगी कोष्ठबद्धता होने पर एरंड का तेल 7-8 ग्राम की मात्रा में उबाले हुए दूध में डालकर पिएं।
* अदरक के 5 ग्राम रस में मधु मिलाकर सेवन करने से संधि शूल नष्ट होता है।
* महा नारायण तेल की संधि शोथ पर मालिश करें।
* चुकंदर का सेवन करने से संधि शूल नष्ट होता है।
* प्याज के रस को सरसों के तेल में मिलाकर हल्का-सा गर्म करके संधि शोथ पर मलने से बहुत लाभ होता है।
* आलू की सब्जी खाने से शूल कम होता है।
* कुलथी को जल में उबालकर क्वाथ बनाएं। क्वाथ को छानकर उसमें सोंठ का चूर्ण और सेंधा नमक मिलाकर पिएं।
* अजवायन का 3 ग्राम चूर्ण थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें।
क्या न खाएं?
* संधिवात के रोगी शीतल खाद्य और शीतल पेयों का सेवन न करें।
* सब्जियों में गाजर, मूली, टमाटर, अरबी, कचालू, फूलगोभी, भिंडी न खाएं।
* दही और तक्र (मट्ठे) का सेवन न करें।
* चावल व उड़द की दाल का सेवन न करें।
* घी, तेल, मक्खन से बने पकवान न खाएं।
* मांस, मछली व अंडे के साथ-साथ उष्ण मिर्च-मसालों से बनी तली हुई चीजों का सेवन ना करें।
* नंगे पाव फर्श पर न घूमें।
* भीगे वस्त्रों में देर तक न रहें।
प्रतिदिन पूज्य स्वामी जी महाराज द्वारा सिखाये जाने वाले सातों प्राणायामों का अभ्यास मंद गति से करें ,लाभ होगा |